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________________ 858 नैषधमहाकाव्यम् / इति एत्वाभ्यासलोपौ / प्रकारान्तरेणोत्प्रेक्षते-वा अथवा, तस्याः भैम्याः, लाभाय प्राप्तये, बहु बहुविधं, चेष्टितुं विलसितुं, कलिना कलिपुरुषेण, अभ्यर्थ्य 'कटाक्षवीक्षणादिविलासा मयि तिष्ठन्तु' इति दमयन्ती प्रार्थ्य, मुहर्तम् ईषत्कालं, नीताः; दमयन्तीप्सया पापिष्ठस्य कलेरप्यागमित्वात्तस्य विकृतरूपस्य चतुरचेष्टानभिज्ञत्वाच दमयन्तीलाभोपयोगिबहुविलासप्रदर्शनार्थ भैमीविलासा एव प्रार्थ्य नीता इवेत्युः स्प्रेक्षा / एतेन अस्याः स्तम्भाख्यसाविकभाव उक्तः, 'स्तम्भः स्यानिष्क्रियाङ्गत्वम्' इति लक्षणात् // 52 // ___ उस समय कामबाणों के गिरने (प्रहार, पाठा०-वायु) से दूर हुईके समान तथा उसे ( दमयन्तीको ) पानेके लिए अनेक प्रकारसे विलासार्थ ( दमयन्तीसे ही) मांगकर मुहूर्तभर (क्षणमात्र, या-दो घटी तक ) कलिकालके द्वारा ग्रहणकी गयी ( अथवा-... ग्रहणकी गयीके समान ) इस दमयन्तीकी सम्पूर्ण चेष्टाएँ ( अङ्गविक्षेप, कटाक्षदर्शन आदि) नष्ट हो गयीं / दमयन्तीका कामुक कलि स्वयं साधारणतम विलासी तथा चतुर चेष्टाओंका अनभिज्ञ ( अज्ञानी ) होनेसे दमयन्तीको नहीं पानेके कारण थोड़े समय तक अपनेको अलकृत करने के लिए उसके विलासोको उसीसे मंगनी मांग लिया था, अत एव कुछ समय तक दमयन्ती विलास-चेष्टासे रहित हो गयी थी। [ लोकमें भी जब कोई व्यक्ति किसीसे कोई अलङ्कार आदि मंगनी मांगकर ले लेता है तो उससे अपनेको थोड़ी देर तक अलकृत कर लेता है तथा उस अलङ्कारको देनेवाला व्यक्ति उतने समय तक उक्त अलङ्कारसे शून्य रहता है। स्तम्भनामक सात्त्विक भाव उत्पन्न होनेसे दमयन्तीके . सम्पूर्ण .विलासमय चेशएँ रुक गयीं ] / / 52 / / तन्न्यस्तमाल्यस्पृशि तस्य कण्ठे स्वेदं करे पञ्चशरश्चकार | भविष्यदुद्वाहमहोत्सवस्य हस्तोदकं तज्जनयाम्बभूव / / 53 // अथ चतुर्भिर्नलस्यापि साविकोदयमाह, तदिति / तया भैम्या, न्यस्तम् अर्पितं, माल्यं स्पृशतीति माल्यस्पृक् ; 'स्पृशोऽनुदके चिन्' तस्मिन् , तस्य नलस्य, कण्ठे करे च पञ्चशरः स्मरः, स्वेदं सात्विकं धर्मजलं, चकार जनयामास, तत् स्वेदजलं, भविष्यतः उद्वाहमहोत्सवस्य सम्बन्धि हस्तोदकम् अय॑जलं, जनयाम्बभूवेत्युत्प्रेक्षा व्यञ्जकाप्रयोगाद्गम्या // 53 // दमयन्ती द्वारा डाली गयी मालासे युक्त उस (नल ) के कण्ठ हाथमें (पाठा० -... युक्त नलके हाथमें जो) कामदेवने पसीना उत्पन्न कर दिया, वह भावी विवाह महोत्सवका हस्तोदक ( कन्यादानके समय सङ्कल्प करके वरके हाथमें दिया गया जल) हुआ। [ दमयन्तीके जयमाल पहनानेपर नलको भी 'स्वेद' नामक सात्विक भाव उत्पन्न हो गया ] // 1. 'यन्नलस्य' इति पाठान्तरम्
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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