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________________ चतुर्दशः सर्गः। 849 पूजितां मार्गमध्यस्थदुर्गादेवीमित्यर्थः, अकृत तद्वदलङ्घयाम एकलचयां कृतवतीत्यर्थः, कृतः कर्तरि लुङि 'हस्वादङ्गात्' इति सिचः सकारलोपः॥३४॥ __(अप्सराओंमें ) अनुराग होने के कारण अप्सराओं के हाथमें ( अपना) हाथ रखकर अर्थात् उनका हाथ पकड़कर ( अथवा-दोनों ( सरस्वती देवी तथा दमयन्ती) के आशय जानने ( या-प्रसन्नता ) के कारण अप्सराओंके हाथमें ( अपना ) हाथ रखकर अर्थात् ताली बजाकर ) देवों के हँसते रहनेपर सरस्वती देवीने दमयन्ती का आलिङ्गनकर अर्थात् उसे अङ्कपाली ( अँकवार = गोद ) में पकड़कर राजा ( नल, या-समस्त राज-समुदाय ) तथा देव-समूहके मार्गके बीचमें ले जाकर उसे जुलूसकी दुर्गा बना दिया। [ जिस प्रकार चल दुर्गाका जुलूस निकालकर उसे मार्गके बीचमें ले जाकर घुमाते हैं, उसी प्रकार सरस्वती देवीने इस दमयन्तीको गोदमें पकड़कर राजाओं तथा देवों के बीचमें ले जाकर घुमाया ] // 34 // अदेशितामप्यवलोक्य मन्दं मन्दं नलस्यैव दिशा चलन्तीम् / भूयः सुरानद्धपथादथासौ तानेव तां नेतुमना नुनोद // 35 / / अदेशितामिति / अथ असौ देवी, तां भैमीम्, अदेशितां नलं प्रति गच्छेत्यचो. दितामपि, दिशेश्चौरादिकात् कर्मणि क्तः / मन्दं मन्दं नलस्यैव दिशा चलन्तीं गच्छन्तों, 'चलेरात्मनेपदमनित्यज्ञापनात्' इति वामनः / अवलोक्य भूयः पुनरपि, तान् इन्द्रादीन् , सुरान् एव नेतुं मनो यस्याः सा सती। 'तुङ काममनसोरपि' इति मकारलोपः। अर्द्धपथात् नलसमीपगामिपथार्द्धात्, पथा सकाशात् परावर्त्य इत्यर्थः, नुनोद इन्द्रादीन् प्रति प्रेरयामास // 35 // ___ इसके बाद इस ( सरस्वती ) ने ( 'इन्द्रादि देवोंके सामने चलो' इस प्रकार ) आज्ञापित न होने पर भी ( पाठा०-आज्ञापित होनेपर भी) नलकी ओर ही धीरे-धीरे चलती हुई दमयन्तीको आधे मार्गसे नलको छोडकर फिर उन देवोंकी ओर ही ले जानेकी इच्छुक होकर उसे प्रेरित किया // 35 // मुखाब्जमावर्त्तनलोलनालं कृत्वाऽऽलिहुंझुरवलक्षलक्ष्यम् / भीमोद्भवा तां नुनुदेऽङ्कपाली देव्या नवोढेव वृथा विवादः॥३६।। . मुखेति / भीमोद्भवा भैमी, मुखाजं स्वमुखारविन्दम्, आवर्तनेन दिग्वलनेन, लोलनालं व्यावृत्तकण्ठनालं, तथा आलीनां सखीनां, हुंढुरवाणां हुँहुमिति निवारणशब्दानाम्, अन्यत्र-अलीनां भङ्गाणां, हुँहुंरवाणां झङ्कारशब्दानां, लक्षः लक्षसङ्ख्याविशेषैः, लक्ष्यं दर्शनीयञ्च, कृत्वा नवोढा नववधूः, विवोढुः परिणेतुः इव, देव्याः सम्बन्धिनी वृथा ताम् अङ्कपाली परिरम्भणबन्धनम्,' अङ्कपाली स्मृता धान्यां वेदिका-परिरम्भयोः' इति विश्वः / नुनुदे तत्याज // 36 // 1. 'आदेशिता-' इति पाठान्तरम् / 2. 'लक्ष्यलक्ष्यम्' इति, 'लक्ष्मलच्यम्' इति च पाठान्तरम् / 3. 'मुमुचे' इति पाठान्तरम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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