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________________ 1956 नैषधमहाकाव्यम् / था कि ये दीवाने ही परस्पर व थादि कर रही है तथा तारों के द्वारा सञ्चालित पुतलियाँ अनेक प्रकारकी चेष्टाएँ करके आश्चयित करती थीं, ऐसा वह गृहोद्यान था ] // 13 // तामसीष्वपि तमीषु भित्तिगै रत्नरश्मिभिरमन्दचन्द्रिकः / यस्तपेऽपि जलयन्त्रपातुकासारदूरधुततापतन्द्रिकः / / 14 / / तामसीरिवति / यः सौधः, तामसीषु तमस्विनीषु अपि, ज्योत्स्नादिभ्य उपस. यानम' इति मत्वर्थीयोःण-प्रत्ययः / तमीषु रात्रिए, भित्तिर्गः कुडयगतः, रत्नर. श्मिभिः मणिप्रभाभिः, अमन्दा प्रभूता, चन्द्रिका ज्योत्स्ना यस्य तादृशः, तथा तपेऽपि ग्रीमेऽपि, जलयात्रेभ्यः जलोत्सारक यन्त्रविशेषेश्यः, कृत्रिमप्रस्रवणेभ्यः इत्यर्थः / पातुकैः पतनशीलैः, भासा धारासम्पातः, दूरम अतिशयेन, धुता निरा.. कृता, तापतन्द्रिका ग्रीमजनितमोहप्रायावस्था यस्य सः तादृशः // 14 // जो ( प्रासाद ) अन्धकार युक्त रात्रियों में भी दीवालों में जड़े गये रत्नोंकी किरणोंसे तीव्र चाँदनी ( प्रकाश ) से युक्त था और ग्रीष्मकाल में भी फौव्वारोंसे गिरती हुई जलधारावृष्टि से दूरसे ही सन्तापकी तन्द्रा ( अवस्था ) को नष्ट कर देता था // 14 // यत्र पुष्पशरशास्त्रकारिका शारिकाऽध्युषितनागदन्तिका / भीमजानिषधसार्वभौमयोः प्रत्यवैक्षत रते कृताकृते / / 15 / / यत्रेति / यत्र सौधे, पुष्पशरशास्त्रस्य वात्स्यायनादिप्रणीतकामतन्त्रस्य, कारिका. की, प्रायश एव लोकमुखे श्रवणात् तत्पुनरुक्तिकारिणीत्यर्थः / तथा अन्युषिताः अधिष्ठिता, नागदन्तिका भित्तिनिर्गतदारुविशेषः यया तादृशी 'नागदन्ती द्विपरदे गृहानिर्गतदारुणि' इति मेदिनी। शारिका शारीतिख्यातः पक्षिविशेषः / 'शारिका शारी' इति यादवः / भीमजानिषधसार्वभौमयोः भैमीनल्योः, रते सुरते, कृताकृते विहिताविहिते, कामशास्त्रानुसारेण सुरतमनुष्टितं न वा इत्यादिरूपे इत्यर्थः / प्रत्यवै. सत निपुणभावेनापश्यत् / इदं कृतम् इदं न कृतम् इति अनुसन्दधे इत्यर्थः // 5 // जिस (प्रासाद ) पर कामशास्त्रको करनेवाली (पक्षा०-वात्स्यायनकृत कामशास्त्रके श्लोकरूपिणी ) तथा दीवालों की खुटियोपर (या-पिजड़ों में ) बैठी हुई सारिका पक्षी दमयन्ती और निषधेश्वर नलके किये गये तथा नहीं किये गये रत ( अथवा-विये गये तथा नहीं किये गये रसविषयक कार्य) को देखती थी। [शास्त्रमें इलोक रूपमें कारिका होती है, यथा-साङ्खयकारिका, कारिकावली आदि / तथा-यशमें यशीय शास्त्रोक्त कार्यके न्यूनाधिक्यको देखनेवाला ब्रह्मा होता है, वैसे वह सारिका ( मैना) पक्षी थी। दमयन्ती तथा नसके रतका वह सारिका अनुकरण करती थी ] / / 15 / / यत्र मत्तकलविङ्कशारिकाश्लेष्यकेलिपुनरुक्तिवत्तयोः / कापि दृष्टिभिरवापि वापिकोत्तंसहसमिथुनस्मरोत्सवः / / 16 / / 1. 'शीलिताश्लील-' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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