________________ षोडशः सर्गः। (परोसते समयं ) चञ्चल बाहुओंके भूषणोंमें जड़े हुए रत्नोंकी कान्तिसे इन्द्रधनुष ( की शोभा ) को प्राप्त किये हुए बहुतसे परोसनेवाले लोगों ( पक्षा-परोसनेवालेरूप मेघों ) ने इन ( भोजन करते हुए बरातियों ) के लिए सुगन्धि (पक्षा०-चन्द्रमा तथा सूर्यकी कान्ति ) से युक्त ( शीतल तथा दीप्तियुक्त होनेसे चन्द्रमा तथा सूर्यके सदृश, अथवाचन्द्रमाके समान मनोशतासे युक्त, अथवा-चन्द्रकान्त तथा सूर्यकान्त मणिकी शोभासे युक्त ) ओलोंके समान (गोले-गोले, शीतल एवं सन्तापहारक) लड्डुओं (पक्षा०-लड्डू रूपी ओलों ) के समूहोंको बरसाया अर्थात् परोसा। [ मेघ जब ओलोंको बरसाते हैं तो वे ( मेघ ) इन्द्रधनुषको धारण कर लेते हैं और वे ओले दिनमें सूर्य और रात्रिमें चन्द्रकी शोभासे युक्त हो जाते हैं, उसी प्रकार परोसते समय बाहुके भूषणोंमें जड़े हुए रत्नोंकी शोमासे इन्द्रधनुषयुक्त मालूम पड़ते हुए बहुत-से परोसनेवाले लोगोंने उन भोजनकर्ता बरातियों के लिए कर्पूरकी सुगन्धियुक्त ओलोंके समान गोले-गोले एवं शीतल लड्डुओंको परोसा ] // 99 // कियद्वहु व्यञ्जनमेतदर्यते ? ममेति तृप्तर्वदतां पुनः पुनः / अमूनि सङ्घयातुमसावढौकि तैश्छलेन तेषां कठिनीव भूयसी // 10 // __ कियदिति / मम एतत् कियत् कतिपरिमाणं, बहु प्रभूतं, व्यञ्जनं शाकमांसादि. रूपतेमनादिकं, कति व्यञ्जनानीत्यर्थः। अयंते ? दीयते ? तृप्ता वयम् अतो नापरं दातव्यम् इति भावः / तृप्तेः भोजनजन्यसन्तोषात् हेतोः, इति एवं, पुनः पुनः वदतां वारं वारं कथयतां, तेषां भोक्तृणां, छलेन व्याजेन, तेषां तादृशवाक्येन कति व्यञ्जनानि अस्माभिर्दत्तानि ? इति सङ्ख्या जिज्ञासैवाभिप्राय इति व्याजेन इत्यर्थः। अमूनि व्यञ्जनानि, सङ्ख्यातुं गणयितुं, भूयसी बहुतरा, कठिनी इव करिका इव, भूयस्यः सङ्घयानघुटिकाः इवेत्यर्थः। 'करिका कठिनी' इति विश्वः। तैः परिवेषकैः, असौ गोलकावलिः, प्रागुप्तपिष्टकविशेषराशिरित्यर्थः। अढौकि ढौकिता, उपहृता इत्यर्थः / भवद्भिः व्यञ्जनबाहुल्यं कथ्यते, अतः आभिः कठिनीभिः तानि गणयेति च्छलेनेव भूयसी कठिनी अर्पितेवेति भावः / अत्रोत्प्रेक्षालङ्कारः // 10 // हमारे लिए यह कितना व्यञ्जन दे रहे हो ? ( हम तृप्त हो गये, अब मुझे कुछ नहीं चाहिये ) ऐसा तृप्तिके कारणसे बार-बार कहते हुर भोजनकर्ता बरातियों के लिए ('कितना व्यञ्जन दे रहे हो ?' ऐसा तुम लोग पूछते हो तो लो इनके द्वारा गिन लो कि हमने कितने व्यञ्जन दिये हैं, इस प्रकारके ) छलसे उन व्यजनोंको बहुत-सी खड़ियों (लिखनेके चाकों) को उढेल ( अधिक परिमाणमें दे ) दिया। [ जिस प्रकार बहुत अधिक पदार्थोकी गणना करनेमें असमर्थ व्यक्तिको खड़ियासे लिख-लिखकर गणना करनी पड़ती है, उसी प्रकार 'हम लोगोंने कितने व्यञ्जन परोसे' यह तुम गणना नहीं कर सकते हो तो लो इन ध्यक्ष नरूपी खड़ियोंसे गिन लो कि हम लोगोंने कितने व्यञ्जन परोस दिये। भोजनकर्ता