________________ अष्टादशः सर्गः। - जिस कारण कामदेवने नलको विना देखे दमयन्तीको ठहरनेका स्थान नहीं दिया (कामप्रेरित दमयन्ती नलको बिना देखे नहीं ठहर सकती थी, अत एव सदा नलको देखना चाहती थी ), किन्तु लज्जाने उस ( नल ) को देखने का स्थान नहीं दिया ( किन्तु लज्जावश वह दमयन्ती नलको नहीं देख पाती थी ); उस कारण उस ( दमयन्ती) की दृष्टियां नलकी ओर बढ़ों, ( नलको दमयन्तीने बार-बार देखने के लिए उधर नेत्र फैलाये), इसके बाद लज्जित वे ( दमयन्तोको दृष्टियां ) फिर मार्गले हो सङ्कुचित हो गयी ( कर लौट आयो / अर्थात् नलका सामना होते ही उनको बिना देखे ही दमयन्तीने 'लज्जासे अपने नेत्राको उबरसे फेर लिया ) / [ इससे काम तथा लज्जाका समान बल होनेसे भावसन्धिमें दमयन्तीका रहना सूचित होता है ] // 50 // नानया पतिरनायि नेत्रयोर्लक्ष्यतामपि परोक्षतामपि / वीक्ष्यते स खलु यद्विलोकने तत्र तत्र नयने ददानया // 51 // नेति / अनया भैम्या, पतिः नलः, नेत्रयोः नयनयोः, लचयतां विषयतामपि, न अनायि न नीतः, लज्जावशादिति भावः / तथा परोक्षताम् अविषयतामपि, न राकरणे प्रकारान्तराभावात् कथमेषोक्तिः सङ्गच्छते ? इत्याह-यत् यस्मात् , विलोकने दर्शने निमित्ते, दर्शनार्थमित्यर्थः / तत्र तत्र तेषु तेषु विषयेषु, आदर्शादौ इति भावः / नयने ददानया दत्तदृष्टया तया, स मलः, आदर्शादौ प्रतिबिम्बित इति भावः / वीच्यते स्म अवलोक्यते स्म खलु / अवर्जनीयता वीक्षितः एव प्राय इति भावः // 51 // इस ( दमयन्ती ) ने पति ( नल ) को नेत्रोंका लक्ष्य नहीं किया अर्थात् नलको नहीं देखा और उनको परोक्ष भा नहीं किया अर्थात् अप्रत्यक्ष भो नहीं किया-देखा भो; क्योंकि जिस-जिस ( दर्पण, मणिस्तम्भादि रूप) दर्शन-निमित्तोंमें वह (नल ) दृष्टिगोचर होते थे, उस-उस (दपेण, मणिस्तम्भादिरूप दर्शन-निमित्तक पदार्थों ) को यह (दमयन्ती) देखती थी। [लज्जावश यद्यपि दमयन्तीने नलको सामनेसे नहीं देखा, किन्तु दर्पण तथा मणिस्तम्मों में प्रतिबिम्बित नलको देखा ही / इस कारण उसका नळको प्रत्यक्ष तथा परोक्षदोनों करना असङ्गत चहीं होता ] // 51 // ___ वासरे विरहनिःसहा निशां कान्तयोगसमयं समैहत / - सा हिया निशि पुनर्दिनोदयं वाञ्छति स्म पति केलिलज्जिता // 52 / / वासरे इति / सा भैमी, वासरे दिवसे, विरहस्य विच्छेदस्य, निःसहा सहनास. मर्था सती / पचाद्यच / कान्तयोगसमयं प्रियसमागमकालम् , निशां रात्रिम, समहत ऐच्छत् , निशि पुनः रात्रौ तु, पत्युः भर्तुः, केलिषु अनङ्गकोडासु, लज्जिता 1. 'कान्तसङ्गसमयम्' इति पाठान्तरम् /