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________________ 1262 नैषधमहाकाव्यम् / कोष ) में विकसित पत्ररूपी नेत्रमध्यबाला ( पक्षा०-पत्रमध्यके समान विकसित = निद्रारहित होनेसे विस्फारित नेत्रमध्यवाला ) जो कुमुद पहले ( रात्रिमें ) सम्पूर्ण रात्रिमें पहरेदारकी शोभा (समानता ) को प्राप्त किया था, वही कुमुद इस समय दिनको प्राप्त कर अर्थात् दिन होनेपर (प्रातःकालमें कुमुदके बन्द होनेसे ) भोतरमें घूमते हुए भ्रमरोंके गुञ्जनरूपी शयन करते समय अधिक नासिकाके 'घर-घर' शब्दको करने के साथ-साथ निद्राके सुखको प्राप्त करता है / [ जिस प्रकार कोषागार ( खजाने ) का पहरेदार पूर्ण रात्रि में जागरण कर दिन होने पर खुर्राटा लेता हुआ सुख सोता है, उसी प्रकार मानो कुमुद भी रात्रिभर उन्मीलित रहकर दिन होने पर इस समय भीतरमें बन्द हुए भ्रमरके गुञ्जनसे मानो खुर्शटा लेता हुआ सो रहा है, ऐसा हम समझते हैं ] // 59 // इह किमुषास पृच्छाशसिकिशब्दरूपप्रतिनियमितवाचा वायसेनष पृष्टः। . भण फणिभवशास्त्रे तातङः स्थानिनौ का विति विहिततुहीवागुत्तरः कोकिलोऽभूत् ? / / 60 / / इहेति / इह अस्मिन् , उपसि प्रभाते; पृच्छां प्रश्नम , शंसति सूचयतीति पृच्छा. शंसी प्रश्नवाचकः। 'प्रश्नेऽनुयोगः पृच्छा च' इत्यमरः / तादृशस्य किं शब्दस्य किमिति सर्वनामपदस्य, रूपे रूपविशेषे, कौ इति प्रथमाद्विवचनान्तपदनिष्पत्ती, प्रतिनिय. मिता सदैव निर्दिष्टा, वाक वाक्यं यस्य तादृशेन, काविति व्यक्तवाक्येनेत्यर्थः / वाय. सेन काकेन, फणिनः शेषात् , भवे उत्पन्ने, शेषप्रणीते इत्यर्थः / शास्त्रे पाणिनीये महा. भाष्ये, तातङस्तातडादेशस्य, स्थानिनौ भादेशिनौ कौ ? किं शब्दौ ? भण ब्रहि, इति एवम्, पृष्टः जिज्ञासितः, इवेति शेषः / एषः पुरतो वृक्षशाखायामुपविष्टः इत्यर्थः। कोकिल पिकः, विहितं प्रयुक्तम् , तुही तुश्च हिश्च तुही इति, वाक निजध्वनिरेव, उत्तरं प्रतिवचनं येन सः तादृशः, अभूत् अजनि, किम् ? 'तुह्योस्तातङाशिष्यन्य. तरस्याम' इति पाणिनिसूत्रे तुह्योः स्थाने तातड़ विधीयते प्रातः काकः को इति शब्देन तातडः स्थानिनौ कौ इति पृच्छति किम् ? कोकिलश्च तुही इति शब्देन तस्य उत्तरं ददाति किम् ? इत्यर्थः / पक्षिप्रभृतीनामव्यक्तध्वनी यस्य चेतसि यदुदेति स तथैव मनःकल्पितं प्रकाशयति, एवञ्च कविरयं तदा काकध्वनि 'को' इति कोकिल ध्वनिञ्च 'तुही' इति कल्पयित्वा काविति तुहीति च काककोकिलकूजितेन पूर्वोक्तप्रश्नो. त्तरत्वमुत्प्रेक्षते / प्रभातं जातं काकादयः पक्षिणः कूजन्तीति भावः // 60 // ___ इस प्रभातकाल में प्रश्नवाचक 'किम्' शब्द के ( को, को ) रूपसे प्रतिनियत वचनवाले कौवेसे 'शेषोक्त शास्त्र अर्थात् पाणिनिमहाभाष्य में 'तात' के स्थानी अर्थात् आदेश कौनकौन होते हैं इस प्रकार 'को, कौ' ऐसा पूछा गया, तथा 'तुहि' कहनेवाला कोकिल उसका उत्तर हो गया क्या ? [ प्रातःकाल स्वभावसे ही कौवा 'कौ, कौ' तथा पिक 'तुहि, तुहि'
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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