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________________ / अष्टादशः सर्गः। 1961 इन्द्रप्रासादके विजयसे प्राप्त हुई जिस (प्रासाद ) को कोर्ति उड़ते हुए कबूतरों के झुण्डके बहानेसे संसारको उज्ज्वल करती थो। [ये कबूतर नहों उड़ते; किन्तु इन्द्रप्रासाद-विजय जन्य इस प्रासादको शुम कोर्ति ऊररको बढ़ रही थी ] // 21 // गोरभानुगुरुगेहिनास्म रोद्भूतभावमितिवृत्तमाश्रिताः | रेजिरे यदाजरेऽभि नोतिभिनाटेका भरतभारतोसुधाः / / 22 // गौरेति / यस्प सौवस्य, अजिरे प्राङ्गगे, गौरभानोः सिताशोः, चन्द्रस्येत्यर्थः / गुरुगहिन्यां बृहस्पतिपत्न्यां तारायाम्, स्मरोद्भूतभाव कामजव्यापारमेव, इतिवृत्तं वर्गनोयविश्यम्, आश्रिताः अवलम्बिताः, तदुर्गनपराः इत्यर्थः / भरतमारतोसुधाः नाट्य शास्त्रस्य सारभूनाः अमृतकल्पाः, नाटिकाः चतुरङ्करूपकविशेषाः, 'चतुरका तु नाटिका' इत्युक्तलक्ष गात्, अभिनीतिभिः अभिनयैः, रेजिरे शुशुभिरे // 22 // चन्द्रमाका गुरुपत्नो (तारा) में कामजन्य (पाठा०-कामविषक मर्यादोलङ्घन भावरूप ) इतिहास का आश्रय किया हुआ नाट्यशास्त्र में अमृतरूप चार अङ्कोंवाला लघु नाटक-विशेष जिस (प्रासाद) प्राङ्गगने अभिनात (प्रदर्शित ) होनेसे शोभते थे / (अथवाचन्द्रमा तथा गुरुपत्नी ( तारा) के कामज मात्र (पाठा०-कामका अमर्यादित) भावरूप इतिहास....") // 22 // पौराणिक कथा-कामरोडित चन्द्रमाने ए5 समय 'तारा' नामको गुरुपत्नी के साथ सम्भोग किया, जिससे 'बुध' नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। शम्भुदारुवनसम्भूजिक्रियामाधत्रजवधूविलासयोः / - गुम्फितरुशनसा सुभाषितर्यस्य हाटकविटङ्कमङ्कितम् / / 23 / / / शम्भुदाविति / यस्य सौधस्य, हाटकविटकं हिरण्मयकपोतपालिका, 'हिरण्यं हेम हाट कम्' 'करोतपालिकायान्तु विटङ्क पुनपुंसकम्' इति चामरः। शम्भोः हरस्य, दारूबने देवदारुकानने, सम्भुजिकिरा कोच नोभिः सह सम्भोगण्यापारः, माधवस्य श्रीकृष्णस्य, व्रजवधूविलासः गो गङ्गनाविहारश्च तयोः विषये, उशनसा शुक्राचार्य ग, गुम्फितः विरवितः, सुभाषितैः सूक्तः, शिवगविहारवर्ग रित्यर्थः, अङ्कितं चित्रितम् / तत्र लिखितम् इत्यर्थः // 23 // * जिस (प्रासाद ) को अर्गावित करोतपालो, शिवजोकी (मन्दरकन्दरामें ) दारुवनसे (पार्वती के साथ दिव्य सहस्र वर्ष पर्यन ) सम्भोग क्रियाका तथा श्रीकृष्णजो के व्रजबालाओं के साथ विलास ( राप्त कोडा) का शुका वार्य के द्वारा बनाये गये (इलोकमय) सुमाषितोंसे पूर्ण थी अर्थात जिसके सुवर्गमयो कोतपालियापर शिवक्रोडा तथा कृष्णको रासलीलाके कवि शुका वार्यकृत सुन्दर वर्णन लिखे गये थे // 23 // १.'-स्मरोवृत्त--' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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