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________________ सप्तदशः सर्गः। 1061 मुंनि बद्धाञ्जलिर्देवानथैवं कश्चिदूचितवाम् / / 106 // संरम्भैरिति / अथ वरुणवाक्यानन्तरम् , जन्मजैत्रादेः जम्भासुरविजयीन्द्रादि. देववर्गस्य, संरम्भैः कोः 'संरम्भः सम्भ्रमे कोपे, इति विश्वः / स्तभ्यमानात् , पुरश्च. लितुं प्रतिबध्तमानात् , बलात् कलिसैन्यात् , बलन् निर्गच्छन् , कश्चित् धूर्तः नन्दी, मूर्ध्नि शिरसि, बद्धाञ्जलिः कृताञ्जलिःसन् , नमस्कृत्य इत्यर्थः / देवान् इन्द्रादीन् , एवं वक्ष्यमाणम् , ऊचिवान् उक्तवान् / बुवः वसुः // 106 // इस (इन्द्रादि देवोंके इस प्रकार ( 1784-105) कहने ) के बाद आगे बढ़नेसे रोकी गयी सेनासे पृथक् होकर ( कुछ आगे बढ़कर ) कोई (पापरूप होनेसे अज्ञात नामा बन्दी या-चार्वाक ) सिरपर हाथ जोड़कर अर्थात् नमस्कार कर देवोंसे इस प्रकार (17 / 107) बोला // 106 // नापरधी-पराधीनो जनोऽयं नाकनायकाः!। कालस्याहं कलेवन्दी तच्चाटुचटुलाननः / / 107 // यदचिवान् तदाह-नेति / नाकनायकाः ! हे देवाः!' अयं जनः अहमित्यर्थः / पराधीनः परवशः, अतो न अपराधी न दोषी, अहम् अयं जनः, कलेः कालस्य कलि-, युगाधिदेवस्य, तच्चाटुभिः तस्य कले, चाटुभिः प्रियवादैः, चटुलाननः चपलमुखः, स्वामिचित्तानुकूलवादीत्यर्थः / वन्दी स्तुतिपाठकः, अतोऽहं क्षन्तव्य इति भावः। स्वामिचित्तानुरक्षनाथं वेदादिदूषणं कृतं न तु स्वतः, अतो नाहं भवद्भिर्दण्डनीय इति निष्कर्षः // 107 // ___हे स्वर्गाधीश देवो ! कालिकाल ( कलियुग ) का वन्दी ( स्तुतिपाठक, अतएव ) उसके प्रियभाषण ( चापलूसी) में चञ्चल मुखवाला अर्थात् कलिकी बढ़-बढ़कर चापलूसी करने. वाला पराधीन यह मनुष्य ( मैं ) अपराधी नहीं है।' [ उस वन्दी ने इन्द्रादिको नमस्कार कर कहा कि मैं तो कलियुगका वन्दी होने के कारण पराधीन हूँ, और उसी की सदा चापलूसी किया करता हूँ, इसी कारण मैंने वेदादि की निन्दा की है, अतएव मेरी पराधीनता को जानकर आप लोग मुझे दण्डित न करें] // 107 // इति तस्मिन् वदत्येव देवाः स्यन्दनमन्दिरम् / कलिमाकलयाञ्चक्रुापरञ्चापरं पुरः / / 108 / / इतीति / तस्मिन् वन्दिनि, इति इत्थं, वदति जल्पति एव सति, देवाः इन्द्रादयः, स्यन्दनमन्दिरं रथमध्यस्थं, कलिं कलियुगाधिष्ठातारं, तथा अपरं ततः अन्यं, द्वापरं द्वापरयुगाधिदेवञ्च, पुरः अग्रे, आकलयाचक्रः ददृशुः॥ 108 // उस ( वन्दी ) के इस प्रकार ( 17 / 107 ) कहते रहनेपर ही अर्थात् कहने के बाद 1. 'मूर्द्धबद्धा-' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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