________________ मुनियाममारित्रलांसाधलजीउपराअासराकरीका परेमोझगयाानमोस्कानीसीधाचनाविमलाबला यनमा इतिश्रीकृषनदेवमोवनिसंयु। श्रीश्री मूल पाठ श्री ऋषभदेवजी नमोनमः। श्री शारदायै नमः। श्री पुंडरिक गणधराय नमः। श्री विमलाचल तिर्थने विषं अतिते काले अनंताअनंत जे भव्य जीव ते आठ कर्म क्षय करी निरावर्ण रत्नत्रै जे केवलज्ञाल छे, पामे , अने वलि पामस्ये। अव्याबाध सुख प्रतें पिण हवणां तो वर्तमान चोवीसीमां श्री ऋषभदेव स्वामिइं उपगार जाणिनें भव्यजीवोंने श्रीसिद्धाचलजीनो ओलखाण कराव्युं छे। श्री ऋषभदेव स्वामि असरण सरण, भवभयहरण, भव्यजीवों ने तारवा पोत समान छे, अज्ञान रूपी त(ति) मर टालवानें अर्थे अर्क समान, भव रूप अटीवि पार उतानि सार्थ समान, कर्मरोग टालवानें धनंतर वैद्य समान, कषाय रुप टालवाने पुष्फरावर्त्त मेघ समान, प्रथवी पावन करवा भव्य जिव रूप कमल विकस्वर करतां, भव्य जीवोंने धर्मवाणी प्रकास करता ग्रामे एकरायं, नगरे पंचरायं, विहार करतां चोरासी गणधर, चोरासी हजार मूनिराज, समथ चतुर्विध संघ परिवार सहित श्री विमलाचल पर्वते समोसरया।। तिवारें च्यरनिकायना देवता चोसट्ठि इंद्र सर्व भेला मलि श्री ऋषभदेव स्वामिइं धर्मदेशनाने विषे श्री विमलाचल पर्वतनूं करतां, पोतानी आतमानी कार्य सिद्धिनुं स्वरूप पुछतां घणा असंख्य जीव परमेस्वरजीना मुखा कम(ल)नी नि वाणी सांभली, जे तुमारां आत्मानी कार्यनिपत्ति श्री सिद्धचल तीर्थ उपरे छे, ते वांणि सांभलिने अनंता भव्य जीव सरीर उपरथी मुर्छा उतारीने, संसारथी विमुख थई, च्यार अर्हर छांडि अणसण करी, सकल कर्म क्षय करी अजरामर श्रुखनें वरता हवा / 1 / वलि श्री ए सीधाचल पर्वतने विर्षे अतित कालें श्री केवलज्ञानानि वाणी प्रमुख चोविस अरिहा परमेस्वर प्रगट कहे / 2 / श्री सिद्धाचलजी नामा तिर्थने विषे वर्तमानकाले श्री ऋषभदेव भगवान् श्री सिद्धाचलें पध्याऱ्या। सिंहा श्रीवीतरागें सिद्धाचल पर्वतनूं माहात्तम प्रसस्त विशेष वर्णवू, ते सांभलिने श्री पुडरिकजीइं पूछु, श्री ऋषभदेवे कह्यु, "हे पुंडरीक गणधर! तुमारा आत्मानी कार्यनी सिधी आ क्षेत्रने विषे छइ।" तिवारें पुडरीक गणधरें परमेश्वरना मुखथी वाणी सांभली एहवी श्री परमेश्वरजी ने पुछु, तारे श्री सिद्धाचलजीन माहात्म सवा लाख वर्णव्यु। तिवारे श्रीभगवंतने पुछीने, श्री पुंडरीकजीइं पांच कोडि मुनि संघाते अनशन करी, एक मासनी संलेखणा करी, सकल कर्म क्षय करी, चैत्री पुनिमना दिवस, विषइ श्री ऋषभदेवना तीर्थनई विषे मोक्षे गया। तदा कालथी श्री सिद्धाचलजीनु नाम पुडरीकतीर्थ एहवं विख्यात थयुं / 3 / ए श्री सिद्धाचलनो महिमा मोटो जाणीने श्री भरत चक्रवर्तिः संघ काढिने श्री सिद्धाचलजीइं आव्या। श्री सिद्धाचलजी उपर चढतां अनंत चौवीसी ना प्रथम केवलज्ञानी नामे परमेश्वरजीनी पादुका अने कुंड ते जरा जिण देखीने भरतचक्रीई इंद्रे महाराज ने पुछु, "जे पादुका अने कुंड जिर्ण किम छे?" तिवारें सौधर्म इंद्रे कहुं, "जेण अतित चोवीसी थई गई, श्री केवलज्ञानिः नामा तिर्थंकर थई गया, तेहना पगलां अने भरत राजानो कुंड छ। ए घणा कालथीः जराजिरण थई गया छः।" इंद्रना मुखथी एह साभलिः कुंडनु नाम भरत थयुं। 1. मूल पाठ में 1 से 3 नम्बर दिये गये हैं। बाद में मूलपाठ में नम्बर 7 से 11 दिये हैं। नम्बर 4 से 6 मूल पाठ में उपलब्ध नहीं हैं। पटदर्शन