________________ 1340 नैषधमहाकाव्यम् / रहनेपर अर्थात् मेरे चरणोंको धोने या नमस्कार करनेके लिए मेरे चरणों की ओर शीघ्रतासे तुम्हारे हाथ बढ़ानेपर ( दर्शनार्थ आये हुए ) बहुत लोगों के उपस्थित रहनेगर (साक्षात् आलिङ्गन करना अनु वत जानकर मैंने अपने चरणको ) दो अङ्गुलियोंसे जो आलिङ्गन किया ( तुम्हारे हाथको इतावा ) उसे तुम स्मरण करो // 76 // वेत्थ मानेऽपि मत्त्याग-दूना स्वं माञ्च दन्मिथः / मदृष्टयाऽऽलिख्य पश्यन्ती व्यवधा रेखयाऽन्तरा ? // 77 / / वेत्थेति / हे प्रिये ! माने प्रायकोवेऽपि, मत्यागना मदिरहतप्ता, स्वमिति शेषः / मिथः रहसि / 'मिथोऽन्योन्यं रहस्यपि' इत्यमरः / स्वद आत्मानम् , माँ नलञ्च, आलिख्य चिने लिखित्वा, पश्यन्ती अवलोकयन्ती, तदालेख्यमिति शेषः / मदृष्टा मया त्वथा आलेख्याङ्कितेन मया नलेन वीक्षिता सती, अन्तरा लिखितयोरावयोमध्ये, रेखया तुलिकया नूतनरेखाङ्कनेन, मदर्शनप्रतिरोधार्थमिति भावः ! यद् व्यवधाः सवधानं कृतवती अलि, व्यवधान विधाय सत्रापि कोपः प्रकटितः इति भावः / व्यवपूर्वाधातेर्लुङ् सिपि 'गातिस्था-' इत्यादिना सिचो लुक। तत् वेत्थ ! स्मरसि किन्न ? इति काकुः // 77 // मान (प्रणयकलह ) में भी मेरे त्यागसे खिन्न तुम जब अपनेको तथा मुझको चित्रित. कर देखती थी, तब मैंने तुम्हें देख लिया उस समय तुमने उस चित्रके बीचमें एक रेखा अङ्कितकर व्यवधान कर दिया, यह तुम जानती ( स्मरण करती ) हो ? / [ जब तुम्हारे मानके कारण तुम्हें मैंने छोड़ दिया तब मेरे वियोगको सहने में असमर्थ होकर तुमने अपना तथा मेरा संश्लिष्ट चित्र बनाकर उसे देखती रही थी, उसी समय जब मैंने तुम्हें देख लिया तब तुमने झट उस चित्रित अपने दोनों के बीच में एक रेखा बनाकर दोनोंको व्यवहित कर दिया अर्थात रेखा द्वारा यह अभिव्यक्त किया कि चित्रमें भी मैं तुमसे पृथक हो हूं, अत एव मेरा प्रणयमान ज्योंका त्यों बना हुआ है ] // 77 / / प्रस्मृतं तत् त्वया तावद् यन्मोहनविमोहितः / अतृप्तोऽधरपानेषु रसनामपि तव ? || 78 // प्रस्मृतमिति। हे लिये ! मोहने सुरते, विमोहिता विमुग्धचित्तः, अहमिति शेषः। तव ते सम्बन्धसामान्य पछी, 'पूरण-' इत्यादिना षष्ठीसमासांनषेधख्यापनात् षष्ठीति केभिन , अधरपानेषु अधरास्वादनेषु, चुम्बनेषु कृतेष्वपि इत्यर्थः / अतृप्तः तावन्नात्रेण अपूर्णाकाः सन् , यत रसनां जिह्वा , अपिबम् आस्वादितवाना. सद ! तत् , लावद साकल्लेन, त्वया अवया, प्रस्थान ? चिन्तितं किम् ? इति काकुः / / 78 // सुरतमोहित ( अथवा-काममोहित, अत एव ) तुम्हारे अधरपानसे अतुप्त मैंने जो १.'-पानानाम्' इति पाठान्तरम् /