SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वादशः सर्गः। 723 होते ( पक्षा०-अस्ताचलको जाते ) हैं। [ सायङ्कालमें अरुण वर्णसे मिश्रित अन्धकार फैलने पर सूर्य अस्त हो जाता है; प्रकृतमें इस राजाके हाथियों के मस्तकमें सिन्दूर लगा है, बहुत बड़े-बड़े तथा काले हाथी युद्धारम्भमें दौड़ने लगते हैं तो सम्पूर्ण राजाओं के बाहुजन्य तेज नष्ट हो जाते हैं-वे राजा उक्तरूप हाथियोंको देखकर युद्धभूभिसे भाग जाते या इस राजाके शरणमें आ जाते हैं ] // 36 // हित्वा दैत्यरिपोरुरः स्वभवनं शून्यत्वदोषस्फुटासीदन्मर्कटकीटकृत्रिमसितच्छत्रीभवत्कौस्तुभम् | उज्झित्वा निजसद्म पद्ममपि तद्व्यक्तावनद्धीकृतं लूतातन्तुभिरन्तरध भुजयोः श्रीरस्य विश्राम्यति // 37 / / हित्येति / श्री लक्ष्मीः, स्वभवनं निजनिवासं, दैत्यरिपोः विष्णोः, उरः शून्यत्व. दोपेण लक्ष्म्यास्त्यागजन्यरिक्ततादोषेण, स्फुटमासीदन्तः प्रत्यासीदन्तः, ये मर्कटकीटा स्तन्तुवायकीटाः, 'लुता स्त्री तन्तुवायोर्णनाममर्कटकाः समाः' इत्यमरः, तेषां सम्बन्धि यत् कृत्रिमसितच्छत्रं सितच्छ्त्राकारं लुतातन्तुवितानमण्डलं, तथाभवन् तद्पीभवन् , कौस्तुभः तदाख्यो मणिः यस्मिन् कर्मणि तद्यथा भवति तथा हित्वा, निजसन नित्यनिवासभवनं, तत् प्रसिद्धं, पद्ममपि लूतातन्तुभिः व्यक्तम् अवनद्धीकृतं बद्धं यथा तथा, उज्झित्वा अद्य सम्प्रति, अस्य भुजयोरन्तर्विश्राम्यति / अत्रकस्याः श्रियः क्रमेणानेकाधारवृत्त्युक्त्या पर्यायालङ्कारभेदः, तेनैव तद्भुजयोः श्रीरञ्जने विष्णूरःपद्माभ्यामप्यधिकं वस्तु व्यज्यते // 37 // ____ आज लक्ष्मी-शून्य (लक्ष्मी-रहित ) होनेसे स्पष्ट रूपसे स्थिर होते हुए मकड़ीके जालेके बने श्वेतच्छत्रके समान कौस्तुभ मणिवाले विष्णुके हृदय तथा मकड़ियों के जालोसे स्पष्टरूपसे बँधे हुए कमल-इन दोनों अपने घरों (निवासस्थानों) को छोड़कर इस 'काश्चीपति' के बाहुद्वयमें विश्रामकर रही हैं / [ लक्ष्मोके रहने के दो स्थान प्रसिद्ध हैं-एक विष्णुका हृदय तथा दूसरा कमल; किन्तु अतिशय दूरस्थ तथा भिन्न-भिन्न स्थानों में निवास करनेमें अधिक प्रयास होने के कारण लक्ष्मीने उन दोनों स्थानोंको छोड़कर आज इस काञ्चीनरेशके बाहुद्वयमें विश्राम ( सुखपूर्वक निवास ) कर रही है। उन दोनों पूर्व निवासस्थानोंमें-से प्रथम विष्णुका वक्षःस्थल लक्ष्मीरहित होनेसे मकड़ीके जालेके बने सफेद छातेसे कौस्तुभ मणिवाला है तथा द्वितीय कमल मकड़ी के जालोंसे स्पष्ट ही व्याप्त हो रहा है / जिस स्थानको वहांका रहनेवाला छोड़कर चला जाता है वह मकड़ीके जालोंसे भर जाता है यह अनुभव सिद्ध बात है। प्रकृतमें लक्ष्मीने विष्णुके हृदयरूप अपने प्रथम निवासस्थानको छोड़ दिया, अत एव वहाँ कौस्तुभमणिके किरण श्वेतच्छत्राकार हो रहे हैं उन्हें मकड़ीका जाला माना गया है तथा द्वितीय निवासस्थान कमलको लक्ष्मीने छोड़ दिया है वहां कमल में प्राकृतिक रूपसे रहनेवाले तन्तुको मकड़ीका जाला माना गया है। विष्णुके हृदय
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy