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________________ 1352 नैषधमहाकाव्यम् / दम्पत्योरिति / ताः पूर्वोक्ताः, धराप्सरसः भूलोकसुराङ्गनासदृश्यः सख्या, दम्पत्योः जायापत्योः, तयोः दमयन्तीनलयोः, उपरि प्रीत्या हर्षेण, तयोर्व्यापारदर्श नजनितानन्देनेत्यर्थः / मुखानिलैः निःश्वासमारुतः, सुरभीणि सुगन्धीनि, स्मितानि एव ईषद्धसितान्येव, पुष्पाणि सितकुसमानि, कविभिर्हास्यस्य धवलतया कीर्तनादिति भावः। ववृषुः सिषिचुः। सख्यस्तौ सस्मितमवलोकयामासुरिति निष्कर्षः // 100 // पृथ्वीकी अप्सराएँ ( अप्सराओं के समान सुन्दरी ) वे सखियां उन दम्पति ( नल तथा दमयन्ती ) के ऊपर ( उनके व्यापार देखनेसे उत्पन्न ) हर्षले निःश्वाससे सुगन्धित स्मितरूप पुष्पोंको बरसाया। [जिस प्रकार देवाङ्गनाएँ किसी भाग्यवान् दम्पतिके ऊपर प्रसन्न होकर सुगन्धित पुष्पोंको बरसाती हैं, उसी प्रकार सखियोंने किया। सब सखियाँ नल तथा दमयन्तीको स्मित करती हुई देखने लगी ] / / 100 // तदास्यहसिताज्जातं स्मितमासामभासत | - आलोकादिव शीतांशोः कुमुदश्रेणिजम्भणम् / / 101 // ___ तदिति / तस्य नलस्य, आस्थे वदने, यत् हसितं हास्यं तस्मात् तद्धास्यदर्शनादित्यर्थः / जातम् उत्पन्नम् , आसां सखीनाम् , स्मितं मृदुहास्यम् शीतांशोः चन्द्रस्य, आलोकात् प्रकाशात् , जातमिति शेषः / कुमुदश्रेणीनां कैरवपतीनाम् , जन्मणं विकाश इव, अभासत अशोभत // 101 // उत ( नल) के मुखके हाससे उत्पन्न इन ( सखियों) का स्मित चन्द्रमाके देखनेसे कुमुद-समूहके विकासके समान शोभित हुआ। [ इससे सखियोंकी अपेक्षा नलका अधिक हंसना सूचित होता है ] // 101 // प्रत्यभिज्ञाय विज्ञाऽथ स्वरं हासविकस्वरम् / सख्यास्तासु स्वपक्षायाः कला जातबलाऽजनि // 102 / / प्रत्यभिज्ञायेति / अथ सखीनां हासानन्तरम् , विज्ञा अभिज्ञा, सुचतुरेत्यर्थः / कला कलाख्या सखी, तासु स्मितकारिणीषु सखीषु मध्ये,स्वपक्षायाः स्वसहायायाः, निजसुहृद्भतायाः इत्यर्थः / 'पक्षो मासा के पाणिग्रहे साध्यविरोधयोः। केशादेः परतो वृन्दे बले सखिसहाययोः // ' इति मेदिनी। सख्याः कस्याश्चित् वयस्यायाः सम्बन्धिनम् , हासेन हास्यशब्देन, विकस्वरं प्रकाशमानम् , स्वरं ध्वनिम् , प्रत्य भिज्ञाय ममैव प्रियसख्याः स्वरोऽयमिति निश्चित्य, जातबला प्राप्तसामा, दमय. न्तीकरनिरुद्धनिजकर्णमोचने इति भावः / अजनि जाता / जनेः कर्तरि लुत्त / 'दीपजन-' इत्यादिना चले चिणि तलुकि रूपम् // 102 // ___ इस ( सखियों के स्मित करने ) के बाद अतिशय चतुरा कला उन सखियोंमें अपने पक्षवाली सखीके हाससे स्फुट स्वरको पहचानकर ( अब यह मेरा पक्ष लेगी और मैं
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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