________________ 1012 नैषधमहाकाव्यम् / तत्काल ही देवोंने रथमें बैठे हुए कलि तथा दूसरे द्वापर (कलियुगाधिष्ठातृ देव तथा दूसरे दापरके अधिष्ठातृ देव ) को देखा // 108 // सन्ददर्शोन्नमद्ग्रीवः श्रीबहुत्वकृताद्भुतान् | तत्तत्पापपरीतस्तान् नाकीयान् नारकीव सः / / 109 // सन्ददर्शति / नरकः अस्य अस्तीति नारकी नरकस्थः जन इव, तैः तैः पापैः ब्रह्महत्यादिभिः पातकैः, परीतः परिवेष्टितः, सः कलिः, श्रीबहुत्वेन सौन्दर्यबाहुल्येन, कृताद्भुतान् जनितविस्मयान् , रूपातिशयेन दर्शवान विस्मयोपादकानित्यर्थः / नाकीयान् स्वर्गरथान , तान् इन्द्रादीन् , उन्नमद्ग्रीवः उत्कन्धरः सन् , सन्ददर्श अवलोकयामास // 109 // नरकस्थ प्राणीके समान उन-उन ( ब्रह्महत्यादि ) पापोंसे व्याप्त उस कलिने अत्यधिक शरीर सौन्दर्य ( या-सम्पत्ति-बाहुल्य ) से विस्मित करनेवाले ( इन्द्रादि ) देवोंको ऊपर शिर उठाकर देखा / [ ब्रह्महत्यादि पापोंसे कण्ठपर्यन्त नरक में डबा हुआ प्राणी जिस प्रकार ऊपर की ओर गर्दन उठाकर शरीर-सौन्दर्यसे विस्मित करनेवाले पुण्यात्माओंको देखता तथा अनुताप करते हुए सोचता है कि पुण्यके कारण इनका शरीर सौन्दर्य ऐसा उत्तम है और पापके कारण हमारा ऐसा हीन है, उसी प्रकार कलिने भी देवोंको देखा तथा मनमें सोचा ] // 109 // गुरुबीडावलीढः प्रागभून्नमितमस्तकः / स त्रिशङ्करिवाक्रान्तस्तेजसैव विडोजसः // 110 / / गुर्विति / सः कलिः, प्राक् प्रथम, दर्शनमात्रमेवेत्यर्थः / गुा प्रबलया, बीडया लज्जया, देवानां वैमुख्यजनितया इति भावः / 'मन्दाक्षं ह्रीस्त्रपा ब्रीडा लज्जा' इत्यमरः / अवलीढः ग्रस्तः, पश्चात् विडोजसः इन्द्रस्थ, तेजसा एव प्रभावेणव, आक्रान्तः अभिभूतः सन्, त्रिशङ्कः इन्द्रतेजसा स्वर्गात् भ्रंशितः नमितमस्तकः सूर्यवंशीयो राजविशेष इव, नमितमस्तकः अवनतशिराः, अभूत् अजायत // 110 // __ वह ( कलि ) पहले ( इन्द्रादिको देखते ही) अधिक लज्जित हुआ तथा ( बादमे इन्द्र के तेजसे ही आक्रान्त होकर त्रिशङ्कके समान नतमस्तक हो गया ( पाठा०-इन्द्रादे तुच्छ देवता मेरे सामने क्या हैं ? इस भावनासे ) पहले ( इन्द्रादिके विषयमें पक्षा--- गुरु = वसिष्ठ मुनि के विषयमें ) अधिक अवज्ञायुक्त (किन्तु उनको देखते ही ) इन्द्र के तेजसे आक्रान्त त्रिशङ्कु के समान नतमस्तक हो गया / [जिस प्रकार विश्वामित्रको ऋत्विक बनाकर ईक्ष्वाकुवंशीय राजा त्रिशङ्कु सशरीर स्वर्ग में जाता हुआ इन्द्र के तेजसे ध्वरत होकर नतमस्तक हो गया (नीचे मस्तक करके गिरने लगा), उसी प्रकार कलि भी इन्द्र के तेजसे ही इच्छा नहीं रहते हुए भी लज्जित हो इन्द्र तेजसे ध्वस्त होकर नतमस्तक 1. '- न्नत ग्रीवः' इति पाठान्तरम्। 2. 'गुरुरीढा-' इति पाठान्तरम् /