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________________ 1136 सप्तदशः सर्गः। क्रतौ महाव्रते पश्यन् ब्रह्मचारीत्वरीरतम् | जज्ञौ यज्ञक्रियामज्ञः स भाण्डाकाण्डताण्डवम् // 200 // क्रताविति / अज्ञः मूर्खः, सः कलिः, महाव्रते महाव्रताख्ये, ऋतौ यागे, ब्रह्मचा. रिणः वर्णिनः, इस्वर्याः कुछटायाश्च, रतं मैथुनम् , 'महावते ब्रह्मचारिपुंश्चल्योः सम्प्र. वादः' इति श्रतिविहितं ग्राम्यभाषणादिकं वा, 'इणन जिमतिभ्यः करप्' / 'असती कुलटेवरी' इत्यमरः। पश्यन् विलोकयन् , यज्ञक्रियां यागव्यापारम् , भाण्डानाम् अश्लीलभाषिणाम् , अकाण्डताण्डवम् असमयकृतोद्भुतनृत्यमिव, जज्ञौ मेने, भण्डचे. ष्टितममन्यतेत्यर्थः // 20 // मूर्ख वह ( कलि ) 'महाव्रत' नामक यज्ञमें ब्रह्मचारी तथा पुंश्चली स्त्रीके रत ( मैथुन, अथवा-अश्लील सम्भाषण ) को देखता हुआ यज्ञकार्यको भाँड़ोंका असामयिक नृत्य ही माना। [जिस प्रकार भाँड़लोग सबके समक्ष अश्लील गाली-गलौज करते हैं, कलिने 'महाक्रतु' यज्ञमें ब्रह्मचारी तथा व्यभिचारिणीके रतको देखकर उक्त यशको भी वैसा ही समझा, क्योंकि वह मूर्ख था; किन्तु 'महाव्रते ब्रह्मचारिपुंश्चल्योः सम्प्रवादः' इस उपनिष. द्वाक्यानुसार वैसा करना धर्म-प्रतिकूल नहीं था ] // 200 // यज्वभार्याश्वमेधाश्व.लिङ्गालिङ्गिवराङ्गतान् / दृष्ट्वाऽऽचष्ट स कर्तारं श्रुतेर्भण्डमपण्डितः / / 201 / / यज्वेति / अपण्डितः मूर्खः, सः कलिः, यज्वभार्यायाः यजमानस्य पत्न्याः, अश्वमेधे तदाख्ययज्ञे, अश्वस्य यज्ञियाश्वस्य, लिङ्गेन मेहनेन, आलिङ्गिवराङ्गता संयोजितयोनिताम् , 'निरायत्याश्वस्य शिश्नं महिष्युपस्थे निधत्ते' इति श्रुतिविहितामिति भावः / दृष्ट्वा वीचय, श्रुतेः कर्तारं वेदप्रणेतारम् , भण्डम् असजनम् , अश्लीलवि. षयोपदेष्टारमिति यावत् / आचष्ट अकथयत्। केनचित् भण्डेन प्रणीताः वेदाः इति बभाषे इत्यर्थः // 201 // यज्ञकर्ताको स्त्रीके वराङ्गसे अश्वमेधके घोड़ेके शिश्नको संस्पृष्ट देखकर अपण्डित ( श्रुतिविधानका अश ) वह कलि ( अपने सहचर द्वापरसे, या स्वयं अपने प्रति) वेद बनानेवाले ( ईश्वर ) को माँड़ कहा / [ अश्वमेध यज्ञमें वैसा करने का विधान है, अतः राजाशाके समान वेदाज्ञाके बिना विकल्प किये स्वीकार करनेका मनुवचन होनेसे वैसा करना धर्मविरुद्ध नहीं था, किन्तु श्रुतिको नहीं जाननेवाला कलि अज्ञताके कारण वेदकर्ता को ही भण्ड कहने लगा] // 201 // अथ भीमज या जुष्टं व्यलोकत कलिनलम् / दुष्टग्भिर्दुरालोकं प्रभयेव प्रभाविभुम् / / 202 / / 1. 'भण्डा-' इति 'प्रकाश' सम्मतः पाठः /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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