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________________ सप्तदशः सर्गः। 1113 मेव ततः तस्मात् , अनयात् दुर्नयात् हेतोः, तत्पापसम्भवं नल द्रोहजन्यपातकसम्भूः तम् , तापं तीव्रयातनाम् , आप्नुयात् लभेत // 147 // ___ जो उस (पुण्यश्लोक नल ) के विषयमें अज्ञान (भी) द्रोह करता है, वह उस (द्रोहके करने ) से उस पापसे उत्पन्न सन्तापको शीघ्र ही प्राप्त करता है। [ अथवा-हे मोहेन = मोह+हन = मोहाधिपते अर्थात् महामूख कलि ! याद अज्ञानसे भो नल के साथ द्रोह करनेवाला शीघ्र सन्तापको पाता है तो तुम ज्ञानपूर्वक उनके साथ द्रोह करके सन्ताप नहीं पावोगे यह हो नहीं सकता, अत एव तुम्हें नल द्रोह-भावनाको सर्वथा छोड़ देनी चाहिये] / / 147 / / युगशेष ! तव द्वेषस्तस्मिन्नेष न साम्प्रतम् / भविता न हितायैतद्वैरं ते वैरसेनिना / / 148 // युगेति / युगशेष ! युगानां सत्यादीनां शेषः चरम ! हे कले ?, तस्मिन् नले तव ते, एषः अयम् , देषः द्रोहबुद्धिः, न साम्प्रतं न युक्तम् , वैरसेनिना नलेन सह, एतत् वैरं विरोधः, ते तव, हिताय मङ्गलाय, न भविता न भविष्यति // 148 // ___हे अन्तिम युग ( कति) ! उस (नल) के विषयमें तुम्हारा यह द्वेष अनुचित (अथवाअसामयिक ) है, वीरसेन-पुत्र (नल ) के साथ यह विरोध तुम्हारे हितके लिए नहीं होगा / / 148 // तत्र यामीत्यसज्ज्ञानं राजसं परिहार्यताम् / इति तत्र गतो मा गा राजसंसदि हास्यताम् / / 146 // तत्रेति / हे कले ! तत्र स्वयंवरे, यामि यास्यामि, सामीप्ये वर्तमानप्रयोगः / इति एवम्भूनम् , राजसं रजःप्रयुक्तम् , असत् ज्ञानं दुबुद्धिः, परिहार्यतां निरस्य. ताम् , इति असज्जानात् , तत्र राजसंसदि राजसभायाम् , गतः उपस्थितः सन् , हास्यताम् उपहास्यताम् , मा गाः न गच्छेः / / 149 // ___(मैं ) वहां ( स्वयंवर सभामें ) जाता हूं' ऐसे अशुभ एवं राजम विचारको छोड़ दो ( पाठ।०--......"राजस वर्तमान विचारको यहीं पर छोड़ दो। अथवा-...........ऐसा विचार राजस होनेसे अशुभ है, ( इस कारण उस विचारको छोड़कर ) यहीं रहो अर्थात् स्वयंवरमें मत जाओ, यही शुभ है)। उस राजसभामें जाकर हास्यभावको मत प्राप्त करो // 149 / / (गत्वान्तरा नलं भैमी नाकस्मात्त्वं प्रवेक्ष्यसि / षण्णां चक्रमसंयुक्तं पठ्यमानं डंकारवत // 1 // ) 1. 'साम्प्रतः' इति पाठान्तरम् / 2. 'सदिहास्यताम्' इति पाठान्तरम् / ३..'टकारवत्' इति पाठान्तरम् / 4. अयं श्लोकः क्षेपक इति 'प्रकाश'कृता स्वय. मेव स्वीकृतम् , अन एव मल्लिनाथे नायं श्लोको न व्याख्यात इत्यतो मया 'प्रकाश' व्याख्यया स हैवायमिहोपस्थापित इत्यवधेयम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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