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________________ षोडशः सर्गः। 666 कर्मणि लिट् / किं तत् ? इत्याह-अस्य ध्रवस्य, अणिमा अणुत्वं, शुद्रपरिमाणत्वमि. त्यर्थः / अक्षिसाक्षिकः चक्षुःप्रमाणकः, न स्यात् किम् ? चक्षुषा न लक्ष्यते किमित्यर्थः, तथाऽपि अस्य क्षुद्रपरिमाणवत्वे चतुष एव प्रमाणत्वे सत्यपीत्यर्थः। आगमोदितः ज्योतिःशास्त्रोक्तः, महिमा महत्ता एव, बृहत्परिमाणत्वमेवेत्यर्थः। तथ्यः प्रामाणिकः, दूरत्वदोषेण अणुत्वग्राहिप्रत्यक्षस्य आगमापेक्षया दुर्बलत्वात् हस्ताईमितचन्द्रप्रत्यक्ष वदिति भावः / महदपि दूरात् अणु प्रतीयते इति प्रसिद्धिः // 38 // ध्रुवको दिखानेके लिए उसके उन्मुख भ्रवाले निर्देशकर पति (नल ) ने दमयन्तीसे कहा कि-'इस (ध्रुव ) की सूक्ष्मता नेत्रगोचर नहीं है क्या ? अर्थात् यद्यपि नेत्रगोचर है ही, तथापि वेदोक्त महिमा सत्य है अर्थात् यद्यपि इस सूक्ष्म ध्रुवको स्वयं तुम देख सकती हो तथापि 'ध्रुवमुदोक्षस्व' (ध्रुवको देखो ) ऐसा पतिके कहनेपर 'ध्रुवं पश्यामि, प्रजां विन्देय' (ध्रुवको देखती हूं, प्रजा अर्थात् सन्तानको प्राप्त करें ) ऐसा वधू कहे' ऐसा श्रुतिवचन ही सत्य है (पक्षा०-यद्यपि ध्रुवतारा अत्यन्त सूक्ष्म है, तथापि ज्योतिष शास्त्रमें इसका प्रमाण जो बहुत बड़ा कहा गया है, वह ज्यौतिष शास्त्रोक्त वचन सत्य है)। दमयन्तीको नलने विधिप्राप्त ध्रुवदर्शन कराया // 38 // धवेन साऽदर्शि वधूररुन्धतीं सतीमिमां पश्य गतामिवाणुताम् | कृतस्य पूर्व हृदि भूपतेः कृते तृणीकृतस्वर्गपतेर्जनादिति // 39 // धवेनेति / पूर्व विवाहात् प्रागेव, हृदि कृतस्य पतित्वेन मनसि निश्चितस्य, भूपतेः नलस्य, कृते निमित्तं, नलवरणार्थमित्यर्थः / तादर्थेऽव्ययम् / तृणीकृतस्वर्ग: पतेः अगणितमहेन्द्रात् , जनात् त्वत्तः इति यावत् / 'पञ्चमी विभक्ते' इति पञ्चमी / अणुतां सूक्ष्मता, पातिव्रत्यगुणेन न्यूनताञ्च, गतामिव स्थितां, सती साध्वीम् , इमाम् अरुन्धतीम् अरुन्धतीनक्षत्रं पश्य इति, उक्त्वेति शेषः। सा बधूः नवोढा भैमी, धवेन भर्ता नलेन, अदर्शि दर्शिता / दृशेय॑न्तादात्मनेपदिनः कर्मणि लुङ / 'अभिवादिहशोरात्मनेपदे वेति वाच्यम्' इति अणिकत्त: कर्मत्वम्, अत्र च तस्याभिहितत्वात् न द्वितीया // 39 // ___(विवाहसे ) पहले ही हृदयमें (पतिरूपमें निश्चित) किये गये राजा (नल) के लिए तृणवत् किये ( तृणके समान तुच्छ मानकर छोड़े गये ) इन्द्र हैं जिससे ऐसे आदमी अर्थात तुमसे लज्जित होने के कारणसे दुर्बलता ( पक्षा०-अतिशय सूक्ष्मता) को प्राप्त हुई पतिव्रता इस अरुन्धतीको देखो' ( ऐसा कहकर ) पति (नल) ने वधू ( दमयन्तीको) से अरुन्धतीको दिखलाया। [मैंने तो विवाहके बाद पतिव्रत धर्मका पालन करती हुई परपुरुष होनेसे इन्द्र तकको तुच्छ समझकर त्याग किया, किन्तु इस दमयन्तीने विवाह के पहले ही केवल मनमें पतिरूपसे वरण किये गये राजा नलके लिए स्वयंवरमें स्वयं आये १.'-दितः' इति सुखावबोध्यस्थपाठः' इति म०म० शिवदत्तशर्माणः /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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