________________ 724 नैषधमहाकाव्यम् / तथा कमलका लक्ष्मी द्वारा त्याग करनेसे इस राजाका महाप्रतापी होना व्यक्तकर सरस्वती देवीने दमयन्तीसे उसका वरण करनेका सङ्केत किया है ] // 37 // सिन्धोर्जेत्रमयं पवित्रमसृजत्तत्कीर्तिपूर्ताद्भुतं यत्र स्नान्ति जगन्ति सन्ति कवयः के वा न वाचंयमाः ? | यद्विन्दुश्रियमिन्दुरञ्चति जलञ्चाविश्य दृश्येतरो यस्यासौ जलदेवतास्फटिकभूर्जागर्ति यागेश्वरः / / 3 / / सिन्धोरिति / अयं काञ्चीपतिः, सिन्धोरब्धेः जैत्रं जेतृ, जयशीलमित्यर्थः, ततोऽ. प्यधिकमिति भावः, जेतृशब्दात् तृन्नन्तात् प्रज्ञादित्वात् स्वार्थेऽग्-प्रत्ययः, पवित्रं पावनं, तत्तथा प्रसिद्धं, कीर्त्तिरेव पूतं खातं, 'न पृध्याख्यामूर्छिमदाम्' इति निष्ठातस्य नत्वप्रतिषेधः तदेवाद्भुतमसृजत् , यत्र पूत, जगन्ति लोकाः, स्नान्ति, यत्र यस्मिन् विषये, के वा कवयः कवयितारः, वाचं गच्छन्तीति वाचंयमाः निरुद्धवाचः, न सन्ति ? सर्वेऽपि मौनिनो भवन्ति वर्गयितुमशक्यत्वादित्यर्थः 'वाचि यमो व्रते' इति खच-प्रत्ययः। 'वाचंयमपुरन्दरी च' इति निपात नान्नुमागमः, इन्दुः यस्य पूर्तस्य, बिन्दुश्रियमञ्चति प्राप्नोति, तदपेक्षया अल्पत्वात् इन्दुः यदीयो बिन्दुरिवेति भावः, असौ इन्दुः, यस्य जलञ्चाविश्य दृश्येतरः सावाददृश्यः, जलदेवता आप्यशरीरदेवताविशेषश्चासौ स्फटिकाद्भवतीति स्फटिकभूः स्फटिकोद्भवः, यागेश्वरः सन् जागर्ति; स्फटिकलिङ्गे यागेश्वर इति प्रसिद्धिः // 38 // यह ( काञ्चीनरेश ) समुद्रको जीतनेवाला तथा पवित्र कीर्तिरूपी जो तडाग-तद्रूप आश्चर्यका निर्माण किया, जिस ( कीर्तिरूपी तडाग ) में संसार स्नान करते ( श्वेत होते ) हैं और कौन कवि ( वर्णन करने में असमर्थ होनेसे ) मौन नहीं होते अर्थात् सभी मौन हो जाते हैं ( अथवा-जिसके जलमें पक्षी तथा कौन से तपस्वी नहीं है अर्थात् उस कीर्तिरूपी तडागमें सभी पक्षी तथा तपस्वी हैं ), चन्द्र जिस ( कीर्तिरूपी तडाग) की बूंदकी शोभाको पाता है, यह ( चन्द्र ) जल में प्रवेशकर अदृश्य होकर ( जलमें प्रवेश किये हुएका ( अथवा कीर्ति तथा चन्द्रका समान वर्ण होनेसे कीर्ति तडागमें चन्द्रका) अदृश्य हो जाना उचित ही है ) जलदेवता ही स्फुरित होता है और स्फटिक-रचित यागेश्वर (शिवविशेष ) ही स्फुरित होता है / ( अथवा-जिस कीर्ति-तडागकी विन्दुशोभाको चन्द्र प्राप्त करता है अर्थात् बिन्दु ही चन्द्र है। अथवा-जलमें प्रवेशकर अदृश्य होकर स्फटिक भूमिवाला ( कैलाश ) ही ( स्फटिककृत ) यागेश्वररूप जलदेवता ही स्फुरित होता है ( जलके भीतर दृबनेपर स्फटिक दिखलाई नहीं पड़ता, अतः स्फटिक भूमिवाले कैलासका भी दिखलायी नहीं पड़ना उचित ही है, यागेश्वर स्फटिकके हैं ऐसा शास्त्रवचन है)। अथवा-जलमें प्रवेशकर चन्द्र ही स्फटिक निर्मित जलदेवता यागेश्वर ही स्फुरित होता है। अथवायह ( प्रसिद्ध नाम ) जलदेवता स्फुरित होती है जो स्फटिक भूमिवाला अगेश्वर (पर्वतराज