________________ 768 नैषधमहाकाव्यम्। ( या पूरा किया ) यह आश्चर्य है। [ नल तथा वरुणमें श्लेषद्वारा समान अर्थवाली वाणीसे दमयन्तीके शङ्का-लता-समूहका बढ़ना आश्चर्यजनक नहीं है, किन्तु नल तथा वरुणके शङ्कालता समूह का बढ़ना अवश्य आश्चर्यजनक है, क्योंकि दूर में खड़े पुरुषको देखकर यह स्थाणु है या पुरुष ?' ऐसी शङ्का तटस्थ किसी अन्य व्यक्तिको तो होती है, किन्तु जो पुरुष खड़ा है उसे ही अपने विषयमें यह हाङ्का नहीं होती कि 'मैं स्थाणु हूँ या पुरुष ? अत एव नल तथा वरुणको अपने-अपने विषयमें निश्चित ज्ञान होनेसे अनेक नलाश्रित शङ्का होना विरुद्ध होनेसे आश्चर्यजनक है / इसका परिहार यह है कि-] नलमें शम् अर्थात् सुख तथा जलाधिप ( वरुण ) में कालतातति अर्थात् कालिमा-समूह समान हुआ। [ 'यदि यह सरस्वती देवी वरुणका वर्णन इलेषोक्ति द्वारा नहीं करके केवल वरुणार्थक श्लोकोंसे ही करती तो दमयन्ती अवश्य ही वरुण का वरण कर लेती और वह मुझे प्राप्त नहीं होती' इस विचारसे नलको सुख हुआ तथा 'यदि यह सरस्वती देवी मेरा वर्णन श्लेषोक्ति द्वारा नलका भी नहीं करके केवल मदर्थक ( वरुणार्थक ) इलेषोंसे करती तो दमयन्ती मुझे ही वरण करती, नलको नहीं, किन्तु अब वैसा नहीं करनेसे दमयन्ती मुझे छोड़कर नलका भी वरण कर सकती है। इस विचारसे वरुण निराश होकर काले पड़ गये] / ( अथवा-नलने सोचा कि सरस्वती देवीने श्लेषोक्तिद्वारा मेरा तथा वरुण-दोनोंका वर्णन किया है केवल वरुण का ही वर्णन नहीं किया है। अतः दमयन्ती कहीं मेरे ( नलके) सन्देहसे वरुणका ही वरण न कर ले' तथा वरुणने सोचा कि सरस्वती देवीने श्लेषोक्तिद्वारा मेरा तथा नल-दोनोंका वर्णन किया है, केवल नलका ही वर्णन नहीं किया है; अत एव दमयन्ती कहीं नल जानकर मेरा वरण कर लेगी क्या ? ( अथबा-वरुण जानकर मेरा त्याग कर देगी क्या ?); इस प्रकार नल तथा वरुण-दोनों के सन्देह-लता-समूहको सरस्वती देवीके विशेष प्रतिपादन नहीं करनेवाले अर्थात् समानार्थक वचनने बढ़ा दिया / अथवा-विशेष प्रतिपादन नहीं करनेवाला ( पक्षा०-समानार्थक) सरस्वती देवीका वचन दमयन्तीके अनेक नलाश्रित शङ्का-लता-समूह को नहीं काटा ( यह आश्चर्यजनक नहीं, क्योंकि जो छूरी आदि लतादिको न है काट सकती, उसका नहीं काटना आश्चर्यजनक नहीं है ) तथापि दमयन्तीके प्रति नल तथा जलाधिप ( वरुण ) के शङ्का-लता-समूहको एक साथ ही काट दिया यह आश्चर्य है ( क्योंकि जो छूरी आदि लतादिको नहीं काट सकती, उसका काटना आश्चर्यजनक है।) प्रकृतमें-'मेरे सन्देहसे दमयन्ती वरुणका वरण कर ले' यह नलका सन्देह तथा 'नलके सन्देहसे दमयन्ती मेरा वरण कर ले' यह वरुणका सन्देह था, किन्तु 'सरस्वती देवीने मद्रूपधारी वरुणके वर्णनमें केवल मेरा (नलका) ही नाम नहीं लिया है, परन्तु वरुणका वर्णन भी श्लेषोक्ति द्वारा कर दिया है अतः श्लेषोक्तिज्ञानचतुरा दमयन्ती इसे वरुण जानकर वरण नहीं करेगी अपितु मुझे ही वरण करेगी' ऐसे विचारसे नलके सन्देहका ना। हुआ तथा 'सरस्वती देवीने नलरूपधारी मेरे ( वरुण) के वर्णनमें केवल मेरा (वरुणका ) ही नाम नहीं लिया है, परन्तु नलका वर्णन भी श्लेषोक्तिद्वारा कर दिया है, अतः श्लेषोक्तिशान