________________ षोडशः सगः। 1011 स्त्रीने सन्तुष्ट कर दिया, यह आश्चर्य है / [ अनुरागी उस युवकके अनेक प्रकारकी चेष्टाओंके करनेपर बहुत लोगों के सामने लज्जावश उस स्त्रीने संकेत द्वारा अपना अनुराग प्रकट नहीं किया तो 'यह मुझसे अनुराग नहीं करती' ऐसा समझकर उस स्त्रीके विषयमें निराश उस युवकने दुखी हो दूसरी स्त्रीके प्रति अपना अनुराग प्रकट करने लगा, यह देख वह प्रथमा स्त्री क्रुद्व हो गयी कि 'यद्यपि इसमें अनुराग करती हूं और लज्जावश सबके सामने अपना भाव प्रदर्शित नहीं किया, अत एव यह युवक दूसरी स्त्रीमें अनुराग करने लगा।' यह देख उस युवकने 'पहली स्त्री ही मुझमें अनुराग करती है, मैंने पहले इसके मनोगत भावको नहीं समझकर व्यर्थ में उदासीन एवं दुःखित होकर दूसरी स्त्रीमें अनुराग करने लगा' ऐसी अपनी भूल समझकर पहली स्त्रीमें ही अनुराग करता हुआ सन्तुष्ट हो गया। उदासीन जिस स्त्रीसे दुःखित हुआ, क्रुद्ध उसी स्त्रीसे सन्तुष्ट किया गया' यह विरुद्ध विषय होनेसे आश्चर्य है और उसका निराकरण पूर्वोक्त प्रकारसे है ] // 175 // पयःस्मिता मण्डपमण्डलाम्बरा वटाननेन्दुः पृथुलड्डुकस्तनी / पदं रुचे ज्यभुजां भुजिक्रिया प्रिया बभूवोज्वलकूरहारिणी / / 106 / / पय इति / पयः पाथः क्षीरं वा, स्मितं हास्यं यस्याः सा, मण्डपमण्डलं जन्यजनानामाश्रयसमूह:: चन्द्रातपसमूहः एव इत्यर्थः / 'मण्डपोऽस्त्री जनाश्रयः' इत्यमरः, अम्बरं वस्त्रं यस्याः सा तादृशी, मण्डपानामावरकत्वात् शुभ्रत्वाच्चेति भावः, वटः घटकः एव, शुभ्रवत लपिष्टकविशेषः एव इत्यर्थः, आननेन्दुः आह्लादकरत्वात् मुखचन्द्रः यस्याः सा तादृशी, पृथू महान्तौ लड्डुको मिष्टान्नविशेषौ एव, स्तनौ यस्याः सा तादृशी, रुचेः पदम् अभिलाषास्पदं लावण्यास्पदन्च, उज्ज्वलैः शुभैः, कूरैः भक्तैः, 'अन्धः कूरं भक्तम्' इति हलायधः / हारिणी मनोहरा हारवती च, भुजि. क्रिया भोजनव्यापारः, भुज इति धातुनिर्देशेनार्थलक्षणा। भोज्यभुजां भोक्तृणां भोगिनाम्च, प्रीणातीति प्रिया तृप्तिकारिणी बल्लभा च, बभूव / रूपकालङ्कारः // 106 // दुग्ध ( या-स्वच्छ जल ) रूप स्मित ( मन्द मुस्कान ) वाली, मण्डप-समूहरूप ( पाठा०-अधिक आंच लगनेसे लाल-लाल बिन्दुओंसे युक्त पूआरूप अलङ्कारभूत ) वस्त्र. वाली, ( शुक्लवर्ण तथा आह्लादक होनेसे ) बड़े ( दही-बड़े ) रूप मुख चन्द्रवाली, बड़े-बड़े लड्डूरूपी स्तनोंवाली, रुचि ( कान्ति या-भोजनेच्छा, पक्षा०-अनुराग ) का स्थान अर्थात् रुचिकारिणी, शुक्लवर्ण भातसे मनोहर ( पक्षा०-शुक्ल वर्ण भातरूपी हार अर्थात् मुक्ता पक्षा०-वल्लभा) हुई / [ पक्षान्तर में सर्वत्र 'दुग्ध (या स्वच्छजल ) के समान है स्मित जिसका' इस प्रकार अर्थान्तर कल्पना करनी चाहिये / भोजनकर्ताओंको वहांका भोजन प्रिया स्त्रीके समान अत्यन्त रुचिकर हुआ ] // 106 / / 1. 'मण्डकमण्डनाम्बरा' इति 'प्रकाशे' व्याख्यातम् /