SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 710
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमः सर्गः होता है, अतः मैंने रातको स्वप्नमें सुन्दर अधरवाली जिस दमयन्तीको देखा था अभी (दिनमें) भी वैसी ही दमयन्तीको मैं देख रहा हूँ यह भाव है // 42 // यदि प्रसादीकुरुते सुधांशोरेषा सहस्रांशमपि स्मितस्य / तत्कौमुदीनां कुरुते तमेव निमित्य देव: सफलं स जन्म // 4 // अन्वयः-एषा स्मितस्य सहस्रांऽशम् अपि सुधांऽशोः प्रसादीकुरुते यदि, तत् स देवः कौमुदीनां जन्म तम् एव निमित्य सफलं कुरुते // 43 // ___ व्याख्या-दमयन्त्याः स्मितं वर्णयति-यदीति / एषा-दमयन्ती, स्मितस्य = निजमन्दहासस्य, सहस्रांऽशम् अपि = सहस्रतमभागम् अपि, सुधांऽशोः = चन्द्रमसः, प्रसादीकुरुते यदि = अनुग्रहीकरोति चेत्, दद्याच्चेदिति भावः / तत् = तर्हि, सः = प्रसिद्धः, देवः = सुरः, चन्द्रमा इत्यर्थः। कोसुदीनां = स्वचन्द्रिकाणां, जन्म = उत्पत्ति, तम् एव = स्मितलेशम् एव, निमित्य = प्रक्षिप्य, स्वकौमुदीषु इति शेषः, सफलं = साऽर्थकं, कुरुते = विदधाति / यथा बिन्दुमात्रगङ्गाजलमिश्रणेन जलान्तरं सफलं भवति तद्वदिति भावः // 43 // ___ अनुवाब:-यह (दमयन्ती) अपने मन्दहास्यका हजारवाँ भाग भी चन्द्रमा. को दे दे, तो वे ( चन्द्रमा ) उसीको चाँदनी में डालकर उसकी उत्पत्तिको सफल बना देते // 43 // टिप्पणी-सहस्रांशं = सहस्रचाऽसौ अंशः, तम् ( क. धा० ), समासवृत्तिमें संख्यावाचक शब्द लक्षणसे पूरणाऽर्थक होता है, जैसे त्रिभागः, तृतीयो भागः, यहाँ भी उसी तरह संख्यावाचक सहस्र शब्द "सहस्रतमः" इस अर्थमें लक्षित होता है / सुधांऽशोः = सुधा अंशुः यस्य, तस्य ( बहु ) / प्रसादीकुरुते - अप्रसादः प्रसादो यथा सम्पद्यते तथा कुरुते, प्रसाद + चि++लट् + त / निमित्य -नि-उपसर्गपूर्वक "डुमिन् प्रक्षेपणे" धातुसे क्त्वा ( ल्यप् ) / सफलं = फलेनं सहितं, तत् (तुल्ययोगबहु० ) / जैसे एक बूंद गङ्गाजलके मिश्रणसे अन्य जल सफल होता है, वैसे ही दमयन्तीके मन्दहास्यके हजारवें भागके मिश्रणसे चन्द्रिका भी सफल होती है, यह भाव है। इस पद्यमें कौमुदियों का दमयन्तीके स्मितांऽशसे सम्बन्ध न होनेपर भी उसकी उक्तिसे अतिशयोक्ति अलङ्कार है // 43 // चन्द्राऽधिकतन्मुखचन्द्रिकाणां दराज्यतं तत्किरणादनानाम् / पुरःपरित्रस्तपृषद्वितीयं रवाऽबलिद्वन्द्वति बिन्दुवृन्दम् // 44 //
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy