________________ द्वादशः सर्गः। 755 नहीं ( बन्द नहीं होता ), मल्लिका-पुष्प काले ( पक्षा०-अन्धकारयुक्त) तुम्हारे केशों में छिपकर अदृश्य हो जाते हैं तथा चन्द्रमा अमृतक्षरणके छलसे पसीना-पसीना हो जाता है / शत्रु से डरनेपर कुमुदका रातमें नहीं सोना, मल्लिका पुष्पका काले होनेसे अन्धकारपूर्ण स्थानमें छिप जाना तथा चन्द्रमाका अमृतक्षरणके छलसे पसीना-पसीना होना उचित ही है। इस राजाका बाहुजन्य यश अर्थात् प्रताप कुमुद, मल्लिका-पुष्प तथा चन्द्रमासे भी अधिक उज्ज्व ल है ] // 84 // एतद्गन्धगजस्तृषाऽम्भसि भृशं कण्ठान्तमज्जत्तनुः फेनैः पाण्डुरितः स्वदिक्करिजयक्रीडायशःस्पद्धिभिः / दन्तद्वन्द्वजलानुबिम्बनचतुर्दन्तः कराम्भोवमि व्याजादभ्रमुवल्लभेन बिरहं निर्वापयत्यम्बुधेः / / 8 / / ___ एतदिति / तृषा पिपासया, अम्भसि जले, भृशं कण्ठान्तं कण्ठपर्यन्तं, मज्जन्ती तनुः शरीरं यस्य सः,स्वेन आत्मना, दिक्करिणां जयेन या क्रीडा तस्याः तज्जनितानि इत्यर्थः, यशांसि स्पर्धन्ते ये तैः तादृशैः तत्स्पद्धिभिः तत्सदृशैः, फेनैः पाण्डुरितः पाण्डुवर्णीकृतः, दन्तद्वन्द्वस्य जले अनुबिम्बनेन प्रतिबिम्बपातेन, चतुर्दन्तो दन्तच. तुष्टयवान् , एतस्य राज्ञः, गन्धगजो दुष्टगजः, कराम्भसां वमिर्वमथुः, करशीकर इत्यर्थः, 'प्रच्छर्दिका वमिश्च स्त्री पुमांस्तु वमथुः समाः' इत्यमरः। 'वमथुः, पुंसि वमने गजस्य करशीकरे' इति मेदिनी, तस्या व्याजात् अम्बुधेः समुद्रस्य, अभ्रमुव. ल्लभेन ऐरावतेन, स्वपुत्रेणेति भावः, विरहं विरहतापं, निर्वापयति शमयतीति सापह्नवोत्प्रेक्षा व्यञ्जकाप्रयोगाद्दम्या // 85 // प्याससे जलमें अतिशय ( अथवा-अधिक प्याससे जलमें ) कण्ठ तक शरीरको डुबाया हुआ, दिग्गजोंकी अनायास विजयसे उत्पन्न अपने यशसे स्पर्धा करनेवाले अर्थात् उक्त यशके समान फेनों (के पानीके ऊपरी भागवाले शरीरमें लगने) से इवेतवर्ण और दोनों दातों के पानीमें प्रतिबिम्बित होनेसे चार दाँतोंवाला इस राजाका गन्धगज ( दुष्ट हाथी या अपने मद. मल-मूत्र आदिके गन्धसे दूसरे गजोंको जीतनेवाला हाथी या दूसरे हाथी के गन्धको नहीं सहनेवाला हाथी) सूंडके वमथु ( बाहर फेंके हुए जलकण) के व्याजसे समुद्रके ऐरावत ( समुद्रोत्पन्न होनेसे पुत्ररूप पूर्व दिग्गज ) के विरहको शान्त कर रहा है। [ ऐरावत समुद्र में रहनेवाला श्वेत वर्णवाला और चार दाँतोंवाला था; अतः प्याससे कण्ठ तक समुद्र में डूबा हुआ, फेनोंसे श्वेत वर्णवाला तथा जलमें अपने ही दो दाँतों के प्रतिबिम्बित होनेसे चार दाँतोंवाला इस राजाका गन्धगज सँड़से जलकण छोड़ता हुआ समुद्र के पुत्र ( ऐरावत )-विरहको शान्त करता हुआ-सा ज्ञात होता है। हाथीसे समुद्र पर्यन्त विजय करनेवाला यह राजा है ] / अथैतदुर्वीपतिवर्णनाद्भुतं न्यमीलदास्वादयितुं हृदीव सा / मधुस्रजा नैषधनामजापिनी स्फुटीभवद्धयान पुरःस्फुरन्नला // 86 //