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________________ ऊनविंशः सगः। 1266 नलको प्रातःकालका वर्णन करनेवाले वन्दियोंने देखा। [वन्दियों के आनेसे पहले ही नित्यक्रियार्य बाहर जाकर थोड़ा दिन चढ़ते-चढ़ते नित्यक्रियाको समाप्तकर लौट आनेसे नलको धार्मिकता और इसी कारण अर्थात् नलके वहां नहीं रहनेसे पूर्व श्लोकोक्त दमयन्तीका वन्दियों के लिए भूषणको पारितोषिकरूपमें देनेका औचित्य और स्वर्गङ्गामें प्रातः स्नान करनेसे नलके रथका सर्वत्र गमन कर सकना, तथा स्नानकर दमयन्तीके साथ पुनर्मिलनकी आशासे आनन्दपूर्वक लौटना कहनेसे आगामी सर्गकी कथाको सङ्गति सूचित होतो श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् | एकां न त्यजतो नवार्थघटनामेकानविंशो महा काव्ये तस्य कृतौ नलीयचरिते सर्गोऽयमस्मिन्नगात् / / 67 // * श्रीहर्षमिति / एका मुख्याम् , नवार्थघटनाम् अपूर्वार्थसृष्टिम् , न त्यजतः न मुञ्चतः, सर्वदा नवं नवं विषयं वर्णयत इत्यर्थः। तस्य श्रीहर्षस्य, विंशतेः पूरणः इत्यर्थे-'तस्य पूरणे डट' इति डट , 'ति विंशतेर्डिति' इति तिशब्दलोपः। ततः एकेन न विंशः इति 'तृतीया' इति योगविभागात् समासे 'एकादिश्चैकस्य चादुक' इति नञः प्रकृतिभावः, एकशब्दात् अदुगागमश्च / ऊनाथें चात्र नञ् / गतमन्यत् // इति मल्लिनाथसूरिविरचिते 'जीवातु'समाख्याने एकोनविंशः सर्गः समाप्तः // 19 // __कवीश्वर-समूहके...."किया, मुख्य नवीन घटना का अत्याग (सदा नयी-नयी घट. नाओंका ही वर्णन ) करते हुए उस श्रीहर्षके रचित सुन्दर नलके चरित अर्थात् 'नैषधचरित...."उन्नीसवां सर्ग समाप्त हुआ. ( शेष व्याख्या चतुर्थसर्गवत् जाननी चाहिये) // 67 // यह 'मणिप्रभा' टीकामें 'नैषधचरित'का उन्नीसवां सर्ग समाप्त हुआ / / 19 //
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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