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________________ 732 नैषधमहाकाव्यम् / पर छोड़ता है कि वे बाण उनके हृदय ( पाठा०-नेत्रों ) में छिद्रकर अदृश्य हो जाते हैं और उन्हें युद्ध-कौतुक को देखनेवाले कहीं भी (तरकससे निकालने आदि में ) नहीं देख पाते; किन्तु मरे हुए शत्रुओं के हृदय ( पाठा०-नेत्रों ) में उन बाणों द्वारा किये गये छिद्रों से–'इस नेपालनरेशने ही इसपर बाण को छोड़कर इसके हृदय ( पाठां०-नेत्रों) में छिद्र कर दिया है। ऐसे अनुमानकर बाणों को लक्षित करते हैं / प्रत्यक्षमें नहीं देखी गयी वस्तुका अनुमान द्वारा सिद्ध करना उचित ही है। यह नेपालनरेश बहुत तीव्र गतिसे शत्रुओं पर बाण चलाता है ] // 49 / / दमस्वसुश्चित्तमवेत्य हासिका जगाद देवीं कियदस्य वक्ष्यसि ? | भण प्रभूते जगति स्थिते गुणैरिहाप्यते सङ्कटवासयातना // 50 // दमस्वसुरिति / हासयतीति हासिका हासयित्री, काचित् चेटीति शेषः, दमस्वसुश्चित्तमवेत्य बुद्ध्वा देवी सरस्वती, जगाद, किमिति ? हे देवि ! अस्य राज्ञः सम्बन्धि, कियद्वक्ष्यसि ? कियत् प्रपञ्चयसीत्यर्थः, निखिलगुणाधारस्यास्य गुणानां प्रत्येकं कथं वर्णयितुं शक्नोषि ? इति भावः; प्रभूते महति, जगति स्थितेऽपि विशाले जगति विद्यमानेऽपि, गुणैः सौन्दर्यादिभिः, इह अस्मिन्नेव राज्ञि, सङ्कटवासेन सङ्कीस्थित्या, आधाराल्पतया अतिकृच्छ्णावस्थानात् , यातना तीव्रवेदना, आप्यते अनुभूयते, इति भण; सर्वे गुणाः सर्व जगत् परित्यज्यास्मिन् एकस्मिन्नेव राजनि परस्परसङ्घर्षण निरवकाशं निवसन्तीत्येकयोक्त्या वद इति भावः। सर्वगुणाकरम् अपि एनं दमयन्ती न वृणुते इति निष्कर्षः // 50 // हंसनेवाली ( दमयन्तीकी सामान्यतया दासी) दमयन्तीके चित्त ( यह इस नेपालनरेशको वरण करना नहीं चाहती ऐसे भाव ) को जानकर बोली-( सरस्वती देवि ! ) इसका कितना वर्णन करोगी?' विशाल संसार के रहनेपर भी गुण ( सौन्दर्य आदि ( इस ( नेपालनरेश ) में सङ्कट ( गुणोंके अधिक तथा वासस्थानके कम होनेके कारण दुःख ) से निवास करते हैं। ऐसा कहो / ( पाठा०-संसार में स्थित बहुत गुण इसमें ... ... .. ) / [ यह नेपालनरेश इतना गुणी है कि विशाल संसारके रहते भी समस्त गुण इसी नेपालनरेश में स्थान ( आधार ) की कमी होनेसे बड़ी संकीर्णतासे निवास करते हैं, अतः इसके प्रत्येक गुणका पृथक् पृथक् वर्णन करना अशक्य होनेसे उक्त वचन कहना ही तुम्हें उचित है, इस प्रकार बहुत गुणवान् भी इस नेपालनरेशको स्वामिनी दमयन्ती नहीं वरण करना चाहती अतः इसका वर्णन करना व्यर्थ है। अथवा-विशाल संसारके रहनेपर भी इस नेपालनरेशमें ही सब गुण राजाकी अयोग्यताके कारण दुःखपूर्वक निवास करते हैं, अत. एव इसके गुणोंको कितना वर्णन करोगी ? वास्तविकताको समझनेवाली स्वामिनी दमयन्ती 1. 'प्रभूतैः' इति पा०। 2. 'स्थितैः' इति पा०।
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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