________________ 1202 नैषधमहाकाव्यम् / प्रवृत्तौ दुर्बलस्य प्रबलकत्त कहासताडनयोरवश्यम्भाव्यत्वादिति भावः / अशक्यार्थप्रवृत्ताः परिहासास्पदं भवन्तीति निष्कर्षः // 95 // ___ घटके समान बड़े तथा कठिन दमयन्तीके स्तनद्वयने कोमल (होते हुए भी) उन दोनोंको स्पर्शकर मर्दन करने के लिए इच्छुक पतिके हस्त-द्वयरूपी कमलद्वय (कमल तुल्य मृदु दोनों हाथ ) को हारके प्रकाश (या-हाररूपी हास = उपहास ) से आच्छादित ( पक्षा०-तिरस्कृत ) कर दिया / ( अथवा-"मर्दन करनेके लिए इच्छुक उन दोनों हार्थोको मृदु जानकर उक्त प्रकारसे उपहास कर दिया ) / [ दमयन्तीके दोनों स्तन घटके समान विशाल तथा कठिन थे, उनको नलके मृदुतम कमल तुल्य हाथोंने मर्दन करना चाहा तो उन दोनों स्तनोंके हारका प्रकाश नलके उन दोनों हार्थोपर पड़ने पर ऐसा मालूम पड़ता था कि कठिन एवं विशाल स्तन कोमल एवं लघु नलहस्तको हँस रहे हैं कि तुम दोनों कोमल तथा लघु होनेसे हमारा मर्दन नहीं कर सकते, अत एव तुम दोनों का यह प्रयास व्यर्थ है / लोकमें कोई असमर्थ एवं लघु व्यक्ति कठोर एवं महान् व्यक्तिको नहीं दबा सकता, यदि दबाता है तो भी वह उपहासास्पद ही होता है। यद्यपि 'अकर्मकठिनौ हस्तौ-' इस वचन के अनुसार राजाके हाथका कठोर होना ही शास्त्रोंमें उत्तम माना गया है, तथापि नलके हाथोंको कमलवत् कोमल कहकर उसकी अपेक्षा दमयन्तीके स्तनोंका अधिक काठिन्य योतित करनेसे शास्त्रलक्षणसे कोई विरोध नहीं होता] // 95 // यौ कुरङ्गमदकुङ्कुमाञ्चितौ नीललोहितरुचौ वधूकुचौ / स प्रियोरसि तयोः स्वयम्भुवोराचचार नखकिशुकार्चनम् // 66 / / याविति / यौ वधूकुचौ दमयन्तीस्तनौ, कुरङ्गमदकुङ्कुमाभ्यां कस्तूरिकाश्मीरजाभ्याम् , अञ्चितौ पूजितौ, लेपनेन शोभिती सन्तौ इत्यर्थः / अत एव नीला कस्तूरोलिप्तस्थाने कृष्णवर्णा च, सा लोहिता कुङ्कुमलिप्तस्थाने रक्तवर्णा च / 'वर्णो वर्णेन' इति तत्पुरुषसमासः / रुच प्रभा ययोः तादृशी, अन्यत्र-नीलः कण्ठे लोहितः केशेषु इति नीललोहितः महादेवः, तस्मिन् रुक रुचिः, अनुराग इत्यर्थः। ययोः तादृशी, बभूवतुरिति शेषः / प्रियायाः भैम्याः, उरसि वक्षसि, स्वयम्भुवोः यौवनागमे स्वतः एव उत्पन्नयोः, अन्यत्र-स्वयम्भूमूयोश्च, तयोः वधूकुचयोः, सः. तलः, नखः नख. ततैरेव, किंशुकैः पलाशकुसुमः, रक्तवर्णतासाम्यात् वक्रतारूपाकारसाम्याच्चेति भावः। अर्चनं पूजनम् , आचचार चकारेव / स्वयम्भूत्वेन देवत्वात् तयोरर्चनया औचित्या. दिति भावः / गम्योत्प्रेक्षा // 96 // __ कस्तूरी तथा कुङ्कुम ( के लेप ) से शोभित ( अत एव क्रमशः ) नील तथा लाल रंगवाले ( पक्षा०-नीललोहित अर्थात् शिवजीमें अनुरागवाले अर्थात् शिवतुल्य ) जो वधू (दमयम्ती) के दोनों स्तन थे, प्रियाके वक्षस्थलपर ( यौवनावस्थामें ) स्वयमेव उत्पन्न (पक्षा०- स्वयम्भू मूर्तिवाले ) उन दोनों ( स्तनों, पक्षा०-शिवजी) की उस (नल) ने ( वक्राकार एवं