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________________ आविनें कहुं, "हे राजपुत्रो! तुमें हवें खाई खोदसो मां। अमारा भुवननें विषं उपद्रव्य थाई छे।" इंम कहीने भुवनपतिना देवतां ठेकाणे गया। तिवार पछि जिनकुमारे विचारुं, "जे खाई तो केतलेंक कालें पुराय, एतला माटे पाणी होय तो रुंडू'' इंम विचारि डंडरत्ने करी गंगानदीनो प्रवाह वाल्यो। तिणे खाई भराणी। तिवारें भुवनपतिना घरनें विर्षे पाणीनो उपद्रव्य थयो। तिवारें नागकुमार देवता कोपायमान थइनें अगनिज्वालाइं करीने बालि भस्म करयाः। तिवारें प्रधानें लोकें वीचार कस्यो, "जें हवे चक्रवर्ति नई जेइनें सुं मुख देखाडीइं ते माटे आपण पण सर्व सैन्य चय खडकीने बली मरीइं।' एहवें इंद्रे अव(ध) ज्ञानें जोउं, जे माहा अनरथ थातो देखीने गरडा ब्राह्मणनूं रुप करी लसकरमैंः आवीने लसकरने समझावी, सैन्य लेईनें अज्योध्याइं आवीने, विप्रेनें रुपेः, पुत्र, कलेवर खंधे लेई नगरमें आवी चक्रवर्तीना दरबारे नजिक आवी विलाप करवा लागो। ते विलाप सांभलिनें चक्रवर्ति पोते ब्रामण पासे आव्यो। ब्राह्मणनें पुछु। तिवारें ब्राह्मणें कह्यु, "माहरे पुत्र ए कंधे ज छे, तेहने सापें डस्यो। तेहना घणाय उपाय करया, पण न उतरयो। एहवें एक उपाय छे (ले) रह्यो छ। जो कुमारी भस्म मले तो ए पुत्र सजीवन थायें। ते तुं तो प्रजापाल चक्रवर्ति छ। मुझने भस्म पेदास करी आप।" तिवारें सगर चक्रवर्त्ति विप्रने लेई नगरमां फिरो। कुमारि राख किहांये न जडि। तिवारे सगर चक्रवर्त्तिई कह्यु, "माहरा घरमा कुमारी रीख्या छ।" तिवारें सगरनी माता कहे, "आपणा घरनी राख कुमारी नथी।" तिवारें द्विज घणो विलापं करवा लागो। तिवारे सगर चक्रवर्त्ति अनित्य भावनाई करी समझाववा लागो। तिवारें विप्र बोल्यो, "समझाववू सोहिलूं पण समझq दोहिलूं।" तिवारें सगर चक्रवर्ति कहे, "ए बीहुं वात सोहिली छे।" एहवी वात करं छे एहवामां साठ हजार पुत्रनो अभाव थयानी खबर आवी। तिवारें इंद्रे पोतानुं मूल स्वरूप प्रगट किधु। चक्रवर्त्तिने समझावें। एतलें अजितनाथ अरिहा आवी समोसरया। एहवें वधामणी सांभलि चक्रवर्त्त इंद्र सहीत आवी श्री वीतरागनें वांदिने धर्म सांभलवा बेठा। तिहा देसनामां श्री वीतरागें श्रीवीमलाचलनो महात्तम वर्णq। श्री वीतरागनी वाणी साभलि चीत्त प्रसन थयुं। श्री सिद्धाचलजी ने भेटवाने हर्ष थयो संघ सहित। तिहां एहवी खबर आवि, जे गंगा नदीना प्रवाहमां नगर-देश भणाणा छ, तिवारें जिनकुमा(र)नो पुत्र, भगीरथ तेहनें आज्ञा करी, सगर चक्रवर्ति संघ सहित श्री सिद्धाचलजीइं आव्या। तिर्थनो उद्धार कीधो। एहवें इंद्रे वीनती करी जे श्री सिद्धाचलेंजी जेहवू अद्भुत तिर्थ छे अनें आगलें काल तो विषम छे, एतला माटें समुद्र लावो तो तीर्थन रखोपुं थाई। एहवें भगिरथ पण गंगाने ठेकाणे करि आव्यां। सूस्तीक देवताने हुकम करयोः। दरिओ सिधाद्री पछवाडे लावो। तिवारें स्वस्तिक देवता दरीओ लेइनें श्री विमलाचलजीइं लेई आव्यो। तिवारें इंद्रे सागरने विनती करी। दरिओ पिस गाउ वेगलो रहें। तिवारें . सागरने वीनती करी। आज्ञाई दरिओ विस गाउ वेगलो रहो। एहवां श्री अजितनाथनें वांरे। सगर चक्रवर्तिई संघ काढीने उधार करयो। श्री अजित प्रभु श्री सिद्धाचलजथी विहार करतां हवा, पोतानुं सासन सिंहसेन प्रमुख 95 गणधर, एक लाख साधु, फालगुण प्रमुख एक लाख त्रीस हजार 30 साध्वी, बे लाख 98 हजार श्रावक, पांच लाख चोपन हजार श्राविश्रा(का)। साढा च्यारस्ये धनूष देहमान, बोहोत्तर लाख पूर्वY आउखु, कंचन वरण शरीर, गज लंछन, सहस्र पुरुष संघाते दिक्षा लिधी। हजार पुरुष साथे श्री समेतसिखर उपरें सिद्धिपद वरयां। एहवा श्री अजितनाथ बिजा परमेस्वरजीनेः बार बार वांदु छुः। नमोस्तुः श्री मुक्तिगिरि। श्री विमलाचल गिरीने नमोनमः।2। श्री श्री श्रीः पटदर्शन - 17
SR No.032780
Book TitlePat Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana K Sheth, Nalini Balbir
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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