________________ 1138 नषधमहाकाव्यम् / [ अतिथियों के लिए बैल, वत्स तरी या बकरे का मांस देना शास्त्र-विहित होने से उसे धर्मकार्य समझकर कलि वापस आ गया। 'उत्तररामचरित' नाटकमें भो वसिष्ठ मुनिके लिये वत्सतरीको मारने का वर्णन मिलता है / किन्तु कलियुगमें देवरसे पुत्रोत्पत्ति, मांससे श्राद्ध करने तथा अतिथिको मांस भोजन कराने का स्मृतिकारोंने निषेध किया है, अतः यह प्रसङ्ग सत्ययुगका होनेसे धर्मोपेत है ] // 197 / / हृष्टवान् स द्विजं दृष्ट्वा नित्यनैमित्तिकत्य जम् | यजमानं निरूप्येणं दूरं दीनमुखोऽद्रवत् / / 168 / / हृष्टवानिति / सः कलिः, नित्यनैमित्तिकत्यजं दानहोमादिकर्मत्यागिनम् , विप् / द्विज विप्रम् , दृष्ट्वा वीचय, हृष्टवान् मुमुदे / अथ एनं पूर्वोक्तद्विजम् , यजमानं यज्ञे दीक्षितम् , निरूप्य निश्चिस्य, दीनमुखः विषण्णवदनः सन् , दूरं विप्रकृष्ट देशम् , अद्रवत् अधावत् , पलायत इत्यर्थः / दीक्षितो न ददाति न जुहोति न वदतीति दीक्षितस्य तनिषेधे तेन दोषाभावादिति भावः // 198 // वह ( कलि ) नित्य नैमित्तिक ( दान, अग्निहोत्र आदि ) कर्मका त्याग करनेवाले द्विजको देखकर हर्षित हुआ, (किन्तु बादमें ) उसे यजमान (यश करते हुए-यशमें दीक्षित ) निश्चितकर दोन मुख होता हुआ दूर हट गया। [यशमें दोक्षिा द्विजको नित्य, नैमित्तिक कर्मका त्याग करना धर्म-विरुद्ध नहीं होने से उदास होकर यहांसे कलि भाग गया ] // 198 // आननन्द निरीक्ष्यायं पुरे तत्रात्मघातिनम् / सर्वस्वारस्य यज्यानमेनं दृष्ट्वाऽथ विव्यथे।। 166 / / / आननन्देति / अयं कलिः, तत्र तस्मिन् , पुरे राजधान्याम् , आत्मघातिनम् आत्मविनाशिनम्, निरीक्ष्य विलोक्य, आननन्द स्वाश्रयलाभाशया तुतोष / अथ एनम् आत्मघातिनम् , सर्वस्वारस्य सर्वस्वारनामारमाहुतिकयागविशेषस्य, तथा रघुवंशेऽप्युक्तं-'यो मन्त्रपूतां तनुमयहौषीत्' इति / यज्वानं यागका. रिणम् , दृष्ट्वा वीचय, तद्याजिनं विदित्वेत्यर्थः / विव्यथे सन्तताप / 'सः अन्त्येष्टौ सर्वस्वाराख्ये यज्ञे आत्मानमेव पशुमन्त्रैः संस्कृतं घातयित्वा यज्ञभागमर्पयति' इति श्रुतेः / तत्रात्मघातस्य वैधत्वेन दोषाभावाद् व्यथितोऽभवदित्यर्थः / / 199 // __यह ( कलि ) उस नगरमें आत्मघाती (आत्महत्या करनेवाले ) को देख कर प्रसन्न हुआ, ( किन्तु ) बाद में 'सर्वस्वार' नामक यश करते हुए उसे देख ( समझ ) कर दुःखित हो गया। [ 'सर्वस्वार' यज्ञमें पशुमन्त्रसे संस्कारप्राप्त व्यक्तिका अपनेको मारकर यज्ञभागार्पण करने पर उस आत्महत्याको धर्मविरुद्ध नहीं होनेसे वह कलि दुःखित हुआ। किन्तु उक्त यश करनेका अधिकार औषधादि सेवनसे भी स्वस्थ नहीं होनेवाले किसी असाध्य रोगसे युक्त मरणासन्न पुरुषको ही है, स्वस्थ पुरुषको नहीं ] // 199 / /