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________________ दशमः सर्गः। 601 उस ( सरस्वती देवी) ने राजा भोमसे कहा-'निश्चित रूपसे यह तुम्हारे हर्षका समय है, इस कारण विषाद (1068) मत करो, ( क्योंकि ) इन राजाओंके यथायोग्य अर्थात् ठीक-ठीक ( पाठा०-विचित्र ) गोत्र तथा चरित्रको मैं कहूँगी। [ पहले (10 / 68) अनेक लोकोंसे आये हुए एवं देवोंसे वर्णनीय कुल तथा चरित्रवाले राजाओं को देखकर राजा भीम विषादयुक्त हो गये कि इनके गोत्र तथा चरित्रका ठीक-ठीक वर्णन तो मनुष्यसे हो ही नहीं सकता और बिना ठीक-ठीक वर्णन किये दमयन्ती किस प्रकार उत्तम-हीनका ज्ञानकर तदनुसार अपने योग्य वरका निर्णय कर सकेगी' इस विषादको दूर करने के लिए सरस्वती देवीको भक्तवत्सल विष्णु भगवानने बुलाकर कहा कि-'समामें आए हुए राजाओंके कुल-चरित्रका तुम वर्णन करो' (1071-72) तदनुसार सरस्वती देवीने समामें पधारकर राजासे उक्त वचन कहा ] // 89 // अविन्दतासौ'मकरन्दलीलां मन्दाकिनी यच्चरणारविन्दे / अत्रावतीर्णा गुणवर्णनाय राक्षां तदाक्षावशगाऽस्मि काऽपि // 90 // का स्वम् ? किमर्थमागता च ? इत्याकाङ्क्षायामाह, अविन्दतेति / असौ प्रसिद्धा, मन्दाकिनी यस्य पुंसः, चरणारविन्दे पादपझे, मकरन्दलीलां पद्ममधुविलासम्, अविन्दत, तस्य पुंसः श्रीविष्णोः, आज्ञाया वशगा वशवर्तिनी, काऽपि या काचित्, अस्मि अहं, राज्ञां गुणवर्णनाय अत्र स्वयंवरसभायाम्, अवतीर्णा, अस्मि इति शेषः, किं विशेषचिन्तया ? इति भावः // 90 // इस प्रसिद्ध गङ्गाने जिसके चरणकमलमें मकरन्द ( पद्म-पराग) के विलासको प्राप्त किया है, उस (विष्णु ) की आज्ञाके वशवर्तिनी कोई मैं यहांपर राजाओंके गुणके वर्णनके लिए आयी हूँ // 9 // तत्कालवेयैः शकुनस्वराद्यैराप्तामवाप्तां नृपतिः प्रतीत्य / तां लोकपालैकधुरीण एष तस्यै सपर्यामुचितां दिदेश॥ 91 // तत्कालेति / लोकपाल: इन्द्रादिभिः सह, एकधुरं वहतीत्येकधुरीणः समानस्कन्धः, 'एकधुराल्लुकच' इति खप्रत्ययः लोकपालसदृश इत्यर्थः, एष नृपतिर्भामः, अवाप्ताम् अकस्मात् सभायां प्राप्तां, तां वाग्देवी, तत्काले वेधैः वेदयितुं शक्यः, शकुनं शुभाशंसिनिमित्तं, 'शुभाशंसिनिमित्ते च खगे च शकुनं विदुः' इति शाश्वतः, स्वरः नासानिलः, आद्यशब्दादतिस्पन्दादिसङ्ग्रहः, तैरुपायैः, आप्तां हितां, प्रतीस्य निश्चित्य, तस्यै उचितां सपर्या पूजां, दिदेश समर्पयामास // 91 // लोकपात्र ( इन्द्र आदि ) के एक धुराको धारण करनेवाले (इन्द्रादि लोकपालों के समान ) इस राजा ( भीम ) ने उस समयके जानने योग्य शकुन ( पक्षी आदिका शब्द) 1. 'विन्दत्यसव्ये' इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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