________________ ऊनविंशः सर्गः। 1275 पाताल ( पक्षा०-नरक ) से ( अपने पातिव्रत्यके प्रभावसे ) हठपूर्वक (सूर्यको, पक्षा०पतिको ) निकाल कर सर्य ( पक्षा०-पति) को इन्द्रपुरी (पूर्व दिशा, पक्षा०-स्वर्ण) को प्राप्त करानेवाली वह ( दीप्ति, पक्षा०-साध्वी स्त्रो ) तीव्रतायुक्त मूर्ति ( पक्षा०-सतियों के व्रतकी मूर्ति ) को धारण करती है / [ जिस प्रकार अनुरागिणी स्त्री पतिके मृत्यु होनेपर अग्निमें प्रवेशकर नरकमें भी गये हुए पतिको अपने पातिव्रत्यके प्रमावसे नरकसे निकालकर स्वर्ग में पहुंचाती हुई सतीव्रतके मूर्तिभाव मूर्तिमान सतीत्वको प्राप्त करती है, उसी प्रकार लाल-लाल सूर्यप्रभा कल सायङ्काल सर्यके अस्त हो जानेपर स्वयं अग्निमें प्रविष्ट हो गयी तथा बलात्कारसे अधोलोकसे सूर्यको निकालकर पूर्व दिशामें लाकर तीव्रतम आकृतिवाली हो रही है अर्थात् क्रमशः सर्यके ऊपर उठने से सर्यदीप्ति तीक्ष्ण ( प्रखर ) हो रही है। सूर्यके अस्त होनेपर दीप्तिका अग्निमें प्रविष्ट होना श्रुति-सम्मत एवं सर्वप्रत्यक्ष है। सूर्योदय हो गया और क्रमशः सूर्य किरणें तीक्ष्ण हो रही हैं ] / / 44 / / बुधजनकथा तथ्यैवेयं तनौ तनुजन्मनः पितृशितिहरिद्वर्णाद्याहारजः किल कालिमा / शमनयमुनाकोडैः कालैरितस्तमसां पिबा दपि यदमलच्छायात् कायादभूयत भास्वतः / / 45 / / बुधेति / तनोः शरीरात् , जन्म उत्पत्तिः यस्य तस्य तनुजन्मनः अपत्यस्य / 'अवयो बहुव्रीहियधिकरणो जन्माद्यत्तरपदे इति वामनः / तनी शरीरे, कालिमा श्यामता, पित्रोः जननीजनकयोः, शितिहरितौ कृष्णपालाशी, वौँ वर्णविशिष्टम् आहार्यद्रव्यमित्यर्थः / तदादिः तत्प्रभृतिः, यः आहारः भोज्यम् , तस्मात् जायते उत्पद्यते इति तादृशः, इयम् ईदृशी, किल इति प्रसिद्धौ, बुधजनकथा विद्वज्जनानामुक्तिः, तथ्या एव सत्या एव / कुतः ? यत् यस्मात् , अमलच्छायात् अतिस्वच्छकान्तेरपि, तमसाम् अन्धकाराणाम् / कृद्योगात् कर्मणि षष्ठी / पिबतीति पिबः तस्मात् पातुः / 'पाघ्रा-' इत्यादिना पिबादेशश्च शप्रत्ययः / इति शेषः। इतः अस्मात् , पूर्वाकाशे दृश्यमानादित्यर्थः / भास्वतः सूर्यस्य, कायात् शरीरात् , काल: कृष्णवर्णैः, शमनयमुनाकोडैः यमकालिन्दीशनैश्चरैः, अभूयत जातम् / भावे लङ् / कृष्णवर्णान्धकाराहारादेव शुभ्रकान्तेरपि सूर्यस्य अपत्यानि कृष्णवर्णानि जातानि इति निष्कर्षः / अत्र शमनादिकालिग्नस्तपितृतिमिराहारपरिणतिपूर्वकत्वोत्प्रेक्षा॥४५॥ ___ 'सन्तानके शरीरमें कालापन पिता ( और माता ) के काले तथा हरे आदि वर्णवाले भोजनसे उत्पन्न होता है अर्थात् माता-पिताके काली-हरी वस्तुओंके भोजन करनेसे उनकी सन्तान काली होती है' यह ( 'स श्यामो मित्रातनयत्वात्' 'मित्र (सूर्य) का पुत्र नहीं होनेसे वह श्याम वर्ण है' इत्यादि उदयनाचार्यादि) पण्डित लोगोंका कथन सत्य ही है, क्योंकि अत्यन्त निर्मल कान्तिवाले अन्धकारोंको पीने ( नाशक होनेके कारण भोजन करनेवाले) 8. नै० उ०