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________________ 1008 नैषधमहाकाव्यम् / बरातियों के तृप्त हो जाने के कारण बार-बार मना करने पर भी परोसनेवाले लोग आग्रहपूर्वक अधिक व्यञ्जनोंको परोस रहे थे ] // 10 // विदग्धबालेङ्गितगुप्तिचातुरीप्रवलिकोद्घाटनपाटवे हृदः / निजस्य टीकां प्रबबन्ध कामुकः स्पृशद्भिराकूतशतैस्तदौचितीम् / / 101 / / विदग्धेति / विदग्धबालायाः चतुराङ्गनायाः, इङ्गितगुप्तिचातुरो भ्रूभङ्गयाद्याकारगोपनचातुर्य, निगूढार्थचेष्टाप्रयोगचातुरीत्यर्थः / सा एव प्रवलिका दुर्बोध्यत्वात् प्रहेलिकापराख्यो निगूढार्थोक्तिविशेषः / 'प्रवल्हिका प्रहेलिका' इत्यमरः। तस्याः उद्घाटने बोधने, अर्थाद्भेदने इत्यर्थः। यत् पाटवं सामर्थ्य, तस्मिन् विषये, तत् तत्र, तादृशार्थोद्भदने इत्यर्थः / औचितीम् आनुकूल्यं, स्पृशद्भिः प्राप्तः, तदनुकूलैरित्यर्थः। तवेङ्गितगुप्तिचातुर्य मया ज्ञातमित्यर्थप्रकाशकैस्तदीयेणितानुरूपैः इति भावः / आकूतानां शतैः अभिप्रायव्यञ्जकः बहुविधेङ्गितः, कामुकः कश्चित् कामी, निजस्य आत्मीयस्य, हृदः हृदयस्य, टीका व्याख्याम् , अभिप्रायप्रकाशनमित्यर्थः / प्रबन्ध प्रकर्षेण कृतवान् , स्वहृदयं तस्य निवेदयामास इत्यर्थः / उचितोत्तरदानादेव प्रश्नार्थप्रकाशनात् तदेव तद्व्याख्यानमिति भावः // 101 // किसी ( चतुर कामुक ) ने चतुर बालाकी चेष्टाके अभिप्राय-चातुर्यरूपी पहेली (बुझौवल ) के स्पष्ट करनेकी चतुरताके विषयमें उसके योग्यता (तदनुकूलता) से युक्त सैकड़ों अभिप्रायोंसे अपने हृदयकी व्याख्या को कर दिया। ( अथवा-चतुर ( युवक ) तथा बाला-इन दोनों के अभिप्राय-चातुर्यरूपी..."। अथवा-क्रमशः चतुर (युवक) की चेष्टा तथा बाला की गुप्ति (चुपकेसे चेष्टा विशेष )-इन दोनों के चातुर्य " ) / [ किसी चतुर बालाने स्वाभाविक लज्जावश अपनी गुप्त चेष्टाद्वारा अपना अभिप्राय सूचित किया, उसे दूसरे कामुकने समझकर तदनुकूल बहुत-सी अभिप्रायसूचक चेष्टाओंसे अपने हृद्गत भावको उस प्रकार प्रकट किया, जिस प्रकार किसी गुप्ताभिप्रायवाली पहेलीको उसके अभि. प्रायको जाननेवाला व्यक्ति अनेक प्रकारकी व्याख्याकर स्पष्ट करता है। प्रकृतमें चतुर बाला के द्वारा गुप्त चेष्टा द्वारा अपना अनुराग प्रकट करनेपर कामुकने भी उसके अनुकूल बहुतसी स्पष्ट चेष्टाओं द्वारा अपने अनुरागको प्रकट किया अथवा-विदग्ध युवक तथा बालाकी गुप्त चेष्टाओं द्वारा उन दोनों के अभिप्रायको समझकर किसी अन्य कामुकने 'मैं तुम दोनों की गुप्त चेष्टाओंसे परस्पर अनुरागको समझ गया, अतः मैं उस युवकसे अधिक चतुर हूँ, इस कारण तुम उस युवकको छोड़कर मेरे साथ अनुराग करो' इस अभिप्रायसे स्पष्ट रूपसे बहुत-सी चेष्टाओंको किया ] // 101 // घृतप्लुते भोजनभाजने पुरःस्फुरत्पुरन्ध्रीप्रतिबिम्बिताकृतेः / युवा निधायोरसि लड्डुकद्वयं नखैलिलेखाथ ममर्द निर्दयम् / / 102 / / घृतेति / युवा कश्चित्तरुणः, पुरः अग्रेः, घृतेन प्लुते सिक्ते, भोजनभाजने भाजन
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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