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________________ नषधमहाकाव्यम् / राजसूयेन मण्डलस्येश्वरच यः / शास्ति यश्चाज्ञया राज्ञः स सम्राट' इत्यमरः। अत्र नेत्राख्यसरोजराजसेव्यरवेन भैमीमुखपमस्य सम्राट्त्वोस्प्रेक्षेति सकरः // 54 // ब्रह्माने इस दमयन्तीके मुखकमलकी सम्पूर्ण कमल-समूहमें सम्राट (बादशाह, पक्षा०अधिक शोभनेवाला ) बनाया है, इसी कारण नेत्रसंशक दो कमलरूपी राजा इस ( दमयन्तीके मुख ) की (शोभा बढ़ाकर ) सेवा करते हैं। [सम्राटके अधीन होनेसे राजा लोगों का सम्राट की सेवा करना नीतिके अनुकूल ही हैं / दमयन्तीका मुख कमलसे भी अत्यधिक मन्दर है ] // 55 // दिवारजन्यो रविसोमभीते चन्द्राम्बुजे निक्षिपतः स्वजक्ष्मीम् / अस्या यदास्ये न तदा तयोः श्रीरेकश्रियेदं तु कदा न कान्तम् / / 5 / / दिवेति / चन्द्रश्चाम्बुजं च ते दिवारजन्योदिनराज्योर्यथासख्यं रविसोमाभ्यां भीते अपहारशकिनी सती स्वलचमी यदा अस्या भैम्या आस्ये निक्षिपतस्तदा तयो. दिवाचन्द्रस्य रात्रावम्बुजस्य च श्रीः शोभा न भवति / इदमस्या आस्यं तु कदा कस्मिन्काले दिवा नक्तं वा एकश्रिया चन्द्राम्बुजयोरन्यतरश्रिया न कान्तम्, अपि तु सर्वदा कान्तमेव / अत्रोक्तयथासङख्यसङ्कीर्णया भैमीमुखे चन्द्राम्बुजलचमीनिक्षे. पोत्प्रेक्षिताभ्यां कादाचित्कशोभाभ्यां मुखस्य / अकादाचित्कधीकरवेन व्यतिरेको ग्यज्यत इत्यलङ्कारेणालङ्कारध्वनिः // 55 // ___ दिन और रात्रिसे डरे हुए (क्रमशः) चन्द्रमा तथा कमल अपनी शोमाको जब इस दमयन्तीके मुखमें रखते हैं ( अथवा अपनी सम्पत्तिको धरोहर रखते हैं ). तब उन दोनों को अर्थात दिनमें चन्द्रमाकी तथा रात्रिमें कमल की शोभा नहीं होती है और यह दमयन्ती का मुख किस समय (दिन या रात्रिमें उन दोनोंमें से) एक (चन्द्रमा या कमल) की शोमासे सुन्दर नहीं रहता ? अर्थात् सर्वदैव ( चन्द्रमा या कमल की शोभासे ) सुन्दर रहता है। चन्द्रमा की शोमा दिनमें तथा कमलकी शोभा रात्रिमें नहीं होती, किन्तु दमयन्तीके मुखकी शोभा दिन-रात रहती है; अत एव दमयन्ती का मुख चन्द्रमा तथा कमलसे श्रेष्ठ है / लोक में भी किसी बलवान् से डरा हुआ व्यक्ति अपनी सम्पत्तिको किसी विश्वासपात्रके पास धरोहर रखकर निश्चिन्त हो जाता है। तथा भयकारणके दूर होनेपर धरोहर रखी हुई अपनी सम्पत्तिको माँगने आता है तो उसे वापस दे देता है / इस प्रकार दिन से डरा हुआ चन्द्रमा तथा रात्रिसे डरा हुआ कमल अपनी 2 शोभा रूप सम्पत्तिको दमयन्ती-मुखके पास धरोहर रूपमें रख देते ओर दिनके व्यतीत होने पर रात्रिमें चन्द्रमा तथा रात्रिके व्यतीत होने पर दिनमें कमल अपनी 2 शोभारूप सम्पत्तिको लेकर शोभित होते हैं / इस कारण दिनसे चन्द्रमाकी शोभासे तथा रात्रिमें कमलकी शोभासे अर्थात् सर्वदा ही दमयन्ती का मुख शोभित रहता है, अतएव नित्य शोभासम्पन्न होनेसे चन्द्रमा तथा कमलकी अपेक्षा दमयन्ती का मुख अधिक सुन्दर है ] // 55 / /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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