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________________ 1204 नैषधमहाकाव्यम् / खाने ( पा०-सुपारीका माग अधिक होने, द्वितीयपाठा०-पान चबानेसे क्रमशः बढ़ी हुई सुपारी की लालिमा ) से कषाय रसवाले ( पक्षा०-मुगन्धयुक्त ) तथा (पानमें डालने योग्य ) कर्पूर-विशेषसे सुरभित अधररूप अमृत ( पक्षा०-परस्पर किये जाते हुए मधुर होनेसे अमृत तुल्य अधरपान ) से सम्यक् प्रकारसे मधु ( मद्य-) पानके विलास ( विशेष भ्रान्ति-नशा ) को प्राप्त किया ! [ जिस प्रकार कोई व्यक्ति सुपारी आदिकी अधिकतासे कषायरसयुक्त मद्यका पानकर नशेसे भ्रान्त ( आनन्द या नशेसे युक्त ) होता है, उसी प्रकार दमयन्ती तथा नलने भी सुरतमें अधिक पान चबानेसे अरुणवर्णके अधरामृतका परस्परमें पानकर ( परस्पर अधर-चुम्बनकर ) सम्यक् प्रकारसे कामोन्मत्त हो गये ] // 98 // आह नाथवदनस्य चुम्बतः सा स्म शोतकरतामनक्षरम् / सीत्कृतानि सुदती वितन्वती सत्त्वदत्तपृथुवेपथुस्तदा / / 99 // आहेति / सुदती मनोज्ञदशना, सा भैमी, तदा अधरपानकाले, सीस्कृतानि दंशनवेदनया सीत्कारान् , वितन्वती कुर्वती, तथा सत्त्वेन सत्त्वगुणोद्रेकेण, दत्तः जनितः, पृथुः महान् , वेपथुः कम्पाख्यः सात्विकभावः यस्याः सा तादृशी च सती, चुम्बतः चुम्बनं कुर्वतः, नाथवदनस्य प्रियमुखस्य, शीतकरतां शीतांशुत्वमेव शीत. मिति भावः // 99 // उस ( सुरत-चुम्बन ) कालमें ( दन्तदंशनवेदनासे ) सीत्कार करती हुई तथा सात्त्विक भावसे कम्पित होती हुई उस मुदती ( दमयन्ती ) ने चुम्बन करते हुए नलमुखको बिना अक्षरोच्चारण किये ही शीतकर ( ठण्डा करनेवाला, पक्षा०-ठण्डे किरणोंवाला अर्थात् चन्द्रमा) कह दिया / [ ठण्ड लगने पर मनुष्य 'सी-सी' शब्द करता हुआ काँपता और कुछ कहता नहीं है, दमयन्ती भी सुरतचुम्बनमें दन्त-दंशनसे पीडित हो 'सी-सी' करती थी और सात्त्विक भावके उदय होनेसे कम्पित भी होती थी, अत एव वह मानो बिना अक्षरोच्चारण किये ही यह चुम्बन करने वाला नल-मुख शीतकर ( ठण्डक करनेवालापक्षा०-चन्द्र ) है' ऐसा कहती थी। नलके चुम्बनसे दमयन्तीको चन्द्रस्पर्श के समान परमामन्द हुआ ] / / 99 // चुम्बनाय कलितप्रियाकुचं वीरसेनसुतवक्त्रमण्डलम् | प्राप भत्तुं ममृतैः सुधांशुना सक्तहाटकघटेन मित्रताम् / / 180 / / चुम्बनायेति / चुम्बनाय स्तनोपरि चुम्बनकरणाय, कलितः गृहीतः, मुखेनैव स्पृष्ट इत्यर्थः / प्रियाकुचः भैमीस्तनो येन तादृशम्, वीरसेनसुतवक्त्रमण्डलं नलमुखबिम्बम् / कर्तृ / अमृतैः सुधाभिः, भत्त पूरयितुम्, सक्तः स्पृष्टः, हाटकस्य कन. कस्य, घटः कुम्भो यस्मिन् तादृशेन, सुधांशुना चन्द्रेण, मित्रतां सहशताम् , प्राप
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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