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________________ 662 नैषधमहाकाव्यम् / इत्यादिना अच् प्रत्ययः / सः भीमः, नलेन ग्राहितवान् अग्राहयत् , नलाय ददौ इत्यर्थः // 27 // __ स्वर्गाधीश ( इन्द्रका दमयन्तीमें अनुराग होने के कारण उस दमयन्तीके पिता राजा भीममें ) आदरको देखनेवाले विश्वकर्माने आदरसे उस ( राजा भीम ) के लिए जिस (पिकदानी-उगलदान ) को भेजा था, इस राजा भीमने एक माणिक्यके बने हुए अत्यन्त बड़े उस पिकदानको नलसे ग्रहण कराया अर्थात् नलके लिए दिया / [ अपने प्रभु इन्द्रका दमयन्तीमें अनुरागी होनेसे उसके पिता राजा भीममें आदर करना होनेसे अधीनस्थ विश्वकर्माका दमयन्ती-पिता राजा भीममें आदर करना उचित ही है ] // 27 // नलेन ताम्बूलविलासिनोज्झितैर्मुखस्य यः पूगकणैर्भूतो न वा | इति व्यवेचि स्वमयूखमण्डलादुदश्चदुच्चारणतारुचा चिरात् // 28 // नलेनेति / यः पतग्रहः प्रतिग्राहः 'पिकदानी' इति ख्यात इत्यर्थः, स्वमयूखमण्डलात् स्वकोयकिरणसमूहात् , उदञ्चन्ती उद्गच्छन्ती, उच्चा महती, या अरुणता अरुणत्वं, रक्तवर्णता इति यावत् / तस्याः रुचा कान्त्या, ताम्बूलविलासिना ताम्बूलप्रियेण, नलेन उज्झितैः निष्ठयतः, मुखस्य सम्बन्धिभिः पूरगकर्णः गुवाक शकले, भृतः पूर्णः, न वा इति, सन्दिय इति शेषः, चिरात् बहुकालेन, व्यवेधि विविक्तः, पूगकणैः भृतः इति निश्चित इत्यर्थः, / निश्चयान्तः सन्देहालङ्कारः // 28 // जिस ( पिकदानी-उगलदान ) की ( लोगोंने ) अपने किरण-समूहसे निकलती हुई अत्यधिक लालिमाकी कान्तिसे ताम्बूल-विलासी (पानके रसमात्रको लेकर शेष भागसीठीको थूक देने वाले ) नलके द्वारा छोड़े अर्थात् थूके गये सुपारीके (रक्तवर्ण) टुकड़ोसे 'यह भर गयी है या नहीं' ( ऐसा सन्देह करके ) बहुत देर के बाद ( भर गयी है ऐसा) निश्चय किया। ( पाठा०-फैलती हुई अत्यधिक लालिमासे ( अथवा-उदित होते हुए सूर्य, या अरुणके समान ) सुन्दर अपने किरणसमूह होने के कारणसे ताम्बूलविलासी...)। [ अभी उसी पिकदानीमें नलके थूकने का प्रसङ्ग नहीं होनेपर भी भावी कार्यकी दृष्टिसे उक्त सन्देह उत्पन्न होनेपर लोगोंने निश्चय किया, अथवा-माणिक्यमय उस पिकदानीके ही अत्यधिक लाल होनसे यह किरण-समूह है या सुपारीके टुकड़े हैं ऐसा सन्देह होने पर लोगोंने देरसे निश्चय किया कि यह इस पिकदानीका किरण-समूह ही है। राजा भीमने ऐसे माणिक्यकी बनी हुई पिकदानीको नल के लिए दिया ] // 28 // मयेन भीमं भगवन्तमर्चता नृपेऽपि पूजा प्रभुनाम्नि या कृता / अदत्त भीमोऽपि स नैषधाय तां हरिन्मणे जनभाजनं मतत् / / 26 / / मयेनेति / भगवन्तंभीमम महादेवम् , अर्चता पूजयता। अर्चतेभीवादिकालटः, शत्रादेशः / मयेन तदाख्यदैत्यशिल्पिना, प्रभोः शिवस्य, नाम भीम इति संज्ञा अस्ति यस्मिन् तस्मिन् प्रभुनाम्नि स्वामिनामधारिणि, नृपे भीमेऽपि, या पूजा कृता, उप
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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