________________ सप्तदशः सर्गः। 1103 नमें प्रयुक्त होनेसे दोषाधायक ही हुई। चन्द्रमामें पृथ्वीको छाया हो कलङ्करूपसे दृष्टिगोचर होती है, ऐसा ज्योतिःशास्त्रका सिद्धान्त है ] // 129 / / .. . सा वव्रे यं तमुत्सृज्य मह्यमीया॑जुषः स्थ किम् ? / तागःसद्मनस्तस्माच्छद्मनाऽद्याऽऽच्छिनद्धि ताम् / / 130 / / सेति / हे देवाः ! सा भैमी, यं नलम् , वव्रे पतित्वेन वृतवनी, तम् अपराधिनं तं नलम् ; उत्सृज्य विहाय, किं किमर्थम् मह्यं मां प्रति / 'कधदुह-' इत्यादिना सम्प्रदानत्वाञ्चतुर्थी / ईाजुषः अक्षान्तिभाजः, कोपपरवशा इत्यर्थः / स्थ ? भवथ ? ब्रत कथयत, यूयमिति शेषः / अस्तु तावत् , आगःसमनः अपराधमन्दिरात् , भव. दनादररूपदोषाकरादित्यर्थः। तस्मात् नलात् , अद्य अस्मिन्नेव अहनि, तां भैमीम् / छद्मना कपटेन, आच्छिनमि आहरामि, आनयामीत्यर्थः, अहमेवेति शेषः / सामीप्ये वत्तमाननिदेशः // 130 // ___ उस ( दमयन्ती ) ने जिसको वरण किया उस ( अपराधी नल ) को छोड़कर तुमलोग मेरे साथ क्यों ईर्ष्यालु हो ? कहो; अपराधके घर ( आप लोगों का अनादर दमयन्तीके साथ विवाह करनेसे महापराधी ) उस ( नल) से उस (दमयन्तीको) कपटसे आज (अभी) लाता हूँ ( अथवा-हमलोगों ( तुमलोगोंका तथा मेरा भी) की अपराधिनी ( हमलोगोंका त्यागकर नल के साथ विवाह करने के कारण हमलोगोंके साथ महान् अपराध करनेवाली) उस ( दमयन्ती ) को कपट के द्वारा नल से (पृथक कर ) आज लाता हूँ / इस पक्षमें 'आगःसभ' शब्द 'ताम्' का विशेषण तथा 'नः' शब्दका पृथक् पद मानना चाहिये ) // 130 / / यतध्वं सहकत्तु मां पाञ्चाली पाण्डवैरिव / साऽपि पञ्चभिरस्माभिः संविभज्यैव भुज्यताम् / / 131 / / ततः किमस्माकम् ? अत आह-यतध्वमिति / अत्र 'ततश्च' इति पदमध्याहृत्य पूर्वश्लोकेन सह सङ्गतिः रक्षणीया, ततश्च कपटेन दमयन्त्यानयनानन्तरमित्यर्थः / पाञ्चाली द्रौपदी, पाण्डवैः युधिष्ठिरादिभिः पञ्चभिरिव, सा भैमी अपि, अस्माभिः पञ्चभिरेव मया तथा युष्माभिः चतुर्भिश्च / त्यदायेकशेषः संविभज्य विभागं कृत्वा, पृथक् पृथक् समयं निर्दिश्य इत्यर्थः / भुज्यतां रम्यतामिति यावत् / अतो मां सहकत्तु भैम्यानयने सहायोभवितुम् , यतध्वं चेष्टध्वम् , दमयन्त्यानयने माम् अनुमन्यध्वम् इति भावः // // 131 // (इस कारण ) पांच पाण्डवोंने जिस प्रकार समय-विभागकर द्रौपदीका सम्भोग किया, उसी प्रकार हम पांचों भी समय-विभागकर उस ( दमयन्ती) का सम्भोग करें, इसके लिये तुमलोग यत्न करो अर्थात् मुझे नलसे कपटपूर्वक छोनकर दमयन्तीको लाने के लिए सहायता करो (या-अनुमति दो ) / [इस प्रकार दमयन्तीको प्राप्त करनेपर तुम लोगोंको भा निराश नहीं होना पड़ेगा, तथा युधिष्ठिरादि पांच पतियों के साथ समय-विमा.