________________ हिन्दी अनुवाद 2. अजितनाथजी अजितनाथ प्रभुजी ने सिद्धाचल पर चातुर्मास किया। उनके सुधर्मा नामक शिष्य अपने शिष्य के साथ पानी का कलश लेकर प्रभु दर्शनार्थ आ रहे थे। दोपहर का समय होने से विश्राम के लिए बैठे तो वह पानी का कलश पास में रखा हुआ था। यकायक एक कौआ उस पर झपका और पानी गिर गया। मुनि क्रोधित हो गये। उन्होंने सोचा, "इस कौओ के कारण जिस तरह मेरे मानसिक भाव बिगड़े, ऐसा भविष्य में किसी और के साथ ऐसा न हो इसलिए उन्होंने कौए को शाप देते हुए कहा, "हे दुष्ट काक! यहाँ तेरी कोई आवश्यकता नहीं है।" इसी दिन से तीर्थ पर कौआ नहीं दिखाई दे रहा है। मुनि ने अन्य सर्व मुनि को प्रासुक जल प्राप्त हो, ऐसा निर्माण किया, तभी से वहाँ उलखझोल हुई है। ___मुनि ने अजितनाथजी के दर्शन किये। उन्होंने मुनि से कहा, "तुम्हारे कार्य की सिद्धि इस स्थल पर है इसलिए मुनि ने वहा आमरणांत अनशन व्रत ग्रहण किया और मोक्ष प्राप्त किया।" देवताओं ने अजितनाथ प्रभुजी के समसरण की रचना की। भगवान ने धर्मदेशना कही। अनेक भव्य प्राणियों ने प्रतिबोधित होकर चारित्रधर्म, अनशन व्रत ग्रहण कर सिद्धपद-मोक्षपद प्राप्त किया। अजितनाथ प्रभुजी को नमस्कार। 11 सगर चक्रवर्ती के जिनकुमार प्रमुख 60,000 पुत्रों ने अष्टापद पर्वत की रक्षार्थ खाई बनाने का सोचा। पिता सगर चक्रवर्ती की आज्ञा लेकर अष्टापद पर्वत की ओर चले। वहां खाई बनाना आरम्भ किया। मिट्टी निकालने से भुवनपति देवता के भुवन-नागलोक में मिट्टी की वृष्टि होने लगी तो भुवनपति के देवता क्रोधायमान हो गये। फिर भी अष्टापद पर्वत और चक्रवर्ती के पुत्रों को लक्ष्य में लेकर, क्रोध को अंकुशित करते नम्र स्वर में खाई बनाने से इन्कार करते हुए कहा, "हे राजपुत्र ! यहाँ खाई मत करो, हमारे भुवन में उत्पात्त-उपद्रव हो रहा है।" __जिनकुमार ने खाई का कार्य बंद करवाया, मगर सोचा, "यह खाई को भरने में बहुत समय लगेगा अगर उसमें पानी भरा जाए तो अच्छा रहेगा।" ऐसा सोचकर उन्होंने दंडरत्न से पानी का प्रवाह उस ओर लिया और उधर पानी भर गया। उसी समय भुवनपति के घर में पानी का उपद्रव होने लगा। अब नागकुमार देवता क्रोधित हो उठे और अपनी अग्निजाल से उन्होंने 60,000 सगरपुत्रों को जलाकर भस्मीभूत कर दिया। प्रधान आदि सैन्य भय से कांपने लगे कि अब चक्रवर्ती को कैसे अपना मुंह दिखाएंगे? अच्छा होगा कि हम समग्र सैन्य इधर ही अग्निस्रान कर लें। इंद्र ने अपने अवधिज्ञान से देखा कि यह तो महा अनर्थ हो रहा है। वे वृद्ध ब्राह्मण का स्वरूप बनाकर लश्कर समक्ष उपस्थित हुए। सैनिकों के साथ वे अयोध्या पहुंचे। सगर चक्रवर्ती के महल के सामने कंधे पर अपने पुत्र का मृतदेह लेकर खड़े हुए विलाप करने लगे। चक्रवर्ती ने ब्राह्मण से विलाप का कारण पूछा तो उसने बताया कि, "मेरा इकलौता पुत्र सर्प दंश से मर रहा है, उसे बचाने का अनेक प्रयत्न किये मगर एक भी सफल नहीं रहा। अगर मुझे कुमारी भस्म [जिसके घर में कभी मृत्यु नहीं हुई है, उनसे घर की भस्म (राख)] मिल जाये तो वह बच सकता है। आप तो प्रजापालक चक्रवर्ती है तो ऐसी भस्म मुझे उपलब्ध करवा दें।" चक्रवर्ती विप्र को लेकर समग्र नगर में घूमे मगर कहीं से भी कुमारी भस्म प्राप्त नहीं हुई। उन्होंने अपने घर में कुमारी भस्म के लिए पूछा तब उनकी माता ने कहा, "अपने घर की भस्म भी कुमारी नहीं है।" वृद्ध ब्राह्मण जोर से विलाप करने लगा, तब चक्रवर्ती उनको अनित्य भावना-संसार प्रणाली से समझाने-आश्वास्त करने लगे, तब ब्राह्मण ने कहा, "अन्य को समझाना तो सरल है, मगर स्वयं समझना कठिन-दुर्लभ है।" चक्रवर्ती ने कहा, "ऐसा नहीं है। दोनों सरल-स्वाभाविक हैं।" ऐसा वार्तालाप चल रहा था तब ही चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्रों के अभाव-मृत्यु के समाचार आ पहुंचे। इन्द्र ने अपना असली स्वरूप बनाया। चक्रवर्ती को समझाने लगा, उसी समय अजितनाथजी वहाँ पधारे। इन्द्र सहित चक्रवर्ती प्रभु दर्शनार्थ उपस्थित हुए। प्रभु ने अपनी देशना में श्रीविमलाचल की महिमा बतलाई। सब प्रसन्न हुए। सिद्धाचलजी पटदर्शन