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________________ सप्तदशः सर्गः। 1145 क्षत्रिय राजा (नल ) से उस प्रकार अधिक भयको प्राप्त किया, जिस प्रकार तृग-गुल्मादिसे घरको बनाया हुआ पुरुष, अग्निसहित ('कबूतरके पेटमें अग्नि रहती है। ऐसा लोकख्याति है-इसी कारण वह कङ्कड़ आदिको भी पचा डालता है, अथवा-अग्नि लिये हुए ) देखे गये पक्षी कबूतर से डरता है / ( अथवा-बहेड़ेपर स्थित वह कलि राजाके अग्निहोत्री राजाके यज्ञमें दीक्षित द्विज 'गौतम' नामक पुरोहितसे .बहुत डर गया। अथवा-अग्नि-सहित गृहादिके ऊपर देखे गये कबूतर पक्षीसे तृण-गुलम आदिके घरको बनाया हुआ पुरुष (इसका बैठना घरमें आग लगनेका अशुभ शकुन सूचित करता है इस भयसे ) बहुत डर जाता है, वैसा वह कलि भी बहुत डर गया)। [ 'राज्ञः' तथा 'द्विजात' नलका विशेषण द्वार। ( नलको राजा तथा क्षत्रिय कहने ). से उसका स्वाभाविक दण्ड दानका सामर्थ्य होना और 'साग्नि' तथा 'दीक्षित' विशेषण होने ( अग्निहोत्री और यशमें दीक्षित कहने ) से तपोजन्य प्रभावसे शापद्वारा दण्डित करनेका सामर्थ्य होना सूचित होता है ] // 212 // बिभीतकमधिष्ठाय तथाभूतेन तिष्ठता / तेन भीमभुवोऽभीकः स राजर्षिरधर्षि न / / 213 / / बिभीतकमिति / तथाभूतेन नलरन्ध्रान्वेषिणा, अत एव बिभीतकम् अक्षवृक्षम् , अधिष्ठाय अधिरुह्य, तिष्ठता विद्यमानेन, तेन कलिना, भीमभुवः भैम्याः, अभिकामयते इति अभीकः कमिता, कामुक इत्यर्थः / 'अनुकाभिकाभीकः कमिता' इति कन्प्रत्ययान्तो निपातनात् साधुः / 'कामुके कमिताऽनुकः / कम्रः कामयिताऽभीकः' इत्य. मरः। सः राजर्षिः मुनितुल्यो राजा नलः, न अधर्षि न अभ्यभावि, न पीडयितुं शक्त इत्यर्थः / भूतावासापराख्यं बिभीतकवृक्षमाश्रित्य तिष्ठता तथा तादृशेन, अतिमहता इत्यर्थः। भूतेन देवयोनिविशेषेण भीमभुवो भयङ्करस्थानात् , अभीको निर्भीकः, राजर्षिः राजश्रेष्ठः, धार्मिकः इत्यर्थः / भूतापसारकमन्त्रवादी इत्यर्थो वा, न पराभूयते इति ध्वनिः, तेन च राजमन्त्रवादिनोरौपम्यं गम्यते // 213 // ___उस प्रकार ( नलद्वेषेच्छुक, या-नलका छिद्रान्वेषी) तथा बहेड़ेके पेड़का आश्रयकर रहते हुए उस कलिने भीम कुमारी ( दमयन्ती) के कामुक उस राजर्षि ( राजा होते हुए भी सदा धर्माचरणमें संलग्न रहनेसे ऋषिरूप या ऋषितुल्य नल) को पराजित नहीं कर सका। (पक्षा०-भूनावास ( भूतोंका आवास स्थान अर्थात् बहेड़े) पर रहनेवाले भयङ्कर (या-अतिमहान् ) उस प्रेतयोनि प्राप्त भूतने भयङ्कर भूमि ( अथवा-भयके उत्पत्तिस्थान, अथवा-रणभूमि, अथवा-शङ्करजीकी भूमि) से निमीक उस (धर्माचरणादि या-भूतप्रेतादि निवारक-मन्त्रशानमें सुप्रसिद्ध ) राजर्षि (नल).को पराभूत नहीं किया)॥ 213 / / तमालम्बनमासाद्य वैदर्भीनिषधेशयोः कलुषं कलिरन्विष्यन्नवात्सीद् वत्सरन् बहून् || 214 / /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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