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________________ विंशः सर्गः। 1341 तुम्हारी जीमका पान किया, उस सम्पूर्ण वृत्तान्तको तुमने स्मरण किया क्या ? [रतिकाल में जिह्वा-पान करनेका भी कामशास्त्रमें विधान है ] // 78 // त्वत्कुचाईनखाङ्कस्य मुद्रामालिङ्गनोत्थिताम् / स्मरेः स्वहृदि यत् स्मेरः सखीं शिल्पं तवाब्रुवम् ? / / 76 / / स्वदिति / हे प्रिये.! स्वस्य आत्मनः, मम नलस्य इत्यर्थः। हृदि वक्षसि, आलिङ्गनेन आश्लेषेण, उस्थिताम् उत्पन्नाम् , सक्रान्ताम् इत्यर्थः / स्वस्कुचयोः तव स्तनयोः, आर्द्रनखाङ्कस्य सद्यःकृतनखरक्षतस्य, मस्कत कस्येति भावः / मुद्रां रक्तवर्णचिह्नम् , स्मेरः सस्मितः सन् , सखीं तव वयस्यां प्रति, तव ते, शिल्पं कारुकार्यम्, शिल्पनिर्माणनैपुण्यमित्यर्थः। यत् अब्रुवम् अकथयम्, तत् स्मरेः ? चिन्तये // 79 // मैंने अपने हृदय (छाती ) में ( मेरे ) आलिङ्गनसे उत्पन्न तुम्हारे स्तनोंके (मत्कृत) सरस नखक्षतके चिह्नको हंसता हुआ सखियोंसे तुम्हारा शिल्प बतलाया, इसे तुम स्मरण करो / [ मैंने तुम्हारे स्तनोंमें नखक्षत किया था, उसके सूखनेके पहले ही मैंने तुम्हारा आलिङ्गन किया तो आर्द्र होनेसे उस नखक्षतका चिह्न मेरे वक्षःस्थलमें प्रतिबिम्बित हो गया और हँसते हुए मैंने सखियोंसे कहा कि मेरे वक्षस्थलमें यह नखक्षत तुम्हारी सखीने किया है / अथवा-"प्रतिबिम्बित हो गया तो उसे देखकर स्मित करती हुई सखियोंसे मैंने कहा कि। इसे तुम स्मरण करो और मुझे वास्तविक नल जानो ] // 79 // त्वयाऽन्याः क्रीडयन्मध्ये-मधुगोष्ठि रुषेक्षितः / वेत्सि तासां पुरो मुद्धा त्वत्पादे यत् किलास्खलम् ? // 8 // स्वयेति / हे प्रिये ! मधुगोष्ट्या मद्यपानसभायाःमध्ये मध्ये मधुगोष्ठि पानगोष्ठिः मध्ये इत्यर्थः / 'पारे मध्ये षष्ठ्या वा' इस्यव्ययीभावः, 'गोस्त्रियोरुपसर्जनस्य' इति हस्वत्वम् / अन्याः अपराः खियः, क्रीडयन् नर्मव्यवहारेण विनोदयन् , अहमिति शेषः / त्वया भवत्या, रुषा रोषेण, ईक्षितः दृष्टः सन् , तासां स्त्रीणाम् , पुरः अग्रे एव, मूद्धर्ना शिरसा, त्वत्पादे तव चरणे, यत किल अस्खलम् अपतं खलु, मद्यमत्तत्वात् स्खलनच्छलेन तव प्रसादनाय इति भावः। तत् वेरिस ? स्मरसि किम् ? इति काकुः // 8 // ( अनेक स्त्रियों के साथ सम्मिलित होकर ) मद्यपान-सभाके बीचमें दूसरी स्त्रियों ( तुम्हारी सपत्नियों ) को क्रीडा कराता हुआ ( तथा उसी समयमें) तुमसे क्रोधपूर्वक देखा गया मैं उनके सामने तुम्हारे चरणों में जो स्खलित हो गया, इसे तुम जानती ( स्मरण करती) हो ? [ बहुत स्त्रियों के साथमें जिसमें तुम भी थी-मद्यपान करके दूसरी स्त्रियोंको क्रीडा कराते हुए मुझे तुमने क्रोधसे देखा तो उन स्त्रियों के सामने ही मैंने तुम्हारे चरणपर 1. 'स्मेरसखीम्' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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