________________ तिहांथी वलि आगलिं चाल्या। श्री सिद्धाचलजी उपरे चडि उद्धार कराव्यो। नावो प्रसाद श्री ऋषभ तातजीनो कराव्यो। इंद्रमाला पेंहरी श्री श्रीपुंडरिक गणधरनी थापना करी। रायण हेठलें श्री ऋषभजीनी पादुका थापि प्रदक्षणा करीनें बिजी पण सर्व जथोचित करणी करी। तिवार पछी श्री गिरनार तिर्थे जावाना अभिप्राय भरत राजाना थया। एहवें नमी-वनमी विद्याधर मुनि भरत पासे आवीने इंम कहुं, "जे अमने मोक्ष पद श्री सिद्धाचलजी उपरे कह्यु छ।' तिवारें भरते ते मुनिने का, "जे आत्मानी कार्यसिद्धी थाई तिम करो।" तिवारे ते बिहं राजंद्र मुनिइं बे मासनी संलेखणा करीः फागुण श्रुदि दसमने दिवसे बे कोडि मुनिराज संघाते सिधवधु वस्या। वलि भरतराजा सेत्रुजी नदीइं नाह्यां। ते नदिने कांठे च्यार दीसें च्यार दिसें च्यार वन छे। पूर्व दिसे सुर्यवन / 1 / पछिम दिसें चंद्रवन / 2 / दक्षण दिसें लक्षमि वन / 3 / उत्तर दिसें कुसुम वन / 4 / ए च्यारें वननी सोभा जोतां आगले च्याल्या। तिहां आगलें जातां एक जटाधारि तापस बेठों छे। तेहने भरतराजाई पूर्छ, “जे तुमें इहां किम बेठों छे?" तिवारें तापस कहे, "मुझनें श्री ऋषभदेवजीइं कर्तुं छे, जे श्री चंद्रप्रभु आट्ठमा तिर्थेसर ने वारें आ तिर्थे तुं सिध पद वरिस। ते माटे हुं इहां बेठो छ।" ते वात सांभलिने ते थानकें श्री चंद्रपभुजीनुं प्रसाद भरतराजाई कराव्योः। वलि आगलि चाल्या। एहवें नमी-वनमी विद्याधरनी चोसट्ठ पुत्रीओ चर्चा आदे देइने अणसण करी मोक्ष गई। केतला एक चार्य इंम कहे छे, जे देवंगना थई तेहनी तिहां थापना भरत राजाइं करी। तिवारें चर्चगिरि एहवू नाम थयुं। वलि आगलि चाल्या। जाता-जातां मार्गने विषे एक गिरिनो सिखर आव्यो। तिवारे सक्तिसिंह एहवें नामे तापस छे / ते भरतराजानो भत्रिाजो छे। ते सक्तिसिंह ने भरत राजाई पूडूं, "जे आ सिखर ते सुं छे?" तिवारें सक्तिसिंह कहे छे, "कदंबगिरि नामा पर्वत छे। ए पिण श्री सिद्धाचलजी टुंक छ। अतित चोवीसीइं बिजा तिर्थंकर निर्वाण नामा भगवान, तेहना गणधर कदंबरिषी एहवें नामें तेहंने भगवानें इंम कडं, "जे तुमनें इणे खेत्रे सिधपद छे, ते वात सांभलिने कदंबरिषी पोताना परिवार सहित श्री सिधाचल उपरें अणसण करी, कर्म क्षय करी मोक्ष वरया। तदा कालथी ए पर्वतनूं नाम कदंबगिरि थयु।7। वलि आगलिं चाल्या तिहां एक टुंक आव्यो, तिवारें सक्तिसिंह ने वलि पुछु भरते, "आ कुण पर्वत छ?" तिवारें सक्तिसिंह कहे, "ए तलाध्वज नामें गिरि। ए पर्वते बाहुबलिजि मोक्ष पधाऱ्या छ, तिहां भरते बाहुबलिजी नो प्रसाद कराव्यो, तथा कालथी बाहुबलटुंक केवराणो। नमो तिथसयस्य।8। वलि आगलि चाल्या, एहवें एक पर्वत सतुदि तिहां दीठो। तिहां भरतराजा पूर्वे उत्तरि घंटखंड साधवा गया ता। तिहां मलेछ राजाई रोग मुक्या तिवारें मनूष्य घणा मरवा लागा। एहवें अवसरें कोइक चारण मुनि तिहां आव्या। ते मुनीइं पुछु, "जे आवडा म विना किम मरे छे?" तिवारे भरतराजाई कह्यु, "हे स्वामि! कांई खबर पडती नथी।" तिवारे मुनी कहे, "हे मलेछनें राजाइं रोग मुक्यो छे, ते कारणे। आ नदिना पाणीना सपरस थकी रोग जासें।" एतलूं कहीने चारण मुनि गया। ते सांमलिने ते नदीना पाणीथी सर्व नाह्या। सर्व सैन्य निरोगि थयो, पिण भावी प्रतें चाले नहीं। पीण एक भरत राजानो इष्ट हाथी हतो, ते तिहां काल प्राप्ति थयो। तिंहा भरतराजाई हस्तिनागपुर गाम वसावं। तिहां श्री ऋषभदेवनो प्रसाद कराव्यो। तदा काले हस्तिकल्प नामें तिर्थ प्रवत्रयु। नमोतिथयस्सय।। तिहांथी गीरीनारे प्रर्वते आव्या। तिहां श्रीनेमनाथना त्रिण कल्याणक छे, उद्धार करयो। तिहां श्रीनेमीश्वरजीनो प्रसाद कराव्यो। तिवारें श्री गीरनार तिर्थ प्रवत्त्यु। च्यार दिसे च्यार पर्वत छ। ते उपरें च्यार प्रसाद कराव्यां। तिहांथी बरडो नामां पर्वत देखाई छ। ते बरडा पर्वतने विषे बरडा नामा राक्षस्स रहें छे। ते संघने तथा प्रजा उपरें उपद्रव घणो करें छे। तें कोईनें वस्य आवतो नथी। ते वात सांभली भरतराजाइं सुषेण नामा पोतानोः सेनानी मोकल्योः / ते सेनानी बरडा राक्ष(स) ने जितिनें सक्तिसिंहनें पगें लगाड्यो। भरतराजाई बरडाने उपदेस देइनें समकित पमाडूं। तिहां भरतराजाई प्रभुजीनो प्रसाद कराव्यो। तिहां बरडागिरी एहवें नामें तिर्थ प्रर्वत्त्युः / 101 पटदर्शन