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________________ 1260 नैषधमहाकाव्यम् / तथा मधुपः भ्रमरः, सरोरुहां कमलानाम् , मधूनि मकरन्दान् , मध्ये मध्ये अन्तराऽन्तरा, वधूमुखे स्वकान्तानने, लब्धया चुम्बनकाले प्राप्तया, अधरसुधया अध. रामृतेन, स्वादुङ्कारं स्वादूकृत्य, सुरसानि कृत्वेत्यर्थः। 'स्वादुमि णमुल' इति णमुलप्रत्ययः। मान्तनिर्देशादेव पूर्वपदस्य मकारान्तनिपातः। धयति पिबति / धेटो लट // 29 // __इस समय कमलिनीने तड़ागके तट पर स्थित वृक्षोंके पक्षियों के झुण्डके कलरवोंसे मानो निद्रामुद्राका त्याग कर दिय है अर्थात् अन्य मनुष्यादि जिस प्रकार पक्षी आदिके कलरवोंसे निद्राको त्याग देते हैं; उसी प्रकार कमलिनीने भी निद्राका त्याग कर दिया (विकसित हो गयी ) है और भ्रमर कमलों के परागोंको भ्रमरीके मुखसे प्राप्त अधरामृतसे बीच-बीचमें अधिक स्वादिष्ट करके पान कर रहा है अर्थात् भ्रमर को कमलमकरन्दका पान करते समय बीच-बीचमें भ्रमरीके अधरामृतका पान उसे अधिक स्वादुमान् हो रहा है। [ तड़ागके तीरस्थवृक्षोंपर निवास करनेवाले पक्षिगण कलरव करने लगे, कमल विकसित हो गये और उनपर भ्रमरी-सहित भ्रमर भ्रमण करने लगे; अत एव हे राजन् ? अब निद्रात्याग कीजिए ] // 29 // गतचरदिनस्यायुभ्रंशे दयोदयसकुचत्कमलमुकुलकोडे' नीडे प्रवेशमुपेयुषाम् / इह मधुलिहां भिन्नेष्वम्भोरुहेषु समायतां सह सहचरैरालोक्यन्तेऽधुना मधुपारणाः / / 30 / / गतेति / गतचरस्य गतपूर्वस्य / 'भूतपूर्वे चरट' प्रागतीतस्य इत्यर्थः। दिवस्य दिवसस्य, आयुर्धशे जीवितावसाने सति, सायंसमये इति भावः / दयोदयात् कृपाविर्भावात् इव, तदुरवस्थादर्शनेनेति भावः / सङ्कुचतां म्लानानाम् , रात्रिनिमीलनस्वभावात् मुद्रितीभवतामित्यर्थः। कमलमुकुलानां पद्मकोरकाणाम् , कोडे अभ्यन्तरे एव, नीडे कुलाये / 'कुलायो नीडमस्त्रियाम' इत्यमरः। प्रवेशम् अन्तर्गमनम् , उपेयुषां प्राप्नुवताम् , अन्तः प्रविशतामित्यर्थः, रात्री तत्रैव आबद्धानाम् अत एव कृतोपवासानामिति भावः / इह अधुना, प्रभाते इत्यर्थः। भिन्नेषु विकसितेषु, अम्भोरुहेषु प षु, समायतां निपतताम् , इतस्ततो भ्रमतामित्यर्थः / इणो लटः शत्रादेशः / मधुलिहां मधुपानाम् , अधुना इदानीम् , सहचरैः सुहृद्धिम. रान्तः सह, सम्प्रत्यागतैरिति भावः / मधुना मकरन्देन, पारणाः उपवासानन्तरं भोजनानि, आलोक्यन्ते दृश्यन्ते, जनेरिति शेषः // 30 // पूर्व दिनके अन्त ( कल सायङ्काल ) में मानो दयोदय होने से सङ्कुचित होते हुए मुकुल (कोरक ) के क्रोड़ (मध्य) रूपी नीड़ (घोसले-वासगृह) में भ्रमरोंका इस समय 1. 'कोडानीडे' इति 'कोडं नीडे' इति च पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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