________________ 1214 नैषधमहाकाव्यम् / नलहृदये, भादरात् पुनरपि रमणाग्रहात् , लक्षं व्याजम् , उद्दीपकतया पुनः सुरताय हेतु स्वरूपमित्यर्थः / अलभत प्राप्नोत् , बहुमतमभूदित्यर्थः / सर्वावस्थामनोहरं तन्मुखमिति भावः // 117 // ___ उस सुरतान्तकाल में ( रतिकालमें किये गये अपने नामचापल्यजन्य व्यापारके स्मरणसे ) बहुत ही लज्नित, (रतिकालमें पतिको सन्तुष्ट करनेकी अपने में शक्ति होनेसे ) कुछ गर्वसहित (पाठा०-(सुरतकी अभिलाषाके स्मरण आनेसे ) कुछ कामोद्दीप्त), ( रतिकालमें अधिक श्रम होनेसे ) अतिशय थका हुआ तथा ( कामवेगके कुछ शान्त होनेसे ) कुछ सुखी दमयन्तीका मुख प्रिय ( नल ) के चित्तमें आदरसे अर्थात् रमण करनेके आग्रहसे लक्ष ( बहाना-व्याम) के पाया अर्थात वैसे दमयन्तीके मुखको देखकर नलके चित्तमें पुनः कामोहोपन हो गया / ( अथवा-नलके विषय में लाखों पाया अर्थात् अधिक श्रेष्ठताको प्राप्त किया)॥ 117 // स्वेदवारिपरिपूरितं प्रियारोमकूपनिवहं यथा यथा / नैषधस्य हगपात तथा तथा चित्रमापदपतृष्णतां न सा / / 118 / / स्वेदेति / मषधस्य नलस्य, दृक दृष्टिः, स्वेदवारिणा धर्मोदकेन, परिपूरितं सम्भृतम् , प्रियायाः भैम्याः, रोमकूपाणां लोमच्छिद्राणाम , निवहं समूहम् , यथा यथा येन येन, यावता परिमाणेनेत्यर्थः / अपात् पिबति स्म / पिबतेलुंडि 'गातिस्था-' इत्यादिना सिचो लुक / सा दृष्टिः, तथा तथा तेन तेन, तावता परिमाणेनेत्यर्थः / अपतृष्णतां पिपासानिवृत्तिम् , न आपत् नालमत, वितृष्णा नाभूदित्यर्थः / इति चित्रम् आश्चर्यम् , बहुकूपसम्भृतोदकपानेऽपि तृष्णा न अपगता इति विरुद्धमित्यर्थः / लोकोत्तरवस्तुदर्शने तृष्णावर्द्धते एवेति विरोधाभासोऽलङ्कारः॥ ___ नलकी दृष्टि ( नेत्र ) ने ( सुरतश्रमजन्य ) पसीनेके जलसे परिपूर्ण हुए दमयन्तीके रोमकूप-समूहको जैसे-जैसे अर्थात् जितनी अधिक मात्रामें पान किया ( दमयन्तीके रोमरोमसे निकलते हुए पसीनको जितना ही देखा ), उस (नल-दृष्टि ) ने वैसे-वैसे अर्थात् उतना ही अधिक मात्रामें तृप्तिको नहीं प्राप्त किया अर्थात् सन्तुष्ट नहीं हुई, यह आश्चर्य है। ] अधिकसे अधिक मी प्यासा हुआ व्यक्ति अञ्जलि आदिसे पानी पीकर भी पिपासा शान्तकर सन्तुष्ट हो जाता है, किन्तु ऊपरतक जलसे परिपूर्ण दमयन्ती-रोम-कूप-समूहके ( अलको ) अत्यधिक पीने पर भी नल-दृष्टिकी पिपासा बनी ही रही ( नहीं शान्त हुई ) यह आश्चर्य है / लोकोत्तर वस्तु देखने से उसे पुनः पुनः देखने की इच्छा बनी ही रहती है, यह उक्त विरोधका परिहार है / उक्तरूप दमयातीको बार-बार देखकर नलका काम पुनः उद्दीप्त हो गया ] // 118 // वान्माल्यकचहस्तसंयमन्यस्तहस्तयुगया स्फुटीकृतम् / 1. 'वीत-' इति पाठान्तरम् /