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________________ 1232 नैषधमहाकाव्यम् / पत्राङ्करमें चिह्नित हाथी-मकरी आदिसे चिह्नित भूपति ( नल ) के वक्षःस्थलके चिह्नोंसे दोनों ( नल तथा दमयन्ती ) के हृदयद्वयकी एकताको बतलानेवाला वह द्वन्द्व (नल तथा दमयन्ती की जोड़ी ) आनन्दनिद्राको प्राप्त किया अर्थात् वे सो गये / [ परस्पर गाढ़ालिङ्गन कर सोये हुए उन दोनोंका निःश्वास एक दूसरेकी नासिकामें प्रविष्ट होकर दोनोंके प्राणवायुमें अभेद होना सूचित करता था और दमयन्ती के स्तनोंपर कस्तूरी आदिके द्वारा बनाये गये हाथीमकरिका आदिके चिह्न गाढ़ालिङ्गन करते समय नलके वक्षःस्थलपर भी लग गये, अत एव दोनोंका हृदय बाह्य वक्षःस्थल एवं अभ्यन्तर अन्तःकरणमें भी अभेद हो गया। इस प्रकारके वे दोनों सुरतश्रमसे थककर गाढ़ालिङ्गन करके सो गये ] // 148 // श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् / यातोऽस्मिन् शिवशक्तिसिद्धिभगिनीसौभ्रात्रभव्ये महा. काव्ये तस्य कृतौ नलीयचरिते सर्गोऽयमष्टादशः / / 146 / / श्रीहर्षमित्यादि / शिवशक्तिसिद्धिः नाम काचित् स्वकृतिः, सा एव भगिनी उभयोरेव एककर्तृत्वात् स्वसा, तया सह सौभ्रात्रं सुभ्रातृत्वम् / युवादिस्वादण. प्रत्ययः / भ्राता च भगिनी च भ्रातरौ / 'भ्रातृभगिन्यौ भ्रातरौ' इत्यमरः / 'भ्रातृ पुत्रौ स्वसृदुहितृभ्याम्' इत्येकशेषः / तेन सौभ्रात्रेण हेतुना, भव्ये शुभे, उत्कृष्ट इत्यर्थः / एककर्तृकत्वादिस्थं निर्देशः / अष्टौ च दश च .अष्टादश / 'द्वयष्टनः सङ्ख्यायामबहुव्रीयशीत्योः' इत्यात्त्वम् / तेषां पूरणः अष्टादशः। 'तस्य पूरणे डट्' टिलो. पश्च / गतमन्यत् // 149 // इति मल्लिनाथसूरिविरचिते 'जीवातु' समाख्यानेऽष्टादशः सर्गः समाप्तः // 18 // कवीश्वर-समूहके......किया, उसके रचित 'शिवशक्तिसिद्धि' नामक ग्रन्थके ( एक ग्रन्थकारकृत होनेसे ) सहोदर त्वसे सुन्दर इस नलके चरित''यह अष्टादश सर्ग समाप्त हुआ। ( शेष व्याख्याको चतुर्थसर्गके समान समझना चाहिये ) // 149 / / यह 'मणिप्रभा' टीकामें 'नैषधचरित'का अष्टादश मर्ग समाप्त हुआ // 18 // .
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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