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________________ पञ्चदशः सर्गः। 616 मिलित्वा, द्राधिमशालिना अर्जितमार्जनश्रिया सम्पादितसिक्थकादिघर्षणसम्पदा, धनुर्गुणेन अलिमालारूपमौा , संयोगजुषां सन्धानभाजां, मनोभुवः कुसुमेषोः, पतत्रिणां बाणानां, सौभाग्यम् इव सौभाग्यं सौन्दर्यम्, अलम्भि लब्धम् इति निदर्शनाभेदः // 59 // अतिशय लम्बाईसे शोभमान तथा ककहीसे झाड़े गये नलके केशोंके साथ संयुक्त अर्थात् केशोंमें लगाये गये ( अर्द्धविकसित कुन्दादि पुष्पोंकी) कलियोंने अतिशय लम्बाईसे शोभमान तथा मोम आदिसे घर्षित कर चिकनी की गयी ( कामदेवके ) धनुषकी (कृष्णवर्ण भ्रामररूपी) डोरीसे संयुक्त बाणोंकी शोमाको प्राप्त किया। [ यहांपर नलके केशसमूहकी भ्रमरश्रेणिरूपिणी कामदेवके धनुषकी डोरीसे, पुष्पकलियोंकी कामबाणोंसे तथा नलकी कामदेवसे समानता की गयी है ] 59 // अनर्घ्यरत्नौघमयेन मण्डितो रराज राजा मुकुटेन मूर्द्धनि / वनीयकानां स हि कल्पभूरुहस्ततो विमुञ्चन्निव मञ्जु मञ्जरीम // 60 / / अनयेति / हि यस्मात् , स राजा नलः, वनीयकानाम् अर्थिनां 'वनीयको याचनको मार्गणो याचकार्थिनी' इत्यमरः, कल्पभूरुहः कल्पवृक्षः, ततः अर्थिकल्पवृक्षत्वात् , अनर्घ्यरत्नौघमयेन अमूल्यमणिनिचयप्रचुरेण, मुकुटेन मुर्द्धनि मण्डितः अलकृतः सन् , मन्जु फलदां मनोहराञ्च, मञ्जरी सकलिकां बालशाखां, विमुञ्चन् अर्थिनां त्यजन् इव, रराज इत्युत्प्रेक्षा // 6 // ___ बहुमूल्य (दिव्य ) रत्नजटित मुकुटको मस्तक पर धारण किये हुए राजा ( नल ) याचकों के कल्पवृक्ष होनेसे उस (कल्पवृक्ष ) से मनोहर (रत्नमयी) मारियों को छोड़ते हुएके समान शोभने लगे। [ सामान्य वृक्षके पल्लव मञ्जरी आदि पार्थिव होते हैं, किन्तु कल्पवृक्ष के वे रत्नमय होते हैं, अत एव याचकों के लिए अभीष्ट दान देनेवाले नलरूप कल्पवृक्षका बहुमूल्य रत्न-समूह रचित मुकुटसे रत्नमयी मञ्जरियोंका छोड़ना उचित ही है / मस्तकपर धारण किये गये बहुमूल्य दिव्य रत्नरचित मुकुटसे ऊपरकी ओर छिटकते हुए. कान्ति-समूहसे नल शोभित हो रहे थे ] // 60 // नलस्य भाले मणिवीरपट्टिकानिभेन लग्नः परिधिविधोर्बभौ। . तदा शशाङ्काधिकरूपतां गते तदानने मौतुमशक्तिमुद्वहन् / / 61 / / नलस्येति / विधोः इन्दोः, परिधिः परिवेषः, नलस्य भाले ललाटे, मणिवीरपट्टि कानिभेन मणिमयवीरधार्यपट्टमिषेण, लग्नः सन् , तदा प्रसाधनकाले, शशाङ्कात् अधिकं रूपं स्वरूपं सौन्दयं वा यस्य तस्य भावः तत्तां, गते प्राप्ते, चन्द्रापेक्षया बृहत्परमिते अधिकसुन्दरे वा इत्यर्थः, तदानने नलमुखे, मातुम् अभिव्याप्तुम् 1. 'वनीपकानाम्' इति पाठान्तरम् / २.'-मारीः' इति पाठान्तरम् / 3. 'मातुमशक्नुवन्निव' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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