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________________ ऊनविंशः सर्गः। 1286 प्रसरता, छेदनकर्मणि व्यापृतस्वात् पुरः पश्चाच पुनः पुनः गतागतं कुर्वता इत्यर्थश्च, करेण किरणेन हस्तेन च, निविडां प्रगाढाम् , निष्पीडना बाधनां धारणश, लम्भितः प्रापितः, अस्तम् अदर्शनम् , गते प्राप्तम् , अर्द्धम् एकांशः यस्य सः तादृशः, विधुः चन्द्रः, इह अस्मिन् अर्धास्तमितसमये, छेदार्थ कर्त्तनाथम् , तारकारूपशङ्खच्छेदनसौकर्यसिद्धये इत्यर्थः / उपहृतम् अर्पितम्., यत् अम्बु जलम् , शङ्खच्छेदनसौकर्याय जलं दीयते शाडिकैरिति व्यवहारात् , तेन सह कम्बुजं छिद्यमानात् शङ्खात् जातम् यत रजः करपत्रघर्षणनिपतितं चूर्णम् , तस्य यः जम्बालः कर्दमः, रजोराशौ जल. निक्षेपेण कर्दमताया अवश्यम्भावादिति भावः / तेन पाण्डूभवत् शुभ्रीभवत् , यत् शङ्ख छिनत्तीति शङ्खच्छित् शङ्खच्छेदकम् , करपत्रं क्रकचः / 'क्रकचोऽस्त्री करपत्रम्' इत्यमरः / तस्य भावः तत्ताम् , वहति धारयति, इवेति शेषः, इत्युत्प्रेक्षा। शङ्खच्छे. दककरपत्रस्य अर्द्धचन्द्राकारत्वात् अस्तिमितः चन्द्रः शङ्खच्छेदककरपत्रमिव दृश्यते इति भावः / शार्दूलविक्रीडितं वृत्तम् // 57 // ( अधिक प्रातःकाल होनेसे अतिशय शुभ्रवर्ण) तारारूपी शङ्ख ( अथवा-विशाखा नक्षत्रके शङ्खाकार मातृमण्डलरूप तारा ) को नष्ट करने (पक्षा०-छिद्र करने, या-काटने ) वाले, कमलको विकसित करते ( पक्षा०-शङ्खको छेदते, या-काटते ) हुए तीव्र तेजवाले ( सूर्य, पक्षा०-तीक्ष्ण शस्त्रवाले शिल्पी) के सवेग चलते हुए किरण ( पक्षा०-रगड़ने के कारण आगे-पीछे चलते हुए हाथ ) से अतिशय पीडित ( पक्षा०-दबाया गया) आधा अस्त यह चन्द्र ( शङ्खको सरलतासे ) काटने के लिए छोड़े गये पानीके कारण शङ्खसे उत्पन्न धूलिके पङ्कसे श्वेतवर्ण होते हुए शङ्ख-च्छेदक आरेके समान दृष्टिगोचर हो रहा है। [ ताराओंके विनाशक एवं कमलों के विकासक सवेग चलते हुए सूर्यको किरणसे पीडित तथा आधा अस्त हुआ निष्प्रभ चन्द्रमा ऐसा मालूम पड़ता है कि-शङ्खको छेदने (या-काटने) वाला तीक्ष्णशस्त्रधारी शिल्पीके वेगपूर्वक घर्षणसे सञ्चलनशील (विस्तृत एवं सङ्कुचित होते हुए) हाथसे अत्यन्त पीडित आरा शङ्खको जल्दी छिदने (या-कटने ) के लिए पानी डालनेसे काटते समय उत्पन्न शङ्खके मलिन धूलि-पङ्कने कुछ श्वेतवर्ण हो रहा है। शंखको छेदने (या-काटने ) के लिए तीक्ष्ण आरा लेना, हाथका यातायात होना, शीघ्र छेद होने ( याकटने ) के लिए पानी छोड़नेपर शङ्खकी धूलिसे कीचड़ निकलकर आरेका कुछ श्वेत वर्ण होना प्रसिद्ध है / सूर्योदय हो गया, ताराएँ लुप्त हो गयीं, कमल विकसित हो गये, चन्द्र आधा अस्त होकर शङ्ख काटते हुए. शङ्खकर्दमलिप्त आरेके समान पाण्डुवर्ण एवं वक्राकार हो रहा है; अत एव प्रभात जानकर आप शीघ्र उठिये ] // 57 // (जलजभिदुरीभावं प्रेप्सुः करेण निपीडय त्यशिशिरकरस्ताराशङ्खप्रपञ्चविलोपकृत् / . 1. अयं श्लोकः 'प्रकाश'च्याख्यासहित एवात्र मया स्थापितः /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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