________________ 1216 नैषधमहाकाव्यम् / मुख फेरकर मुस्कराती हुई उसे ( दमयन्ती) को देखकर मुस्कुराने का कारण पूछते हुए पति के हस्तकमलमें लज्जावती वधू ( दमयन्ती) ने दर्पण ( देकर उत्तर ) दे दिया अर्थात् स्वयं कुछ नहीं कहकर मुख देखने के लिए उनके हाथमें दर्पण दे दिया / / 121 / / लाक्षयाऽऽत्मचरणस्य चुम्बनाच्चारुभालमवलोक्य तन्मुखम् / सा हिया नतनताननाऽस्मरच्छेषरागमुदितं पति निशः / / 122 / / / लाक्षयेति / सा भैमी, आत्मचरणस्य निजपादतलस्य, चुम्बनात् रतिप्रार्थनाकाले ललाटे एव स्पर्शकरणात् हेतोः, लाक्षया अलक्तकेन, निजचरणालक्तकस्पर्शेनेत्यर्थः / चारभालं रम्यललाटम् , तस्य नलस्य, मुखम् आननम् , अवलोक्य दृष्ट्वा हिया भर्तृकर्तृकचरणपतनस्मरणजलज्जया, नतनतानना अतिनम्रमुखी सती, उदितं प्राप्तोदयम् , शेषरागं तदानीमपि किञ्चिदवशिष्टलौहित्यम् , निशः निशायाः / 'पदः न्नोमास-' इत्यादिना निशायाः निश्भावः / पतिं नाथं चन्द्रम् , अस्मरत् स्मृतवती ललाटस्य अर्द्धचन्द्राकृतित्वात् तत्रनिजपादालतकरागसंस्पर्शाच्च मुखस्य तादृशचन्द्रतुल्यत्वमिति भावः / स्मरणालङ्कारः // 122 // ( प्रणयकुपित दमयन्तीको प्रसन्न करने के लिए उसके चरणपर गिरकर रमणसे, या'पगिनी' जातीया दमयन्तीका 'पद्मबन्ध' नामक आसन-विशेष करके रमण करनेसे ) चुम्बन (छुने ) से अपने ( दमयन्तीके ) चरणों के लाक्षारस ( महावर ) से सुन्दर ललाटवाले नलमुखको देखकर ( उस समयकी अपनी धृष्टताका स्मरण होने के कारण उत्पन्न हुई ) लज्जासे अतिशय नीचे मुखकी हुई उस ( दमयन्ती ) ने थोड़ी बची हुई लालिमावाले उदित निशापति (चन्द्रमा) का स्मरण किया / [ दमयन्तीके चरणालक्तक रससे रक्तवर्ण ललाटवाले प्रियमुख को देखकर ईषद्रक्तवर्ण चन्द्रमाको देखने से जितनी प्रसन्नता होती है, उतनी प्रसन्नता हुई / ईषद्रक्तवर्ण नलका ललाट ईषदरुणिमायुक्त अर्द्धचन्द्रवत् सुन्दर था ] // 122 / / स्वेदभाजि हृदयेऽनुबिम्बितं वीक्ष्य मूर्त्तमिव हृद्गतं प्रियम् / निर्ममे धुतरतश्रमं निजैीनताऽतिमृदुनासिकानिलैः / / 123 / / स्वेदेति / स्वेदभाजि स्विन्ने, हृदये वक्षसि, अनुबिम्बितं प्रतिबिम्बितम् , अत एव हृदूत नियतचिन्तया हृदयावस्थितम् , चिन्तनीयत्वादमूर्तमपीति भावः / प्रियं कान्तं नलम् , मूर्त मूर्तिमन्तमिव, तीच्य दृष्ट्वा, हीनता लज्जाऽवनता, दमयन्तीति शेषः / निजैः स्वीयैः, अतिमृदुभिः अति कोमलैः, मन्दवेगैरित्यर्थः / नासिकानिलः निःश्वासमाश्तैः, धुतः निरस्तः, रतश्रमः सुरतजनितक्लमः यस्य तादृशम् , निर्ममे चकार, इवेति शेषः / तस्य श्रममपनुदतीव स्थिता इत्युप्रेक्षा // 123 // ___ स्वेदयुक्त अपने हृदय में प्रतिबिम्बित ( अत एव निरन्तर चिन्तन करनेसे ) हृदयस्थ प्रिय ( नल ) को मूर्तिमान्के समान देखकर लज्जासे नम्रमुखी उस दमयन्तीने अपने अतिशय मन्द निश्श्वासवायुसे [ सुरतमें उत्पन्न ) श्रमसे रहित-सा कर दिया। ( अथवा