________________ 804 नैषधमहाकाव्यम् / जलं, 'सलिलं कमलं जलं, जीवनं भुवनं वनम्' इत्यमरः, चरिष्णुः जलरूपेण सञ्चरन् , कान् नो अवति ? जलस्यैव सर्वेषां जीवनस्वरूपत्वादिति भावः; अमुत्र वरुणे, नरता नरत्वं, न भवति नास्ति, इति युक्तं, तस्य देवत्वादिति भावः // 30 // नलपक्षमें-इस ( नल ) का आशय तुम्हारे साथ विवाह करने के लिए जिस प्रकार आशान्वित है क्या तुम्हारी बुद्धि भी ( इसके साथ विवाह करने के लिए ) उसी प्रकार आशान्वित है ? ( अथवा-....."जिस प्रकार आशान्वित है, तुम्हारी बुद्धि भी उसी प्रकार की है क्या ?) / संसारमें गमनशील यह किन मनुष्योंका ( अथवा-मानवान् अर्थात् कुल. शील दिका मानी तथा संसार में गमनशील यह किनका / पाठा०-यह संसारमें गमनशील किन भनुष्यों का) रक्षण नहीं करता अर्थात् सभी का रक्षण करता है / इसमें आप अनुरक्त हुई हो यह युक्त ( उचित ) नहीं है ? अर्थात् उचित ही है ( अथवा-यह मनुष्य है, इसमें अप अनुरक्त नहीं हैं यह युक्त है ? अर्थात् नहों। अथवा-यह मनुष्य ( पुरुषश्रेष्ठ ) है ( अत एव ) इसमें नरता ( मनुष्यता-पुरुषश्रेष्ठता ) होती है यह युक्त होता है अर्थात् इन इन्द्रादि देवोंमें नरता ( मनुष्यता) युक्त नहीं होती। अथवा-हे भवति !, शेष अर्थ पूर्ववत् जानना चाहिये)। ___ वरुणपक्षमें-इस ( वरुण ) का हाथ तुम्हारे पाणिपीडन (विवाहमें हस्तग्रहण ) के लिए पाशरहित जैसे होगा वैसी तुम्हारी बुद्धि है क्या ? यह विवाह-कालमें तुम्हारा हाथ पाश-रहित होकर ग्रहण करेगा। अथवा-इसका हाथ तुम्हारे पाणिपीडनके लिए ( होगा ) पाश ( इसका अस्त्र-विशेष ) नहीं। ( अतएव तुम्हें भय छोड़ देना चाहिये ) / जलने चलनेवाला यह किन मनुष्यों का (डूबने आदि से ) रक्षण नहीं करता ? अर्थात् जल में प्रविष्ट मनुष्यको डूबने आदिसे यह वरुण ही रक्षा करता है ( पाठा०-जलमें सञ्च. रणशील किन मनुष्यों का यह रक्षण नहीं करता ? अपि तु यह सब मनुष्यों का रक्षण करता है / अथवा-जलमें सञ्चरणशील यह जलसे मनुष्यों की रक्षा करता है / इसमें आप नहीं अनुरक्त हैं यह युक्त नहीं है अर्थात् इसमें आपको अनुरक्त होना चाहिये, इसमें नरता ( मनुष्यभाव, पक्षा-'रलयोरभेदः' के नियमसे 'नलता' = नलभाव ) नहीं होती यह युक्त ( ठीक ) है अर्थात् यह मनुष्य नहीं किन्तु देव ( वरुण ) है / अथवा-यह ना (मनुष्य) नहीं है ( अत एव ) इसमें आप अनुरक्त हैं यह युक्त है ? अर्थात् आपका इस (वरुण ) में अनुरक्त होना युक्त नहीं है / अथवा-इस ( वरुण) में आप अनुरक्त नहीं है यह युक्त नहीं है ? अर्थात् आपका इसमें अनुरक्त नहीं होना युक्त ही है ) // 30 // श्लोकादिह प्रथमतो हरिणा द्वितीयाद् धूमध्वजेन शमनेन समं तृतीयात् / तुर्यान्नलस्य वरुणेन समानभावं सा जानती पुनरवादि तया विमुग्धा / / __ श्लोकादीति / इह श्लोकचतुष्टये, प्रथमतः प्रथमात् , श्लोकात् हरिणा इन्द्रेण सम, द्वितीयात् श्लोकात् , धूमध्वजेन अग्निना सम, तृतीयात् श्लोकात् , शमनेन