________________ षोडशः सर्गः। 1001 अददात , तेन ध्रुवं निश्चितं, मनोज्ञा चित्तज्ञा, पराभिप्रायज्ञा इत्यर्थः, करद्वयीति शेषः / पराशयज्ञत्वस्य प्रश्नोत्तरदानस्य च चेतनधर्मतया अचेतने करद्वये तदुत्प्रेक्षणादुरप्रेक्षालङ्कारः // 9 // . 'कितने सुन्दर स्तनोंवाली यह स्त्री है ?, ऐसा (विचारकर ) पानी परोसनेवाली स्त्री के ढकी हुई छातीको देखते हुए युवकके लिए ( उस स्त्रीके ) दोनों हाथोंने (सोनेकी) झारी ( जलपात्र ) के पकड़नेके बहानेने जो उत्तर ( इस झारीके समान गौरवर्ण तथा इतने ही बड़े स्तन हैं' ऐसा उत्तर ) दिया, वे दोनों हाथ मानो मनोश (सुन्दर, पक्षा०-दूसरेके मनोगत भावको जाननेवाले ) हैं / [ वस्त्रसे ढके हुए स्तनोंकी मुन्दरता देखने के इच्छुक युवकको उसका आशय समझकर सुवर्णमय जलपात्रको दोनों हाथोंमें लेकर युवतीने उन स्तनोंकी सुन्दरता तथा विशालता बतला दी / लोकव्यवहार में भी किसीके संकेतित गूढाशय को समझनेवाला व्यक्ति बिना स्पष्ट कहे गूढ संकेतसे ही उसका प्रत्युत्तर दे देता है ] / 91 // अमीभिराकण्ठमभोजि तद्गृहे तुषारधारामृदितेव शर्करा / वाहद्विषद्बष्कयणोपर्यःस्रुतं सुधाहदात् पङ्कमिवोद्धतं दधि // 92 / / अमीभिरिति / अमीभिः जन्यः, तद्गृहे भीमभवने, तुषारधारया हिमधारया, मृदिता मर्दिता, शर्करा खण्डविकार इव तद्वत् स्वादु शुभ्रञ्चेत्यर्थः / 'शर्करा खण्डवि. कृतौ' इति हैमः। सुधाह्रदात् अमृतहदात् , उद्धृतम् उत्तालितं, पकं कर्दमम् , अमृतकर्दमम् इव स्थितम् इत्युत्प्रेक्षा। वाहं हयं, द्विषन्ती विरुध्यन्ती, महिषी इत्यर्थः, 'लुलायो महिषो वाहद्विषत्कासरसैरिभाः' इत्यमरः। 'स्त्रियाः पुंवत्' इत्यादिना पुंवद्भावः। सा च सा बष्कयणी चिरप्रसूता, 'चिरप्रसूता बष्कयणी' इत्यमरः / तस्याः पयसः क्षीरात् जुतम् उत्पादितं, 'सुणोतेः कर्मणि क्तः / दधि दुग्धविकारः आकण्ठम् अभोजि भुक्तम् // 92 // इन ( बरातियों) ने उस ( राजा भीम ) के घर में तुषार (बर्फ) की धारासे मर्दित शक्करके समान तथा अमृत-सरोवर से निकाले गये 'पङ्कके समान, बकेन (बहुत दिनोंकी व्यायी हुई ) भैसके दूधसे बने दहीको कण्ठ तक ( अच्छी तरह पेट भरकर ) भोजन किया / ( अथवा-..."तुषार-धारासे मर्दित शक्करको तथा अमृत-....बने दहीको..." / 'पयःशृतम्' पाठा०-उक्त गुण विशिष्ट शर्करा तथा बकेन भैसके पके हुए गर्म दूध और अमृत-सरोवरसे निकाले गये पङ्कके समान ( स्वादिष्टतम एवं गाढ़े ) ( दहीको ......") / [ तुषार-धारामर्दित होनेसे अत्यधिक शीतल तथा शुक्लवर्ण और अमृत सरोवरोद्धृत पङ्कसदृश होनेसे अधिक स्वादिष्ट और गाढ़ा दहीका होना सूचित होता है। बकेन भैसके दूध-दहीका मधुरतम तथा अधिक गाढ़ा होना तथा उसे शक्कर (बूरे ) के साथ भोजन करना लोकप्रसिद्ध है ] // 92 // 1. 'हय-' इति पाठान्तरम् / 2. '-वयःसुतम्' इति, '-पयः शृतम्' इति च पाठान्तरे