________________ अष्टादशः सर्गः। 1173 सत्कार किया ), उस कारण मुझे भी तेरी पूजा ( अपना हार पहनाकर तेरा आदर ) करना उचित है' ऐसा कहकर अपने हारको पहनाते हुए उस (नल ) ने उस (दमयन्ती ) के कोरकतुल्य ( छोटे-छोटे) दोनों स्तनोंका स्पर्श किया // 42 // नीविसीम्नि निहितं स निद्रया सुध्रुवो निशि निषिद्धसंविदः ! कम्पितं शयमपासयन्निजंदोलनर्जनितबोधयाऽनया / / 43 // नीवीति / सः नलः, निशि रात्री, निद्रया स्वापेन,निषिद्धसंविदः निवृत्तसंज्ञायाः, सुभ्रवः सुन्दरभ्रशालिन्याः प्रियायाः, नीविसीम्नि कटीवस्त्रप्रन्थिसमीपे, निहितं स्थापितम् , उन्मोचनाय इति भावः। अत एव कम्पितं सत्त्वोदयात् सकम्पम्, निजं स्वीयम् , शयं पाणिम्, दोलनः पाणिकम्पनैः, कम्पनाद्धेतोः दमयन्त्याः गात्रे सहसा संलग्नत्वात् इति भावः / जनितबोधया प्रबुद्धया, अनया भैम्या, प्रयोज्यया / अपासयत् अपासारयत् // 43 // रात्रिमें निद्रासे चेतनाशून्य सुन्दर भ्रवाली (दमयन्ती ) के नीवि (फुफुनी-नाभिके नीचेवाली वस्त्रग्रन्थि ) पर ( उसे खोलनेके लिए) रखे हुए (किन्तु सात्त्विक भावोदयजन्य ) कम्पनसे युक्त अपने हाथको ( पाठा०-हाथको आनन्द प्राप्त करते हुए ) उस नलने हिलनेसे जगी हुई उस दमयन्तीसे हटा ( पाठा०-छुड़ा) लिया // 43 // स प्रियोरुयुगकञ्चकांशुके न्यस्य दृष्टिमथ सिध्मिये नृपः / आववार तदथाम्बराञ्चलैः सा निरावृतिरिव पावृता / / 44 // स इति / सः नृपः नलः, प्रियायाः दमयन्त्याः, ऊरुयुगस्य सक्थिद्वयस्य, कञ्चुके चोलके, आवरके इत्यर्थः / अंशुके सूक्ष्मवस्ने, दृष्टि नेत्रम्, न्यस्य निक्षिप्य, सिध्मिये स्मितवान् , सूक्ष्मवस्त्राभ्यन्तरात ऊरुयुगसौन्दयं दृष्ट्वा आनन्दोदयादिति भावः / अथ दर्शनानन्तरम् , सा दमयन्ती, निरावृतिरिव आवरणरहितेव, साक्षादृष्टोरुयुगा इवेत्यर्थः / अत एव पावृता लज्जामग्ना सती, तदूरुयुगम् , अम्बराञ्चलै वस्त्र. प्रान्तः, आववार आच्छादयामास / आवृतमपि अनावृतमितीव आवृणोदिति त्रपातिशयोक्तिः // 44 // ___ इस ( नीविसे हाथ हटाने ) के बाद उस (नल) ने प्रिया (दमयन्ती) के उरुद्वयको छिपानेवाले वस्त्रमें दृष्टि रखकर अर्थात पहने हुए वस्त्रको देखकर ( अत्यन्त महीन वस्त्र होनेसे दृश्यमान ऊरुद्वयको देखनेसे उत्पन्न आनन्दके कारण, अथवा-अत्यन्त महीन वस्त्र होनेसे मैं आच्छादित भी तुम्हारे रुदयको देख सकता हूँ-इस भावसे) मुस्कुरा दिया। इसके बाद आवरणरहित-सी लज्जित उस (दमयन्ती) ने उस (ऊरुदय, या-ऊरुद्वयावरक वस) को वस्रके अबलों (प्रान्त भागों) से आवृत कर लिया / [ उक्त आशयसे १.'-मपास बन्नयम्' इति पाठान्तरम् /