________________ 733 द्वादशः सर्गः। तुम्हारे अधिक वर्णन करने पर भी इसे नहीं वरण करना चाहती, अत एव तुम अब इसका गुण-वर्णन करना समाप्त करो ] // 50 // ब्रवीति दासीह किमप्यसङ्गतं ततोऽपि नीचेयमतिप्रगल्भते / अहो ! सभा साधुरितीरिणः क्रुधा न्यषेधदेतरिक्षतिपानुगाञ्जनः / / 51 / / ब्रवीतीति / इह सभायां, दासी भैम्याः किङ्करी, किमपि असङ्गतं ब्रवीति प्राक 'चलेऽपि काकस्य' इत्यादि अभाषत, वर्तमानसामीप्ये भूते लट् , ततो दासीतोऽपि नीचा तुच्छा, इयं चेटी, अतिप्रगल्भते इदानीं पुनरपि उच्छृङ्खलतया ब्रूते, अहो ! आश्चर्य, सभा साधुः, आश्चयेति सोल्लुण्ठोक्तिः, इतीरयन्तीति इतीरिणः स्वस्वामिगुणवर्णनप्रतिबन्धात् आक्रोशतः, एतस्य क्षितिपस्य अनुगान् अनुचरान् , जनः तटस्थजनः, क्रुधा क्रोधेन, न्यषेधत् निवारयामास // 5 // ___ 'यहांपर ( इस सभामें ) दासी कुछ असंगत (12 / 21 आदि) वोलती है (पाठा०-बोली है ), नीच यह दासी ( 12 / 21 श्लोक द्वारा बोलनेवाली उक्त दासी, अथवा-सभामें बोलनेकी अधिकारिणी बनायी गयी सरस्वती देवी ) से भी उच्छल बोलती है, आश्चर्य है कि यह अच्छी सभा है अर्थात् उचित-अनुचितका विचार नहीं होनेसे यह बहुत बुरी सभा है', ऐसा क्रोधसे कहनेवाले नेपालराज के अनुचरोंको ( दर्शक ) लोगोंने रोका। अथवासभामें .........ऐसा कहनेवाले नेपालराजके अनुचरोंको ( दर्शक ) लोगोंने क्रोधसे रोका / [ नेपालनरेशके वर्णनके बीचमें ही दासीके बोलनेसे अपने स्वामीके अपमानको नहीं सहनेवाले अनुचर क्रुद्ध होकर व्यङ्गयपूर्वक सभाको बुरा कहने लगे तो उन्हें दर्शकलोगों ने ही मना कर दिया ] // 51 // अथान्यमुद्दिश्य नृपं कृपामयी मुखेन तदिङ्मुखसम्मुखेन सा / दमस्वसारं वदति स्म देवता गिरामिलाभवदतिस्मरश्रियम् / / 52 / / अथेति / अथ कृपामयी सा गिरां देवता इलाभुवा ऐलेन पुरूरवसा तुल्यम् इलाभुवत् , 'तेन तुल्यं क्रिया चेद्वतिः' क्रियाऽत्र स्मरातिक्रमः, अतिस्मरश्रियम् अतिक्रान्तमदनलावण्यम् , अन्यं नृपमुद्दिश्य तस्य नृपस्य, दिङमुखसम्मुखेन तद्दिग्भागाभिमुखेन, मुखेन करणेन, तेन उपलक्षिता सती वा, दमस्वसारं दमयन्ती, वदति स्म // 52 // ___ कृपालु वाग्देवी पुरूरवाके समान कामदेवकी शोभाको अतिक्रमण करनेवाले अर्थात् कामसे भी अधिक सुन्दर दूसरे राजाको लक्षितकर उसके ओर मुख करके दमयन्तीसे बोली / / 52 // विलोचनेन्दीवरवासवासितैः सितैरपाङ्गाध्वगचन्द्रिकाञ्चलैः / त्रपामपाकृत्य निभान्निभालय क्षितिक्षितं मालयमालयं रुचः / / 53 / / .. 1. 'प्रशंस' इति पा०।