________________ 1258 नैषधमहाकाव्यम् / पूर्वदिशामें इन्द्रका ऐश्वर्य देखकर विशेष बुद्धिसे तुम्हारे (नलके) ऐश्वर्यको श्रेष्ठ समझें ] // 26 // अनतिशिथिले पुम्भावेन प्रगल्भबलाः खलु प्रसभमलयः पाथोजास्ये निविश्य निरित्वराः / किमपि मुखतः कृत्वाऽऽनीतं वितीर्य सरोजिनी. मधुरसमुषोयोगे जायां नवान्नमचीकरन् / / 27 / / अनतीति / पुम्भावेन पुंस्त्वेन हेतुना, प्रगल्भबलाः स्त्रीभ्योऽधिकशक्तिसम्पन्नाः, अलयः भृङ्गाः, अनतिशिथिले ईषद्विकसिते, पाथोजस्य पद्मस्य, आस्ये मुखे, उपरिः भागे इत्यर्थः / प्रसभं बलात् , निविश्य अधिष्ठाय, निरित्वराः निर्गच्छन्तः सन्तः, 'इणनशजिसर्तिभ्यः क्वरप्' इति क्वरप। मुखतः मुखे कृत्वा स्वेत्यर्थः। आनीतम् आहृतम् , सरोजिनीमधुरसं नलिन्याः मकरन्दद्रवम् , वितीर्य दत्वा, उषोयोगे प्रातः, जायां स्वकान्ताम् अलिनीम् , किमपि पूर्वमनास्वादात् अनिर्वचनीयसुस्वादु, नवान्नं नूतनं भोज्यम् , अचीकरन कारयामासुः, भोजयामासुः इत्यर्थः। करोते? चङयुपधाया हस्वः, 'हक्रोरन्यतरस्याम्' इति अणिकत : कर्मत्वम् / बली पुमान् स्थ्यन्तराधिकृतमपि मिष्टमन्नं बलात् आछिद्य स्वस्त्रिय प्रयच्छतीति भावः // 27 // पुरुषत्व होनेसे अतिशय सामर्थ्यवान् (या-धृष्ट ) तथा कुछ विकसित (पक्षास्वल्प विकसित होनेसे कठिन) कमलके मुख में ( पक्षा०-कमलके ऊपर ) बलात्कारसे बैठकर निकलते ( वहांसे उड़ते हुए भ्रमरोंने मुखमें लेकर लाये ) हुए कमलिनी-मकरन्दको देकर प्रातःकालमें स्त्रीके लिए अनिर्वचनीय आनन्दप्रद नवान्नभोजन कराया। [जिस प्रकार स्त्री होनेसे अल्पशक्ति होने के कारण अपने अधिक शक्तिवाले किसीसे कोई भोज्यपदार्थ लानेमें असमर्थ स्त्री के लिए पुरुष होनेसे अधिक शक्तिवाला उसका पति बलात्कारपूर्वक उक्त प्रबल स्त्रीसे भोज्य पदार्थ लाकर उसे सन्तुष्ट करता है, उसी प्रकार अल्पविकसित होनेसे कठिनतर कमलसे मकरन्द-पान करने में अल्पशक्ति स्त्रोके लिए अपने मुखमें उक्त मकरन्दको लाकर दिया, जिससे उस भ्रमरीको अनिर्वचनीय आनन्द हुआ। अथ च-पतिका उच्छिष्ट मकरन्दपानकर अनिर्वचनीय स्वाद होनेसे स्त्रीका आनन्दित होना स्वाभाविक ही है / अथ च-प्रातःकालमें शुभकारक नवान्नभोजन करनेसे भी आनन्दित होना उचित ही है / प्रातःकाल होनेसे कमल कुछ विकसित होने लगे तथा भ्रमर एकसे दूसरे कमलपर उड़-उड़कर जाने लगे] // 27 // मिहिरकिरणाभोगं मोक्तुं प्रवृत्ततया पुरः कलितचुलुकाऽऽपोशानस्य ग्रहार्थमियं किमु ? / . इति विकसितेनैकेन प्राग्दलेन सरोजिनी जनयति मतिं साक्षात्कर्तुर्जनस्य दिनोदये // 28 / / 1. '-मुषायोगे' इति पाठान्तरम्। 2. 'जाया' इति पाठान्तरम् /