________________ 1350 नैषधमहाकाव्यम्। 'अश्वत्थदलसङ्काशं गुह्यं गूढमनिश्चितम् / यस्याः सा सुभगा कन्या पूर्वपुण्यैरवा. प्यते // इति // 95 // उद्यानमें विहारके समय भूमिपर गिरे हुए पीपल के पत्तेको लक्ष्यकर 'इसे उठाकर मुझे दो' ऐसे कहे गये मेरे वचनसे जो तुम लज्जित हुई, उसका स्मरण करो। [ पीपलके पत्तेके समान स्त्रीका मदनमन्दिर होनेके कारण नलके परिहासात्मक अभिप्रायको समझकर दमयन्तीका लज्जित होना उचित ही था 1 / / 95 / / इति तस्या रहस्यानि प्रिये शंसति साऽन्तरा | पाणिभ्यां पिदधे तस्याः श्रवसी होवशीकृता / / 66 // इतीति / प्रिये नले; तस्याः भैम्याः, रहस्यानि गुप्तचेष्टितानि, इति इत्थम् , शंसति कथयति सति, सा भैमी, ह्रीवशीकृता लज्जापरवशा सती, अन्तरा कथामध्ये, तस्याः कलायाः, श्रवसी कौं, पाणिभ्यां स्वकराभ्याम् , पिदधे छादयामास / इतोऽ. धिकं रहस्यं कथयिष्यति चेत् तदनया न श्रोतव्यमिति बुद्धयेति भावः // 96 // प्रिय ( नल ) के इस प्रकार ( 2074-95 ) उस ( दमयन्ती ) के रहस्यों ( एकान्तमें किये गये सुरतवृत्तों ) को कहते रहने पर उस ( दमयन्ती ) ने बीचमें (नलका कहना पूरा होने के पहले ) ही लज्जाके वशीभूत हो सखी 'कला' के दोनों कानोंको दोनों हाथोंसे बन्द कर दिया / [अब यह इनके कहे हुए अश्रवणीय अत्यन्त गुप्त रहस्योंको भी सुनेगी, इस आशयसे दमयन्तीने 'कला' के दोनों कानोंको अपने दोनों हाथोंसे बन्द कर दिया ] // कर्णी पीडयती सख्या वीक्ष्य नेत्रासितोत्पले / __ अप्यसादयतां भैमी-करकोकनदे नु तौ ? / / 67 // कर्णाविति / सख्याः कलायाः, नेत्रे लोचने एव, असितोत्पले नीलसरोजे, की कलाया एव श्रवणयुगलम् , पीडयती अभिभवती, आक्रम्य पीडनं कुर्वतीत्यर्थः / आकविश्रान्ते इति भावः। वीक्ष्य दृष्ट्वा, भैम्याः दमयन्त्याः, करावेव पाणियुगलमेव, कोकनदे रक्तोत्पले अपि / कत्तणी / अथ रक्तसरोरुहे रक्तोत्पलं कोकनदम्' इत्यमरः / तो कर्णी, असादयतां स्वयमपि समत्सरे एव अपीडयताम् , न किम् ? इत्युत्प्रेक्षा / / 97 // ___ सखी 'कला' के दोनों कानोंको ( उसीके ) दोनों नेत्ररूपी नीलकमल पीडित कर रहे हैं ( अत एव सजातीय नेत्ररूपी नीलकमलों के साथ स्पर्धा होनेसे या-उनकी सहायता करने के लिए ) दमयन्तीके दोनों हाथरूपी रक्तकमलोंने भी उन (कलाके दोनों कानों) को पीडित किया क्या ? [ कलाके नेत्ररूपी नीलकमलों द्वारा उसीके कानोंको पीडित करना कहनेसे 'कला' के नेत्रदय नीलकमलतुल्य एवं कानतक बड़े-बड़े हैं, यह सूचित होता है। सजातीय कलाके नेत्ररूपी नीलकमलों के साथ दमयन्तीके हस्तद्वयरूपी रक्तकमलोंकी स्पर्धा या उनकी सहायता करना उचित ही है ] // 97 //