________________ 128 नैषधमहाकाव्यम् / च्छादक वस्त्रको नहीं जानती हुई नगरवासिनी किसी स्त्रीने चलते ( शिविरसे बाहर निकलते ) हुए नलंके ( गमनको सफल बनानेके लिए मानों ) स्तन के द्वारा मङ्गलरूप घटको सामने रख दिया। [ यात्रामें वस्त्रसे ढके हुए घटको यात्रीके सामने रखना मङ्गलकारक होता है ऐसा लोकाचार है / नलको देखने के लिए कोई स्त्री इतनी अन्यमनस्का हो गयी कि स्तनसे उड़े हुए वस्त्रका भी ज्ञान उसे नहीं रहा। वायुने उस स्त्रीके स्तनसे वस्त्रोंको उड़ाकर हटा दिया, इससे नल के प्रस्थानको सफल बनाने के लिए स्तनरूप मङ्गलघट रखने में अचेतन वायुके भी भाग लेनेसे नलकी यात्राकी अवश्यम्भाविनी सफलता सूचित होती हैं ] // 74 / / संखी नलं दर्शयमानयाऽङ्कतो जवादुदस्तस्य करस्य कङ्कणे / विषज्य हारेस्त्रटितैरत कितैः कृतं कयाऽपि क्षणलाजमोक्षणम / / 75 / / सखीमिति / अतः कुतश्चित् श्वेतच्छन्त्रादिचिह्वात् , 'उत्सङ्गचिह्नयोरङ्कः' इत्यमरः। सखीं प्रति नलं दर्शयमान या सखी नलं पश्यति, तां सखी नलं दर्शयन्त्यर्थः। 'णिचश्च' इत्यात्मनेपदम्। ततः शानचि 'हक्रोरन्यतरस्याम्' इत्यत्र 'अभिवादिदृशोरात्मनेपदम् वा' इति वक्तव्यादणिकाः सख्याः वैकल्पिकं कर्मत्वम् / कयाऽपि पुराङ्ग. नया, जवात् वेगात् , उदस्तस्य नलं दर्शयितुम् उरिक्षप्तस्य, करस्य सम्बन्धिनि कङ्कणे विषज्य लगित्वा, अतर्कितैः अचिन्तितः, सहसैवेत्यर्थः। नलदर्शनव्यासङ्गादलक्षितरित्यर्थो वा / त्रुटितैः छिन्नैः, हारैः क्षणं लाजमोक्षणं क्षणस्य उत्सवसम्बन्धि, लाजमोक्षणं वा, कृतं, तदेव माङ्गलिकलाजावकिरणं जातमिति भावः / आवश्यकश्चायमा. चारः / यथोक्तं रघवंशेऽपि-'अवाकिरन् वयोवृद्धास्तं लाजैः पौरयोषितः' इति // 5 // सखीके लिए ( 'देखो, ये नल आ रहे है। इस प्रकार सखीसे) नलको दिखलाती हुई किसी स्त्रीने अङ्क ( नलके छत्रादि चिह्न, या-अपने आगे ) से जल्दी उठाये गये हाथके कङ्कण में अँटककर टूटे हुए तथा ( नलके देखनेकी उत्सुकताके कारण) अज्ञात हारों ( के स्वच्छ मोतियों ) से क्षणमात्र खीलोंको बिखेरा। [जल्दीसे हाथ उठाकर सखीसे नलको दिखलाते समय हाथके कङ्कणमें अँटककर टूटे हुए मोतियों के हारोंको वह नहीं देख सकी। अत एव उनसे गिरते हुए मोती क्षणमात्र ऐसे मालूम पड़े मानों वह स्त्री नलकी यात्राको शुभ बनाने के लिए धान के खीलों को गिरा रही हो / यात्राके समय महिलाओंका धानके खीलोंका गिरना लोकाचारमें यात्राका शुभसूचक माना जाता है' ] // 75 / / लसन्नखादशमुखाम्बुजस्मितप्रसूनवाणीमधुपाणिपल्लवम् / यियासतस्तस्य नृपस्य जज्ञिरे प्रशस्तवस्तूनि तदेव यौवतम् // 76 / / 1. 'सखी' इति पाठान्तरम् / 2. तदुक्तं महाकविना कालिदासेन मरुत्प्रयुक्ताश्च मरुत्सखाभं तमय॑मारादभिवर्तमानम् / अवाकिरन् बाललताः प्रसूनैराचारलाजैरिव पौरकन्याः // (रघुवंशः 2 // 10)